समग्र एवं सम्पूर्ण स्वास्थ्य पर विज्ञानसम्मत अध्ययन-अध्यापन

June 2002

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स्वास्थ्य संकाय के पाठ्यक्रमों का आधार ऋषियों की मौलिक दृष्टि है। इन सभी पाठ्यक्रमों में भारत देश के तपस्वियों, ज्ञानियों, चिकित्साशास्त्र के आचार्यों के समग्र स्वास्थ्य चिन्तन का आधुनिक विज्ञान के प्रयोगों एवं तकनीकों के साथ समुचित सामञ्जस्य है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने वर्तमान दौर में काफी उन्नति-प्रगति की है। नए अनुसन्धान एवं नए-नए प्रयोगों के अनेकों मानदण्ड स्थापित किए हैं। इसे उपलब्धियाँ भी मिली हैं। फिर भी काफी कुछ बाकी रह गया है। ऐसा बहुत कुछ है जो छूट गया है, जिसे छुआ नहीं जा सका। इसका अभाव हमेशा खटकता है। ऋषि दृष्टि एवं समग्र चिन्तन ऐसे ही अनछुए किन्तु महत्त्वपूर्ण बिन्दु हैं, जिनकी खोज के बिना आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के सारे अनुसन्धान अधूरे हैं।

चिकित्साशास्त्र मानव प्रकृति का ज्ञान, उसमें आयी विकृतियों की पहचान एवं उन विकृतियों के निदान पर आधारित है। इनमें से किसी भी पक्ष या पहलू की जानकारी अधूरी रह जाने पर सब कुछ अधूरा एवं अपूर्ण हो जाता है। आज की स्थिति यही है। चिकित्सा शास्त्र से भूल मानव की प्रकृति को समझने में हुई है। ऋषियों ने मानव प्रकृति के तीन स्तर गिनाए हैं, आधि भौतिक, आधि दैविक एवं आध्यात्मिक। इन तीनों के अनुरूप उन्होंने इनकी विकृतियों के निवारण व निदान के अलग-अलग उपाय बताए-समझाए हैं। ऋषि कथन के अनुरूप मानव प्रकृति के ये तीनों स्तर अलग-अलग होते हुए भी परस्पर घुल-मिले हैं। इसलिए इनमें से किसी एक की भी चिकित्सा करने के लिए बाकी दो के स्वरूप व संरचना का ज्ञान जरूरी है।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि इस प्रसंग में अधूरी है। उसे केवल मनुष्य की भौतिक प्रकृति का ही ज्ञान है। चिकित्सा शास्त्री इन्सान को हाड़-माँस का चलता-फिरता पुतला मानकर उसका इलाज करने में जुटे हैं। इन्सानी संवेदनाएँ, भावनाएँ, कल्पनाएँ उनकी समझ से अछूती हैं। मनुष्य की प्राण चेतना एवं उसकी आत्म चेतना के अस्तित्त्व तक से उनको इन्कार है। इस अधूरी सोच की ही परिणति व परिणाम है कि विकृतियों के निदान, विकृतियों के जन्मदाता व जीवनदाता सिद्ध हो रहे हैं। रोग भगाने के उपाय, रोग बुलाने के उपाय साबित हो रहे हैं। इसका कारण शायद रोगों को समझने में हुई भारी भूल है।

आज के चिकित्सा वैज्ञानिक रोगों का कारण विषाणुओं, जीवाणुओं के संक्रमण में खोजते हैं। चोट-चपेट, दुर्घटना आदि के अलावा सारे रोगों का कारण विषाणु-जीवाणु ही माने जाते हैं। पर इन विषाणुओं या जीवाणुओं का संक्रमण किसी एक को ही क्यों, उसी के पड़ोस या घर में रहने वाले दूसरे को क्यों नहीं? इस सवाल के जवाब में अटकलबाजियाँ तो बहुतेरी हैं, पर कोई सटीक जवाब नहीं है। प्राण बल एवं प्राण चेतना की समझ के बिना सटीक जवाब दिए भी नहीं जा सकते हैं। इसी तरह भावना एवं कल्पना क्षेत्र में पनपी ग्रन्थियों से उपजे रोगों के बारे में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को सही समझ नहीं है। जबकि इस समझ को पैदा किए बगैर सम्पूर्ण स्वास्थ्य की उपलब्धि असम्भव है।

पुरातन ऋषियों की मौलिक दृष्टि इसी समझ और इससे उपजे सम्पूर्ण स्वास्थ्य का परिचय, पर्याय थी और है। उन्होंने मनुष्य की प्रकृति को समग्र एवं सही ढंग से समझकर ही चिकित्सा के विधान रचे थे। प्राचीन ग्रन्थों को पढ़ने पर यह सच्चाई आज भी देखी, जानी एवं अनुभव की जा सकती है। इन प्राचीन ग्रन्थों के पन्नों में मनुष्य की आधिभौतिक प्रकृति के लिए औषधीय चिकित्सा, आधि दैविक प्रकृति के लिए मंत्र चिकित्सा और प्राण चिकित्सा एवं आध्यात्मिक प्रकृति के लिए योग चिकित्सा के विज्ञान व विधान का स्पष्ट उल्लेख है। तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला आदि ऐतिहासिक युग के विश्वविद्यालयों में इनके पढ़ाए व सिखाए जाने के भी यत्र-तत्र उल्लेख मिलते हैं।

देव संस्कृति विश्वविद्यालय में स्थापित किए गए स्वास्थ्य संकाय का उद्देश्य मनुष्य का सम्पूर्ण एवं समग्र स्वास्थ्य है। इनके अंतर्गत रोगों की पहचान एवं निदान के साथ रोग रोधी उपायों का भी समावेश है। रोग होने पर उनका निदान करना ठीक है। पर इससे भी कहीं अधिक श्रेष्ठ है रोगों को पनपने न देना, उन्हें होने से रोकना। ‘प्रिवेन्शन इज़ बेटर देन क्योर’ के सूत्र को इस संकाय में पूरी तरह से अपनाए जाने का ध्यान रखा गया है। स्वास्थ्य संकाय के सर्टीफिकेट, डिप्लोमा, डिग्री एवं पोस्ट ग्रेजुएट आदि विभिन्न स्तरों के विविध पाठ्यक्रमों के पीछे सोच एवं चिन्तन यही है।

इन पाठ्यक्रमों में जिन बिन्दुओं पर विशेष रूप से ध्यान रखा गया है, वे निम्न है- 1. मनुष्य प्रकृति के सभी स्तरों के बारे में सम्पूर्ण समझ एवं ज्ञान विकसित करना। 2. मानव प्रकृति के किसी भी स्तर में आयी विकृति के स्वरूप की पहचान के साथ उसके यथार्थ कारण की खोज। 3. विकृति विज्ञान को विकसित करने में इस तथ्य का ध्यान रखना कि यथार्थ कारण हमेशा ही प्रकृति की गहरी परतों में होते हैं। उदाहरण के लिए नवीनतम शोध अनुसन्धानों के अनुरूप प्रायः अस्सी प्रतिशत दैहिक रोगों का कारण मानव मन की ग्रन्थियाँ होती हैं। 4. निदान के उपायों का प्रकृति के उस स्तर के अनुरूप बनाया जाना, जहाँ पर विकृति का यथार्थ कारण है।

इस दृष्टि से स्वास्थ्य संकाय में आयुर्वेद की औषधीय चिकित्सा व अनुसन्धान के पाठ्यक्रमों के अतिरिक्त प्राकृतिक चिकित्सा, प्राण चिकित्सा, सूर्य चिकित्सा, चुम्बक चिकित्सा, रंग चिकित्सा, भौतिक चिकित्सा (फिजियोथेरेपी), मानसिक चिकित्सा, मंत्र चिकित्सा एवं योग चिकित्सा आदि के विभिन्न पाठ्यक्रम चलाए जाएँगे। पाठ्यक्रम के विशेष विषय की विषय वस्तु के अनुरूप इनके सर्टीफिकेट, डिप्लोमा, डिग्री, पोस्ट ग्रेजुएट आदि स्तर तय किए जाएँगे। इन विभिन्न विषयों के अतिरिक्त समग्र स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता पैदा करने वाले, रोगरोधी उपायों का व्यावहारिक ज्ञान देने वाले पाठ्यक्रमों का भी इसमें समुचित समावेश किया जाएगा।

देव संस्कृति विश्वविद्यालय का स्वास्थ्य संकाय चिकित्सा विज्ञान के अध्ययन-अध्यापन तक सीमित न रहकर स्वास्थ्य के प्रति जन-जन को जागरुक बनाने वाले अभियान का केन्द्र बनेगा। यहाँ से सम्पूर्ण स्वास्थ्य के जन आन्दोलन को प्रेरणा व प्राण मिलेंगे। यहाँ विशेषज्ञ चिकित्सकों के अलावा मानव स्वास्थ्य के संरक्षकों की नयी पीढ़ी तैयार की जाएगी। ये स्वास्थ्य संरक्षक जन-जन को जीवन देने में अग्रणी भूमिका निभाएँगे। इस संकाय के पाठ्यक्रमों की दृष्टि एवं इनका दायरा व्यापक है। इस ओर जिन विद्यानुरागियों की रुचि है, वे इस सम्बन्ध में पत्र लिखकर संपर्क कर सकते हैं। ये पंक्तियाँ स्वास्थ्य संकाय के उद्देश्यों के अनुरूप बनाए जाने वाले पाठ्यक्रमों के निर्माण हेतु विशेषज्ञों के लिए आमंत्रण सन्देश भी है। ऐसे सेवाभावी उदार हृदय, जन-पीड़ा को समझाने वाले विशेषज्ञ विद्वानों की सदा यहाँ प्रतीक्षा है। ऐसे मनीषियों का सहयोग स्वास्थ्य संकाय के पाठ्यक्रमों को अन्तिम रूप देने में बड़ा सहायक सिद्ध होगा।

स्वास्थ जीवन सभी गुणों, विशेषताओं एवं उपलब्धियों का आधार है। शिक्षा एवं संस्कृति तभी पनपती एवं विकसित हो पाती है, जब मानव जीवन स्वस्थ हो। व्यावहारिक ज्ञान की सभी दिशा धाराओं का उद्गम स्रोत एवं केन्द्र यही है। देव संस्कृति विश्वविद्यालय में भी स्वस्थ जीवन की ईंटों को ही शिक्षा संकाय के पाठ्यक्रमों की आधारशिला बनाया गया है। इसी पर देव संस्कृति का ज्ञान मन्दिर गढ़ा जाएगा।


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