जीवन है क्या (kahani)

May 1976

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जीवन है क्या ? इस रहस्य का उद्घाटन करने के लिए मर्मज्ञों की परिषद बुलाई गई और पूछा गया कि जिसने जीवन को जैसा पाया, वह अपनी मान्यता व्यक्त करे।

बादल बोला- जीवन एक घुटन भर है। चन्द्रमा ने कहा- आँखमिचौनी। पवन ने बताया-दिशा हीन निरुद्देश्य भटकन। समुद्र ने बताया-विशालता। बूँद बोली- जीवन पतन के अतिरिक्त और कुछ नहीं। अंकुर बोला- अभिनव अवतरण। सरोवर ने कहा- मर्यादा का बन्धन। नदी ने बताया- सतत प्रवाह।

बात बढ़ती ही गई। भाष्यकार बहुत थे। विवाद का अन्त न दीख पड़ा तो मृत्यु ने कहा-तुम सब मिलकर जितना जानते हो जीवन के बारे में उससे असंख्य गुना जानती हूँ मैं अपने उस जलपान के सम्बन्ध में।

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