देव संस्कृति का साधना मंदिर विश्वविद्यालय का भवन

June 2002

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विश्वविद्यालय भवन देव संस्कृति का साधना मन्दिर है। तपस्वी साधकों के लिए तप-साधना की प्रक्रिया एवं प्रणाली के साथ साधना स्थल का भी महत्त्व होता है। इस महत्त्व को ध्यान में रखते हुए ही विश्वविद्यालय भवन का निर्माण व विकास किया जा रहा है। इतिहास के पृष्ठ प्राचीन भारत के तक्षशिला, नालन्दा एवं विक्रमशिला आदि विश्वविद्यालयों की गौरव गाथा सुनाते हैं। इस गौरव गान में इन विश्वविद्यालयों के भवनों के मधुर गीत भी हैं। इस बात का भी उल्लेख है कि प्राचीन विश्वविद्यालयों के भवनों में आचार्यों एवं अन्तेवासी विद्यार्थियों के लिए विद्या-साधना के लिए किस-किस भाँति अनुकूलताएँ थी। इतिहास गवाही देता है कि यहाँ साधना के साधन जुटाए गए थे, लेकिन सुख के साधनों से परहेज बरती गयी थी।

देव संस्कृति विश्वविद्यालय का भवन इसी ऐतिहासिक सच को ध्यान में रखकर विकसित किया जा रहा है। इस भव्य भवन के वास्तुशिल्पियों, निर्माणकर्त्ता यन्त्रियों की दृष्टि इस बारे में अत्यन्त परिष्कृत है। उन्हें देव संस्कृति के इस साधना मन्दिर में होने वाली भविष्यत् विद्या साधनाओं का पूरा ध्यान है और ज्ञान है। वे अपने कार्य के व्यापक उद्देश्यों से उत्साहित हैं, भाव विभोर हैं। यंत्री होने के बावजूद उनमें याँत्रिकता जरा भी नहीं है। उनमें तो साँस्कृतिक संवेदना छलकती है। वे सभी अपने द्वारा किए जाने वाले कठोर श्रम को तप साधना ही मान रहे हैं। इन सभी की सम्मिलित संवेदना की सजलता एवं सघनता के कारण विश्वविद्यालय भवन कुछ लाख-करोड़ ईंटों के जोड़ से कहीं बहुत अधिक हो गया है।

संस्कृति-साधना के इस मन्दिर के मुख्य परिसर में ही अभी निर्माण कार्य हो रहा है। एक लाख वर्गमीटर से कहीं अधिक क्षेत्रफल में इस मुख्य परिसर का प्रसार है। विश्व विद्यालय भवन के अन्य परिसरों के लिए आस-पास की भूमि क्रय करने की बात चल रही है। पर जहाँ तक निर्माण की बात है, वह अभी इस मुख्य परिसर या मेन कैम्पस में ही केन्द्रित है। इसके कुछ अंश बन चुके हैं, कुछ अभी निर्माणाधीन है। इतिहास विनिर्मित करने वाली इस संरचना को बड़े ही समर्पित, संकल्पित एवं साहसी हाथ गढ़ रहे हैं। उनके इस सृजन कार्य में अतीत की प्रेरणाएँ हैं, वर्तमान की संवेदनाएँ हैं और भविष्य की संकल्पनाएँ हैं। जो एक साथ-एक जुट हो निराकार से साकार हो रही हैं।

इस मुख्य परिसर में जो भवन बन चुके हैं, उनमें से सर्वप्रथम ‘देव संस्कृति विश्वविद्यालय’ का मुख्य भवन है। तीन मंजिला यह भवन 4065 वर्गमीटर में बना हुआ है। इसमें तीस बड़े हॉल हैं। इनमें से 29 ऐसे हैं, जिनमें से कुछ में अभी भी कक्षाएँ चल रही हैं। कुछ में कार्यालय एवं ग्रन्थालय है। इस भवन के भूमिखण्ड में एक हाल बहुत बड़ा है जो बहुउद्देशीय है। निर्मित अंशों में एक विशाल भण्डार गृह है। तीन मंजिला यह भण्डार गृह 1387 वर्गमीटर में फैला हुआ है। इसमें सामान चढ़ाने-उतारने के लिए एक अत्याधुनिक गुड्स लिफ्ट लगी हुई है। विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायों में उपयोग आने वाले सामानों को रखने के लिए इसमें अलग-अलग कक्ष है।

निर्माणाधीन भवनों में सबसे मुख्य भवन छात्रावास का है। इसका विस्तार 7035 वर्गमीटर में है। इस भवन में ऐसी 72 डारमिट्री बनायी जा रही है, जिनमें से प्रत्येक में 8 छात्र बड़े आराम से रह सकें। इसके अलावा इसमें दो बड़े हाल और एक रसोई घर है। यह भवन भी तीन मंजिल वाला है। इसके प्रत्येक कक्ष को विद्यार्थियों की विद्या साधना को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है। और उसी अनुरूप इसे बनाया जा रहा है। यहाँ रहने वाले विद्यार्थी सब तरह की अनुकूलता में अपना विद्या अध्ययन एवं तप साधना सम्पन्न कर सकेंगे निर्माणाधीन परिसरों में आवासीय परिसर भी है। इस परिसर का विस्तार 8507 वर्गमीटर में है। तीन मंजिल वाले इन भवनों में 129 फ्लैट बनाए जा रहे हैं। इनमें से एक कमरे वाले फ्लैट 48 और दो कमरों वाले फ्लैट 54 है। तीन कमरों वाले फ्लैट की संख्या 18 और चार कमरों वाले फ्लैट 9 हैं। ये सभी आवास विश्वविद्यालय के आचार्यों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए हैं। इन सभी आवासों का निर्माण इस ढंग से किया जा रहा है कि यहाँ रहने वाले सभी लोग सुखपूर्वक अपनी तप साधना करते हुए देव संस्कृति के विस्तार में अपना सहयोग दे सकें।

जिन भवनों का निर्माण अभी प्रस्तावित है, उनमें आयुर्वेद अनुसन्धान केन्द्र मुख्य है। हालाँकि इससे जुड़ी हुई आयुर्वेद फार्मेसी बनायी जा चुकी है। निर्मित हो चुकी आयुर्वेद फार्मेसी का तिमंजिला भवन 1423 वर्गमीटर में बनाया गया है। सामान चढ़ाने-उतारने के लिए इसमें गुड्स लिफ्ट की समुचित व्यवस्था है। इसमें शुद्धिकरण, चूर्णन एवं प्रयोगशाला के अलग-अलग कक्ष हैं। प्रस्तावित आयुर्वेद अनुसन्धान केन्द्र 6044 वर्गमीटर में तीन मंजिल वाला बनेगा। इसमें अनुसन्धान के विभिन्न उपकरणों से सुसज्जित प्रयोगशालाएँ होगी। रोगियों के लिए वार्ड, बाह्य रोगी विभाग, आयुर्वेद प्रदर्शनी एवं आयुर्वेद ग्रन्थालय के कक्ष बनाए जाएँगे। इस भवन में रोगियों एवं चिकित्सा विज्ञानियों के लिए तीन लिफ्ट लगाए जाने की भी व्यवस्था है।

प्रस्तावित भवनों में प्रशासनिक भवन एवं सभागार (प्रेक्षागृह) भी महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें से दो मंजिला प्रशासनिक भवन 1162 वर्गमीटर में बनाया जाएगा। इसमें दूरभाष केन्द्र, स्वागत कक्ष, कम्प्यूटर नेटवर्क, सूचना कक्ष, लेखा एवं मुख्य कार्यालय होगा। सभागार 1159 वर्गमीटर में बनेगा। सभागार का भवन सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त होगा। स्वावलम्बन संकाय के लिए एक विशेष भवन बनाया जाना प्रस्तावित है। इसका नाम स्वावलम्बन भवन होगा। तीन मंजिला यह भवन 2040 वर्गमीटर में बनेगा। इसमें प्रशिक्षण कक्ष, प्रयोगशालाएँ, प्रदर्शनी एवं कार्यशालाएँ होगी। इसी के साथ 1221 वर्गमीटर में पाँच मंजिलों वाला मुख्य ग्रन्थालय भवन का निर्माण भी प्रस्तावित है। इसकी हर मंजिल में प्रत्येक संकाय के स्वतंत्र ग्रन्थालय होंगे। ये सभी पाँचों कक्ष अष्टभुजी बनाए जाएँगे। इन सबके ऊपर साढ़े तीन लाख लीटर की क्षमता वाली पानी की टंकी बनायी जाएगी। और इसके भी ऊपर बेधशाला बनाए जाने का प्रस्ताव है। जिसमें ज्योतिष-गणित का अध्ययन की व्यवस्था होगी। यह ग्रन्थालय भवन पैनोरैमिक लिफ्ट की सुविधा से युक्त होगा।

इसके अलावा इस मुख्य परिसर में 536 वर्गमीटर में भगवान महाकाल का मन्दिर होगा। जिसमें विद्या साधकों के लिए ध्यान कक्ष एवं अर्चना कक्ष होंगे। इसी के पास 358 वर्गमीटर क्षेत्र में यज्ञशाला बनायी जाएगी। इस परिसर में ज्योतिष केन्द्र भी बनेगा। जिसमें प्राचीन ज्योतिष के गणित एवं फलित दोनों ही आयामों पर आधुनिक विज्ञान के परिदृश्य में अनुसंधान किए जाएँगे। इस परिसर में आधुनिकतम सीवेज ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट स्थापित करने की भी योजना है। जिसकी क्षमता 3 लाख लीटर होगी। आपातकालीन व्यवस्था के लिए यहाँ अग्निशमन केन्द्र भी होगा। इस परिसर में 2947 वर्गमीटर का पार्किंग स्थल बनाया जाना भी प्रस्तावित है। विश्वविद्यालय के इस मुख्य परिसर के सभी भवनों को जोड़ने के लिए 2.26 किलोमीटर लम्बी सड़क बनायी जाएगी। परिसर का खुला हुआ क्षेत्र जो 70 हजार वर्गमीटर से भी अधिक है, वहाँ हिमालय की दिव्य जड़ी-बूटियों का सुरम्य उद्यान विकसित किया जा रहा है।

देव संस्कृति विश्वविद्यालय के भवन की योजना का विस्तार अति व्यापक है। शान्तिकुञ्ज के समीप हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग पर बन रहे इस मुख्य परिसर के अलावा विश्वविद्यालय के अन्य परिसर भी होंगे। जहाँ विश्वविद्यालय भवन अपना विस्तार करेगा। विश्वविद्यालय के इसी सुविस्तृत भवन में विश्वविद्यालय की व्यवस्था का संचालन होगा। यहीं से देवसंस्कृति की कलियाँ महकेंगी और किरणें चमकेगी। इस सुगन्ध और प्रकाश से समूचा राष्ट्र एवं समस्त विश्व भर उठेगा।


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