एक प्याली शराब (Kahani)

June 1997

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एक शराबी अपने दोस्तों से कहने लगा कि उसने कभी एक प्याली से अधिक शराब नहीं पी। मित्र उसे अच्छी तरह जानते थे। उन्होंने कहा-सरासर झूठ। तुम तो प्यालियों पर प्यालियाँ उड़ेलते चले जाते हो। हम सबने अपनी आँखों से देखा है। लेकिन शराबी अपनी जिद पर अडिग था। वह बार-बार कसमें खाकर विश्वास दिलाता, परन्तु प्रत्यक्षदर्शी मानें भी तो कैसे? वे सब बोले-थोड़ा ठहरो, आज शाम को ही बता देंगे।

शाम आयी। शराबी लगा बैठकर पीने। एक के बाद दूसरी-दूसरी के बाद तीसरी-क्रम चलता जा रहा था। एक मित्र ने उसका हाथ पकड़ कर कहा-बोलते थे न झूठ। उसने कहा-मैं अब भी झूठ नहीं बोल रहा। तुम्हें ही दिखाई नहीं पड़ रहा। मित्रों को उसकी इस बेढंगी बात पर आश्चर्य के साथ गुस्सा भी आ गया।

इस पर उन्हें समझाते हुए शराबी कहने लगा-मैंने एक ही प्याली पी है। बाद में तो पहली प्याली ने दूसरी को पिया, दूसरी ने तीसरी को, इसी तरह तीसरी प्याली चौथी को पी रही है और धीरे-धीरे शराब शराबी को ही पी जाती है और वह स्वयं इस रहस्य से अनजान बना रहता है।


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