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January 1981

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जीवन को मैंने प्यार किया और उसने मुझे प्यार किया और उसने मुझे प्रतिदान से भर दिया। मैंने अपने भीतर प्यार की आग सुलगाई, उसके समीप जो भी आया गर्मी पाकर गया। प्रेम से आहत मेरा मन पहले टूटता और मरता सा दिखता था, पर अब वह जुड़ भी गया और जीवित भी है। मैं प्रेम में रोया और मेरे साथ हर कोई रो पड़ा।

मैंने घुटने टेक कर प्रेम के परमेश्वर से पूछा आप अपना रहस्य मुझ पर प्रकट क्यों नहीं कर देते? उसने मुस्कराते हुए मेरे कान में कहा- अपने आप से प्यार कर क्योंकि मैं प्रेम के रूप में तेरी सत्ता के साथ एकीभूत होकर रह रहा हूँ।

-इनायत


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