VigyapanSuchana

January 1981

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

युग सन्धि पर्व पर प्रज्ञा परिजनों का क्या सोचना और क्या जानना-मानना चाहिए। इसका प्रतिपादन अखण्ड-ज्योति के पृष्ठों पर मिलता है। अब समय के प्रगति क्रम ने प्रत्येक जागृत आत्मा को कुछ नये कर्तव्य और उत्तरदायित्व सौंपे हैं। उनका स्वरूप, निर्वाह एवं उपक्रम जानने के लिए ‘पाक्षिक युग निर्माण’ का पढ़ना भी उतना ही आवश्यक हो गया है जितना अखण्ड-ज्योति का, दोनों को परस्पर पूरक और अन्योन्याश्रित समझा जाय। उसे मंगाने, पढ़ने और पढ़ाने में उतना ही उत्साह अपनाया जाय जितना कि अब तक अखण्ड-ज्योति के लिए प्रदर्शित किया जाता रहा है। ‘पाक्षिक युग निर्माण’ गायत्री तपोभूमि मथुरा से निकलता है और उसका चंदा आठ रुपया वार्षिक है। जो परिजन उसके सदस्य न हों नये वर्ष जनवरी से ही उसे मंगाने लगें।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles