धर्म तंत्र की गरिमा (kavita)

January 1981

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धर्म तंत्र के स्वस्थ को सबल बनाओ रे! जन मानस को आडंबर में मत भटकाओ रे॥1॥

इसी राजपथ पर अतीत ने वह वैभव पाया। जिस वैभव से ‘‘जगत गुरु’’ यह भारत कहलाया॥ उस वैभव को स्वार्थ सिद्धि में नहीं गंवाओ रे! धर्म तंत्र के स्वस्थ-रूप को सबल बनाओ रे॥2॥

स्वार्थ सिद्धि की पगडंडी मत जोड़ो जनपथ से। मत बांधों भ्रम के पत्थर जन मंगल के रथ से॥ धर्म तंत्र की गति के पहिये मत अटकाओ रे! जन मानस को आडंबर में मत भटकाओ रे॥3॥

मुक्ति मिली है जन मानस को धर्म तंत्र से ही। मानवता उभरी संकट से इसी मंत्र से ही॥ धर्म धार कर सदाचार का पाठ पढ़ाओ रे! धर्म तंत्र के स्वस्थ-रूप को सबल बनाओ रे॥4॥

विकृतियों से, दुष्कृतियों से सबको मुक्ति मिले। जन मानस का तम हरने को ज्ञान-प्रदीप जले॥ धर्म तंत्र की गरिमा जग को फिर समझाओ रे! जन मानस को आडंबर में मत भटकाओ रे॥5॥

वसुधा है कुटुंब, मानव सब भाई-भाई हैं। इसके सुख-दुःख के समान सब उत्तरदायी हैं॥ मानव की वसुधा पर सब मिल स्वर्ग बसाओ रे! धर्म तंत्र के स्वस्थ-रूप को संबल बनाओ रे॥6॥

शील, सत्य, सौजन्य, स्नेह का सबही पाठ पढ़ें। समता, प्रगति, समृद्धि, शांति के पथ पर सभी बढ़ें॥ धर्म-ध्वजा को जीवन में, जग में, फहराओ रे! जन मानस को आडंबर में मत भटकाओ रे॥7॥

*समाप्त*


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