उस मनुष्य के लिए अग्नि, जल के समान हो जाती है, समुद्र तत्काल नहर के समान हो जाता है, मेरु पर्वत छोटे से पत्थर के समान हो जाता है, सिंह का झुण्ड मृग के समान हो जाता है, सर्प माला की डोर के समान हो जाता है- जिस मनुष्य के शरीर में सम्पूर्ण प्राणियों के लिए अत्यन्त क्रियाशील, सदाचार चमकता रहता है।
-भर्तृहरि
*समाप्त*