सुनो कथा प्रज्ञा पुराण की
सुनो कथा प्रज्ञा पुराण की, श्रोताओं अति ध्यान से।
नमन करो नत्- मस्तक होकर, हाथ जोड़ सम्मान से॥
नमन करो सम्मान से, सुनो कथा अति ध्यान से॥
धर्म निष्ठ श्रद्धालु साधकों, आओ आसन ग्रहण करो।
युग ऋषि के अमृत विचार को, श्रद्धा से सब श्रवण करो।
भर जायेगी सबकी झोली, गुरुवर के अनुदान से॥
डूब रहा दुःख के सागर में, आज समूचा जन- मानस।
दुःख का मारा डोल रहा है, व्याकुल पराधीन परवश।
भार ढो रहा त्रस्त हो रहा, निज कुटुम्ब संतान से॥
आज समस्या है जैसी वह, समाधान दर्शाया है।
जीवन जीने का स्वरूप, समुचित ऋषि ने समझाया है।
लाखों लाख प्रबुद्ध जुड़ रहे, इस प्रज्ञा अभियान से॥
ज्ञान- कर्म के साथ भक्ति का, बड़ा अनोखा संगम है।
मानवीय गरिमा, कर्तव्यों, का भी दृश्य विहंगम है।
चाहे तो नाता जुड़ जाये, मानव का भगवान से॥
गंगा का अविरल प्रवाह यह, मिट जाते संताप सभी।
ध्यान- धारणा, मज्जन करके, अनुभव कर लें आप सभी।
मन में सुख संतोष बढ़ेगा, श्रवण, मनन, गुणगान से॥