विश्व सोया रहा
विश्व सोया रहा, गुरु जागते रहे,
जग की पीड़ा में खुद को डुबाते रहे।
दीप ऐसा जलाया कि जलता रहे,
और दीपक से दीपक जलाते रहे॥
बातें ऐसी कही जग सम्भल जायेगा,
रात ढल जायेगी दिन निकल जायेगा।
नेक बनने की छोटी- सी एक बात को,
युग बदलने की बातें बताते रहे॥
थकते कदमों का बनकर सहारा कभी,
चाह बढ़ने की देकर बढ़ाया कभी।
जिए औरों की खातिर थके न कभी,
वे झुके भी नहीं मुस्कराते रहे॥
जो करनी पड़ी क्रान्ति की बात तो,
हर किसी के लिए टीस सहते रहे।
हर समस्या को गुरु ने निकट से लगा,
विश्व में देव मानव कहे जा रहे॥
आलस्य और प्रमाद से बढ़कर अधिक घातक और समीपवर्ती शत्रु दूसरा नहीं होता।
- पं.श्रीराम शर्मा आचार्य