गीत संजीवनी-6

करें व्यक्ति निर्माण

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करें व्यक्ति निर्माण
करें व्यक्ति निर्माण- धरा को स्वर्ग बनाना है।
इन ईंटों पर ही नवयुग का- भवन उठाना है॥
छोड़ बड़प्पन का फूहड़पन- गुरुता वरण करें।
निष्ठुर नहीं बनें मानव हैं- सद्आचरण करें॥
रामराज्य का सपना पूरा- कर दिखलाना है॥
त्याग, तपस्या की भट्ठी में- व्यक्ति ढला करते।
स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन में ही- देव पला करते॥
विकृत मन को भस्मासुर सा- वर न दिलाना है॥
तप नरेन्द्र को ढाल विवेकानन्द बना देता।
और मूलशंकर तप से ही- दयानन्द होता॥
उसी पुरातन परम्परा को- प्रखर बनाना है॥
युगप्रज्ञा ने फिर दहकाई- लो तप की भट्ठी।
जहाँ देवता बन सकती है- मानव की मिट्टी॥
प्रज्ञायुग का भवन उठाने- ईंट पकाना है॥
मुक्तक-
नया युग आ रहा है, इन दिनों निर्माण के क्षण हैं।
जुटे निर्माण में सब ही, इसी आह्वान के क्षण हैं॥
तपाकर त्याग, तप की भट्ठियों में पात्र बन जायें।
तपी हों व्यक्ति की ईंटें, इसी पहचान के क्षण हैं॥
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