सभी के दिल दिमाग सभी के दिल दिमाग पर ही छा रहा पैसा।
रंक को राव को सबको नचा रहा पैसा॥
सिर्फ पैसे के लिए झूठ बुला ले कोई।
धर्म ईमान को नीलाम करा ले कोई॥
भाई- भाई को लड़ा देता है पैसे का नशा।
देह- व्यापार करा देता है पैसे का नशा॥
पाश्विक कृत्य मनुज से करा रहा पैसा॥
आज तो न्याय भी बिकने लगा पैसे के लिए।
आज तो सत्य भी झुकने लगा पैसे के लिए॥
खाद्य सामग्री में पैसा ही मिलावट करता।
दवा को जहर बनाने से भी नहीं डरता॥
जुल्म अपनों पर ही ज़ालिम सा ढा रहा पैसा॥
किसी से पूछिये क्या है कि लक्ष्य जीवन का।
जिसे देखो वही दीवाना बना पैसे का॥
कोई क्यों पढ़ रहा है पैसे कमाने के लिए।
कोई श्रम कर रहा है पैसे को पाने के लिए॥
जागते सोते नजर सिर्फ आ रहा पैसा॥
कमायें पैसा अवश्य किन्तु भामाशाह बनें।
दीन- दुखियों की राष्ट्र संस्कृति की आह सुनें॥
पैसा साधन बनायें साध्य नहीं बनने दें।
पेट को पाप हेतु बाध्य नहीं बनने दें॥
त्याग बलिदान की गाथा भी गा रहा पैसा॥