गीत संजीवनी-6

कर लो माँ स्वीकार

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कर लो माँ स्वीकार
कर लो माँ स्वीकार, हमारे पूजन को।
बाँटें विमल प्रसाद, तुम्हारा जन- जन को॥
काम क्रोध ने लोभ- मोह ने, खूब सताया दम्भ- द्रोह ने।
लूट लिये जीवन के मोती, क्यों लुटते सुबुद्धि जो होती॥
अब सुन लो माँ करुण- हमारे क्रन्दन को॥
निर्मल हृदय बने शुभ आसन, हो अवतरण तुम्हारा पावन॥
पाद्य, अर्घ्य प्रेमाश्रु बनें तब, पुष्प बनें सद्भाव मृदुल सब।
मन में उठा उछाह- तुम्हारे वन्दन को॥
चन्दन ज्यों सुविचार चढ़ायें, अक्षत शुभ संकल्प कहायें।
सद्कर्मों की धूप जलाएँ, जग हितार्थ यह यज्ञ रचायें॥
श्वाँस- श्वाँस अर्पित हो, तेरे अर्चन को॥
जो साधन जगहित लग जायें, वे ही शुभ नैवेद्य कहायें।
प्राणों में लौ लगे तुम्हारी, यही आरती बनें हमारी।
कर दो माँ यों सफल, हमारे जीवन को॥
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