स्वर्णिम युग का सूत्रपात भविष्य वक्ताओं के उदोहत

December 1977

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“1989 की दशाब्दी विश्व इतिहास में व्यापक उथल पुथल और भयंकर परिवर्तनों के लिए लम्बे समय तक याद की जाती रहेगी। यह क्रम 1980 से प्रारम्भ होगा जब अमेरिका का नगर पनामा तथा जापान का अधिकाँश समुद्री भाग प्रबल भूकम्प के कारण पृथ्वी की गोद में समा जायेंगे । आज रूस और अरब मित्रराष्ट्रों के रूप में दिखाई देते हैं किन्तु धीरे धीर उनमें खाई पड़ेंगी, उग्र विवाद होंगे (उस समय तक तो विवाद की स्थिति नहीं थी जब यह भविष्यवाणी की गई किन्तु इस समय तक निश्चित ही दोनों देशों के मध्य सन्देहजनक परिस्थितियाँ जन्म ले चुकी हैं) और युद्ध हो जायेगा जिसमें रूस वाले बुरी तरह मुँह की खायेंगे। 1985 के लगभग अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के अत्यधिक उग्र होने की सम्भावना है एक समय विश्व युद्ध के भी बादल घुमड़ जायेंगे किन्तु भारतवर्ष के अध्यात्मवादी राजनेताओं की सूझ बूझ से न केवल विश्व युद्ध टल सकेगा अपितु भारतीय प्रतिष्ठा उच्च शिखर पर जा प्रतिष्ठित होगी। भारतीय राजसत्ता को यह शक्ति और यश वहाँ के किसी महान् धार्मिक सन्त के आत्मबल से प्राप्त होगी जिसके विचारों को एक समय इस युग के चमत्कार के रूप में माना जायेगा। उसकी पहचान भी अपने तीक्ष्ण विचारों से ही होगी।” अखबारों में समय-समय पर कितनी ही और ऐसी भविष्यवाणियाँ छपती रहती हैं, पर जिन भविष्यवक्ताओं ने लोगों को अत्यधिक प्रभावित किया वह कुछ ही गिने चुने रहे हैं। श्रीमती जीन डिक्सन, प्रोफेसर कीरो, प्रो0 हरार, डा0 जूल वर्न, जेरार्ड क्राइसे और सन्त की बात सच निकली है इसी कारण उन्होंने जो कहा उस पर संसार की दृष्टि अवश्य दौड़ी। इन पंक्तियों में जिस सन्त की भावी भविष्य वाणियों का संकलन किया गया है वह भी जीन डिक्सन की तरह ही अमेरिका की ही एक महिला है उतनी ही पवित्र विचारों वाली और ख्यातिलब्ध। नाम है- जान सैवेज, फलोरिडा (अमेरिका) की निवासिनी हैं किन्तु उनकी मान्यता यह है कि मेरा शरीर मात्र अमेरिकन है। मेरी शिक्षा भी अमेरिकन है किन्तु मेरे संस्कार भारतीय हैं, मेरे मन में भारतीयता की अमिट छाप और मेरी आत्मा में भारतीय दर्शन के अतिरिक्त और कुछ नहीं हैं।

एक बार एक पत्रकार ने उनकी माँ से पूछा-आप बता सकती हैं जान में भारतीय धर्म और दर्शन के प्रति कब और कैसे अभिरुचि पैदा हुई?” इस पर उन्होंने उत्तर दिया-जन्म से। कैसे? यह मैं नहीं जानती। जान को बचपन से ही माँस और अण्डों से अरुचि रही है, उसने कठिन शीत में भी कभी बियर नहीं पी, कभी फिल्मी गीत गाते नहीं सुना, भगवान की भक्ति की प्रार्थनाएँ ही उसे प्रिय रही है। एक बार फ्लोरिडा एक भारतीय महात्मा पधारे- जान स्वयं ही उनसे मिलने गई। उनसे बहुत सारी बातें पूछती रहीं, आज भी वह भारतीय पद्धति से भगवान् की उपासना करती है। इन्हीं सन्त को उसने गुरु मान लिया। एक बार जब यह भारतवर्ष गई तो इसने अपने गुरु से ज्योतिष सम्बन्धी अपनी जिज्ञासा प्रकट की और अपनी हथेली उन्हें दिखाते हुए पूछा- ‘आप मेरे बारे में कोई चमत्कारिक बात बताइये जो मेरे जीवन में निश्चित रूप से घटित होने वाली हो?”

अभी बात का यह क्रम चल ही रहा था कि ‘जान सैवेज’ स्वयं ही वहाँ आ उपस्थित हुई और आगे की घटना का उल्लेख उन्होंने स्वयं ही इन शब्दों में किया-

गुरुदेव बोले-बेटी परमात्मा ने किसी भी व्यक्ति का भाग्य अटल नहीं बनाया। कुछ सिद्धान्त ऐसे हैं जिनके अनिवार्य परिणाम के रूप में कोई बात ध्रुव सत्य हो भी सकती है किन्तु यदि प्रारब्ध ही सब कुछ होते तो मनुष्य जीवन नितान्त असहाय, अकर्मण्य जो जाता। अपने कर्मों, अपने पुरुषार्थ और पराक्रम द्वारा अटल प्रारब्ध भी टाले जा सकते हैं भले ही सामान्य व्यक्ति पर यह सिद्धान्त लागू न हो?”

“तुम्हारे बारे में मैं इतना ही कहूँगा कि जिस तरह तुम मुझसे प्रश्न कर रही हो, एक दिन लोग तुमसे इसी तरह प्रश्न किया करेंगे। तुम्हें एक सफल भविष्यवक्ता और अतीन्द्रिय बोध के लिए सारे विश्व में प्रतिष्ठा मिलेगी।”

उस समय वस्तुतः किसी को इस कथन पर विश्वास नहीं हुआ, किन्तु थोड़े ही समय में जान सैवेज को अपने अन्तःकरण से अलौकिक अनुभूति उभरती दिखाई दी। उनके शरीर में अक्सर सिहरन उठती और पुलकन में बदल जाती, जिसमें वह काफी समय तक विभोर रहती। इसी दिव्य अवस्था में उन्हें व्यक्तियों से सम्बन्धित घटनाएँ चल-चित्र की भाँति दिखाई दे जाती और वे धीरे धीरे सैकड़ों लोगों को अपनी इस पराशक्ति से लाभान्वित करने लगीं। एक दिन पड़ोस की एक महिला घबराई हुई घर आई, पूछने लगी मेरी लड़की (11 वर्षीय ईजोल) तो इधर नहीं आई कल शाम से ही उसका पता नहीं चल रहा। जान सैवेज एक क्षण के लिए तन्मय हुई और बोलीं- “वह इधर तो नहीं आई किन्तु मुझे उसकी लाश जमीन के अन्दर पानी में तैरती हुई स्पष्ट दिखाई दे रही है। वह स्त्री यह सुनकर विचलित हो उठी किन्तु तीसरे दिन जब उसकी लाश सचमुच एक मैनहोल के अन्दर पानी में तैरती मिली तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। लड़की मैनहोल का ढक्कन निकल जाने से घर लौटते समय उसी में गिर गई थी, उस समय उधर किसी के न होने के कारण जीवित न बच पाई।

एक दिन दूसरे मुहल्ले की कुछ महिलाएँ उधर आ निकली। वे किसी उत्सव के लिए चन्दा संग्रह कर रही थीं। वे जान सैवेज के पास भी गईं। जान से एक स्त्री ने चन्दा देने का आग्रह किया तो जान बोली-बहन जी फौरन घर जाइये, तुम यहाँ चन्दा माँग रही हो इधर तुम्हारे घर में चोरी हो रही है। उस समय तक जान को भविष्यवक्ता के रूप में ख्याति नहीं मिली थी। दिन का समय था अतएव महिलाओं ने समझा यह चन्दा न देने का बहाना कर रही है किन्तु दूसरे दिन वही महिला रोते हुए फिर आई और बोली-’ उस समय मैंने आपकी बात पर विश्वास नहीं किया सचमुच ठीक उसी समय घर में चोरी हो गई। चोर लगभग 50 हजार डालर के आभूषण, बर्तन तथा नकदी लूट ले गये।

जान सैवेज ने उस महिला को पुचकार कर पास बैठाया, काफी पिलाई और बताया कि तुम निराशा न हो- यह काम तुम्हारे पति के भाई का है वह किसी दूसरे शहर में रहता है पुलिस को रिपोर्ट करो तो अपना शक उस पर व्यक्त करना।

सचमुच उसका अपने देवर से वैमनस्य था। वह उन दिनों सिनसिनाटी में नौकरी करता था। इतने इत्मीनान से सामान की चोरी उसी ने की थी और वापस अपने शहर लौट गया। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई गई और सचमुच ही जिस तरह जान सैवेज ने बताया था उसी तरह सारा सामान बरामद हो गया।

इस तरह की घटनाओं ने जान सैवेज का यश फलोरिडा के बाहर फैलाना शुरू किया। एक ओर उनका यश बढ़ रहा था तो दूसरी ओर वे यह बराबर अनुभव करती जा रही थीं, इससे उनकी प्राण शक्ति में निरन्तर हास हो रहा है। किसी गोपनीय प्रसंग को खोल देने के बाद उन्हें काफी समय तक बेचैनी रहती। तब उसे याद आते गुरु के वह शब्द-अलौकिक अनुभूतियाँ परमात्मा ने जीवात्मा के विकास की पुष्टि व साक्षी रूप में बनाई है उनका सार्वजनिक प्रदर्शन करोगी तो अहंकार बढ़ेगा न केवल अपनी यह क्षमता खो देगा अपितु अध्यात्म विकास के मार्ग में भी बाधाएँ उपस्थित होंगी। यह कथन याद आते ही वह अपने अतीन्द्रिय कथनों पर रोक लगाने लगीं। इसके बाद वह केवल अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंगों पर ही जबान खोलती। उनकी कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण भविष्य वाणियाँ जो अखबारों में या तो छप कर या टेलीविजन पर दिखाने के बाद सच पाई गई। उनने उनकी ख्याति बहुत अधिक बढ़ा दी।

उन्होंने 15 नवम्बर 1918 को प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने की घोषणा की जो सच निकली 11 नवम्बर को युद्ध विराम समझौते पर हस्ताक्षर हुए और ठीक चौथे दिन तक सर्वत्र युद्ध विराम लागू हो गया।

उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि जापान और अमेरिका में युद्ध होगा। आक्रमण जापान करेगा, पर अत्यधिक क्षति के बाद उसे हारना पड़ेगा और इस युद्ध के बाद अमेरिका की स्थिति संसार के सबसे अधिक समर्थ और शक्तिशाली देश के रूप में हो जायेगी। उक्त दोनों भविष्यवाणियाँ भी निःसन्देह सच निकलीं।

जर्मनी के केसर के बारे में उनकी भविष्यवाणी यह छपी कि उन्हें देश छोड़ना पड़ेगा, उन्हें अपने देश की मिट्टी भी अन्त समय नहीं मिलेगी तो सच ही हुआ। एक दिन उन्हें जर्मनी छोड़नी पड़ी और उनकी मृत्यु भी सचमुच हालैण्ड में हुई। उन्होंने इस तरह की सैकड़ों भविष्यवाणियों से लोगों का मार्ग दर्शन किया। उनकी अतीन्द्रिय अनुभूतियों का मार्मिक अंश भारतवर्ष से सम्बन्धित है। वह कहती हैं- भारतवर्ष के विश्व का आध्यात्मिक गुरु होने तथा उसके आर्थिक और राजनैतिक दृष्टि से समर्थ होने का समय आ गया है, पर यह सब न तो किसी चमत्कार के रूप में होगा न अनायास। धार्मिक मान्यताएँ ही प्रगतिशील रूप में पनपेगी और उसका श्रेय किसी अत्यन्त सामान्य से दिखाई देने वाले गृहस्थ संत को मिलेगा, यहाँ के लोग परिश्रम और अध्यवसाय के बल पर समुन्नत होंगे और सच्चाई, ईमानदारी और मानव अधिकारों की पक्षधर होने के कारण यहाँ की राजनीति को सिरमौर स्थान मिलेगा।

जान सैवेज की तरह ही अमेरिका में ही एक अन्य महिला हैं आपरीन ह्मूजेज उन्हें भी भविष्य दर्शन और कथन के लिए “एक जीवित आश्चर्य” के रूप में यश मिला है। जिस पूर्वाभास ने उन्हें सर्वाधिक प्रभावित किया है वह भारतवर्ष से ही सम्बन्धित होने के कारण बहुत महत्वपूर्ण है। वे लिखती हैं- मैं जब जब संसार की भलाई के लिए चिन्तित होती हूँ तब तब मुझे यह अनुभूति होती है कि अवतार कही जाने वाली सत्ता का प्राकट्य भारतवर्ष में हो चुका है। उनका वर्ण गौर है, केश शुभ्र श्वेत, मस्तक पर चन्द्रबिन्दू और एक सामान्य भारतीय की सादी वेष भूषा। यह शक्ति विधिवत् एक अभियान चला रही है जिसका उद्देश्य “धरती” पर स्वर्ग और मनुष्य ने देवत्व” का अभ्युदय है। मुझे उस अभियान की स्पष्टता इतना अधिक भासति है कि मुझे स्वयं ही उस दिशा में काम करने की प्रेरणा मिलने लगती है, पर यह श्रेय मुझे नहीं मिलेगा यहाँ के लिए यह श्रेय एक अमरीकी नवयुवती को ही मिलेगा। पर मैं उसके कार्य में योगदान से वंचित रहना नहीं चाहती इसीलिए मैंने गोल्डन-पाथ नामक संस्था का निर्माण किया है।

ईश्वरीय सता के कार्यों को सरल बनाने के लिए ह्नयूजेज ने यह संस्था उनके आदर्शों की अनुभूति की प्रतिकृति के रूप में ही बनाई है। यह संस्था लोगों को ईश्वर की उपासना, पवित्र और प्राकृतिक जीवन, आत्मा को जानने और प्रकाश का ध्यान करने, जीवों का वध न करने, माँस न खाने आदि मानवतावादी शिक्षाएँ देती है। इसके आदर्श सिद्धान्तों से प्रभावित होकर अब तक वहाँ हजारों लोग उसकी सदस्यता ग्रहण कर चुके हैं।

यह श्रीमती ह्नयूजेज वही हैं जिन्होंने 1967 में अरब इज़राइल युद्ध और इजराइल की विजय की घोषणा की थी। यह बात अक्षरशः सच निकली। जब उन्होंने भविष्यवाणी की कि राष्ट्रपति कैनेडी की हत्या कर दी जायेगी तब उनकी धर्म पत्नी जैक्लिन अपने पिता से अधिक की आयु के एक बूढ़े से विवाह कर लेंगी। उस समय सारे अमेरिका में उनका मजाक उड़ा किन्तु वस्तुतः 198 में जब कैनेडी की हत्या कर दी गई तो कुछ ही दिन बाद धन के लालच में जैक्लिन ने अरब पति ओनसिस जो 69 वर्षीय बूढ़ा था उससे शादी कर ली।

इन दिनों ह्नयूजेज अपना अधिकाँश समय अपनी संस्था के विकास में लगाती हैं उनका विश्वास है कि इस तरह वे युगान्तर सता का काम कुछ हलका कर सकेंगी। उनका यह भी विश्वास है कि यह भारत में जागी दिव्यात्मा एक न एक दिन अमेरिका भी आयेगी।


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