छिपे खजाने क्या हमारे हाथ लग सकते हैं ?

May 1976

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

समुद्र अन्वेषी अँग्रेज कप्तान कुक वैज्ञानिकों का एक दल लेकर सन् 1768 में लम्बी समुद्र यात्रा पर निकला था। इसमें उसने इंग्लैण्ड से लेकर आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड तक के लम्बे क्षेत्र के प्रामाणिक नक्शे तैयार किये थे, साथ ही उस बहुमूल्य सम्पदा का पता लगाने का प्रयत्न किया जो समय-समय पर डूबे हुए जहाजों के कारण समुद्र तल में डूबी पड़ी है। एक तूफान में फँस जाने के कारण सन् 1770 में ग्रेट वैरियर रीफ के समीप उसने अपने जहाज पर लदी छह तोपें भी पानी में फेंक दी थीं। कप्तान कुक के द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदनों में से कुछ गुम हो गये हैं अस्तु उससे कामों का फिर से सर्वे करना पड़ रहा है। उसने जिस स्थान पर अपनी तोपें फेंकी थीं उसी के नजदीक बहुत सी सम्पत्ति समुद्र तल में होने का संकेत था अस्तु उस स्थान को ढूंढ़ने का प्रयास नये सिरे से करना पड़ा।

पिछले दो सौ वर्षों में एक के बाद एक खोजी दल दस बार उस क्षेत्र में गये पर उन तोपों के डुबाये जाने के स्थान का सही पता न लगा सके। अब फिलाडेल्फिया की प्रकृति विज्ञान एकेडमी के एक खोजी दल ने उस स्थान को ढूंढ़ निकाला है और छहों तोपें सुरक्षित रूप से प्राप्त कर ली गई हैं। अब अगला कदम उन स्थानों का पता लगाने का है जहाँ बड़ी धन राशि मिलने की संभावना है।

इस सन्दर्भ में मिन्स्क गवर्नर की खोज रिपोर्ट में नये तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है। कुछ समय पूर्व नोवोग्रुदोक के एक सैनिक ने अपने बड़े अधिकारी को सूचना दी थी कि एलेग्जानुर रोमानोविच नामक एक ग्रामीण के पास प्राचीन वस्तुओं का बहुमूल्य संग्रह है। छापा मारने पर उसके पास सोने की कीमती छड़ें, जंजीरें और रत्न जड़ित अँगूठियाँ पाई गईं। ये वस्तुतः नैपोलियन द्वारा जमा किये खजाने की ही एक अंश थीं। शेष खजाना कहाँ गया इसकी पूछताछ उसी किसान से की गई तो पता चला कि उसके पूर्वजों के समय हुए बँटवारे का आधा भाग पड़ौस के गाँव में रहने वाले मुखा नामक व्यक्ति के बाप-दादों को मिला था। शायद उसके पास जमा हो। मुखा ने बताया कि महायुद्ध के समय जब गाँव खाली करना पड़ा था तो वह उन चीजों को एक लोहे के सन्दूक में बन्द करके जमीन में गाढ़ गया था पर जब लड़ाई बन्द होने पर वापस लौटा तब किसी ने उन सन्दूकों को ही गायब कर दिया था। उसका अनुमान है कि- इस धन की जानकारी केवल पैट्रिक को थी और इसे गायब करने में उसी का हाथ हो सकता है।

पैट्रिक के साथ पुलिस ने कड़ाई की तो उसने बात स्वीकार करली। साथ ही यह भी कहा उसे सुरक्षित रखने में झंझट की बात सोचकर एक पुलिस अफसर को सस्ते मूल्य में बेच दिया था और नगदी ले ली थी। वह पुलिस अफसर कहाँ है? यह ढूंढ़ा गया तो पता चला कि वह यहीं रूस छोड़कर वारसा में जा बसा है। अब वह ढूंढ़-खोज यहीं रुकी पड़ी है आगे का पता नहीं चल रहा है। यदि वह सारी दौलत मिल सके तो रूसी सरकार के दरिद्र पार हो सकते हैं।

एक तीसरा खजाना और भी इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। स्पेन का शासन अठारहवीं सदी के प्रथम चरण में अमेरिका के एक बड़े भाग पर था। उन उपनिवेशों से शोषित संपत्ति निरन्तर स्पेन भेजी जाती रही थी। 24 जुलाई 1715 को पन्द्रह बड़े जहाज अरबों रुपयों की सम्पत्ति लेकर हवाना बन्दरगाह से स्पेन के लिए रवाना हुये थे। उनमें 166 पेटियाँ सोने-चाँदी तथा रत्नों और मोतियों से भरी हुई थीं। एक सप्ताह की यात्रा ही वे कर पाये होंगे कि भयानक समुद्री तूफान ने उन्हें धर-दबोचा और प्रायः सभी जहाज गहरे पानी में डूब गये। हजारों यात्रियों और नाविकों के अतिरिक्त वह सम्पदा भी समुद्र के पेट में समा गई। मुट्ठी भर मल्लाह ही किसी प्रकार किनारे पर लगे- उन्हीं से दुर्घटना का विवरण विदित हो सका।

स्पेन के गोताखोर उस सम्पत्ति को निकालने का प्रयत्न करते रहे। एकबार कुछ कहने लायक धन निकाला भी गया पर उसे हमला करके समुद्री डाकू लूटकर ले गये। तब से खोजियों का उत्साह ढीला पड़ गया है, फिर भी लहरों के साथ बहकर आने वाले वे सिक्के जो तट की मिट्टी में सने हुए मिल जाते हैं अभी भी उस लालच को सजीव रखे रहते हैं और प्रयत्नों को मर-मरकर जीवित होने की प्रेरणा देते रहते हैं।

एक चौथी घटना और है- उन दिनों अमेरिका नया-नया ही बसा था। लगभग सारे ही योरोपियन देश वहाँ से दौलत लूट लाने के लिए धमाचौकड़ी मचाये हुये थे। उन्हीं में से एक दुस्साहसी का नाम था जान एवान मार्टिन। उसने सुन रखा था कि ब्राजील के सघन जंगलों में ढेरों सोने की खदानें बिखरी पड़ी हैं और लोग उन्हें खोद-खोदकर अनाप-शनाप दौलत बटोर रहे हैं। वह दुस्साहसी युवक भी यह लोभ संवरण न कर सका और उधर ही चल पड़ा। मार्टिन पिछले दस वर्षों से समुद्री सेना में काम कर चुका था, उसने बहुत देश देखे और तरह-तरह के अनुभव बटोरे थे। जिन्दगी मौत की लड़ाई से वह कितनी ही बार जूझा था। उससे वह डरा नहीं वरन् दूना दुस्साहसी हो गया। ब्राजील से सोना बटोरने का साहस उसने अपने संगृहीत जोखिम उठाने की आदत के अनुसार ही किया था।

गोरे लोग ब्राजील के दक्षिणी इलाके में ही खोज करने जाते थे। उत्तरी इलाके में जाने की उनकी हिम्मत नहीं पड़ती थी। यद्यपि सोना उधर ही अधिक था। कारण यह था कि उत्तरी इलाके में जो आदिवासी बसे हुये थे, वे बहुत ही खूँखार थे। उधर से गुजरने वालों को पग-पग पर उनके आक्रमण का सामना करना पड़ता था और अधिकतर मौत के शिकार ही बन जाते थे। इसलिए उस क्षेत्र में कोई विरले ही जा पाये थे। मार्टिन ने उसी इलाके में जाने का निश्चय किया। आदिवासियों की आदतों और उनसे बचने की तरकीबों का अध्ययन करने के बाद उसने यही फैसला किया कि वह उनसे आँखमिचौली खेलता हुआ अपना प्रयोजन पूरा करेगा। सो वह थोड़े से कुली साथ लेकर उत्तरी ब्राजील के सघन वनों में घुस ही पड़ा।

कई हफ्ते इधर उधर टक्करें खाते फिरने के बाद आखिर उसने वह क्षेत्र ढूंढ़ ही लिया जहाँ सोने की छोटी छोटी खदानें बिखरी पड़ी थीं। अपने छोटे से साधनों से वह सोना समेटना लगा और दो महीने के भीतर ही उसने प्रायः साठ पौंड सोना इकट्ठा कर लिया। अधिक इकट्ठा करते जाने की अपेक्षा उसने यह अच्छा समझा कि जो कमाया है उसे कहीं सुरक्षित स्थान तक पहुँचा दें और तब आगे की खोज करें।

पीठ पर साठ पौंड सोने के भारी थैले लादकर वह धीरे-धीरे चल पड़ा। रास्ते में यूरटोरी कोका के एक छोटे से होटल में उसे सुस्ताना पड़ा। इस होटल का मालिक ग्लवेज जाना-माना बदमाश था। दिखाने को तो वह कई जगह होटल, शराबखाने और जुआघर चलाता था, पर उसका असली काम सोने की खानें कुरेदने वालों का पता लगाना और उन पर हमला करके मौत के घाट उतार देना था। इस प्रकार उसने करोड़ों डालर की कमाई की थी और सैंकड़ों आदमी इस तरह खत्म किये थे कि उनकी लाश का पता भी न चले और लोग यह तक पता न लगा सकें कि आखिर उनका हुआ क्या ?

मार्टिन की पीठ पर लदे हुए सोने को उसने भाँप लिया और अपनी पिस्तौल लेकर उसका पीछा करने लगा। ग्लवेज के बारे में मार्टिन ने सुन रखा था अब उसे अपनी मौत की जीती जागती छाया अब तब दबोचती हुई दिखाई देने लगी। अब क्या हो सकता है ? इस पर उसने बारीकी से सोचा और यह निर्णय दिया कि वह सामने वाली कातर यानी कबीले के - लोगों के गाँव में घुस पड़ेगा और उन्हें चकमा देकर किसी प्रकार अपनी जान बचायेगा। उसकी योजना फिट बैठी।

शिकार हाथ से जाता देखकर ग्लबेज ने गोली चलाई। गोली की आवाज सुनकर कबाइली लोगों का पूरा गाँव अपने हथियार लेकर आ डटा और चारों ओर से घेरकर उसका सिर काट दिया। इसी बीच अवसर पाकर मार्टिन भाग खड़ा हुआ। पर भागने के लिए आवश्यक था कि वह वजन हलका करे और सोने का मोह छोड़े निदान वह ऐसी झाड़ी में सोना छिपाकर अपने डेरे पर चल पड़ा जिसे ढूंढ़ सकना फिर कभी उसके लिए सम्भव नहीं हुआ। यद्यपि वह कई बार बड़ी तैयारी के साथ उस स्थान तक पहुँचने का प्रयत्न करता रहा।

इसके बाद भी मार्टिन ने कई प्रयत्न किये। कई बार कुछ पाया भी पर वह ऐसे ही किसी न किसी तरह हाथ से निकल जाता रहा। निढाल होकर वह अमेरिका छोड़कर आस्ट्रेलिया जा बसा और वहीं किसी तरह दिन काटने लगा।

उपरोक्त चार खजानों की चर्चा पढ़कर हममें से कोई भी यह सोच सकता है कि ऐसा ही कोई दवा, गढ़ा खजाना हमारे हाथ लग जाता तो कितना अच्छा होता। सचमुच इस धरती के गर्भ में दबे हुये ऐसे खजानों की संख्या हजारों लाखों की संख्या में होगी जिन्हें मनुष्य ने किसी प्रकार उपार्जित तो किया, पर वह उनका न तो उपयोग कर सका और न उपभोग। उसने उसे फिर कभी के लिए संग्रह किया और जरूरतमंदों की नजर से छिपाकर कहीं दबा छिपाकर रख दिया। जिस समय के लिए उसे संग्रह किया गया था, वह आया ही नहीं और वह सारी दौड़−धूप जमीन के नीचे दबी रह गई। अब वह किसी के काम नहीं आ रही है। इससे पूर्व वह कम से कम किसी के काम तो आ रही थी। अब उसका काम एक ही है कि हर किसी के मन में मुफ्तखोरी का लालच उत्पन्न करे। जैसा कि इस दिशा में सोचने वाले किसी भी व्यक्ति के मन में उठता है- उठ सकता है।

मनुष्य द्वारा संग्रहीत और छिपाये हुए खजानों की अपेक्षा प्रकृति के गर्भ में स्वाभाविक खजाना भी करोड़ों गुनी मात्रा में दबा पड़ा है। अन्न की वनस्पतियों के तथा विविध खनिज पदार्थों के रूप में हम उसे आदिकाल से प्राप्त कर रहे हैं और अन्त काल तक प्राप्त करते रहेंगे। पुरुषार्थी और अव्यवसायी इसे पहले भी प्राप्त करते रहे हैं और अब भी प्राप्त कर रहे हैं। प्रकृति का यह द्वार हर किसी के लिए खुला पड़ा है वह मुक्त हस्त से सबको अपना भण्डार लुटा रही है। बिना ईर्ष्या और लालच उत्पन्न किये इसे प्रत्येक पराक्रमी सरलतापूर्वक प्राप्त कर सकता है। अथक श्रम और सघन मनोयोग के उपकरण लेकर जहाँ भी खोदना आरम्भ किया जायेगा वहीं से सफलताओं के रत्न राशि सहज ही उपलब्ध होने लगेगी।

मनुष्य का अपना व्यक्तित्व भी किसी बड़े रत्न भण्डार से कम नहीं है। उसमें इच्छा शक्ति, बुद्धि शक्ति और क्रिया शक्ति के रूप में वे तिजोरियाँ भरी पड़ी हैं जिनकी तुलना संसार की समस्त सम्पदाओं के सम्मिलित रूप से भी नहीं की जा सकती। ‘पराई पत्तल का भात मीठा और घर की खीर बेतुकी’ लगने की बुरी आदत ही हमें दूसरों के कमाये छिपाये खजाने पाने के लिए ललचाती है जबकि उनसे कहीं अधिक बहुमूल्य राशि अपने में ही दबी हुई सड़ रही है।

मुफ्त का धन जिनने भी पाया उन्हें दूसरों की ईर्ष्या का भाजन तथा आक्रमण का शिकार होना पड़ा है। उसने अपने पीछे बुरी प्रेरणा और परम्परा छोड़ी है। हम भी यदि उसी मार्ग पर चलें तो उन्हीं दुखद परिणामों की पुनरावृत्ति होगी जो अब तक होती रही है। खजाना पाने का मन हो तो उसे व्यक्तित्व के समग्र निर्माण और उपलब्ध क्षमता के श्रेष्ठतम उपयोग के उपाय द्वारा ही ढूंढ़ने और पाने का निश्चय करना चाहिये। इस मार्ग पर चलते हुये इतनी बढ़ी-चढ़ी सफलताएँ मिल सकती हैं, जिसकी खजाना ढूंढ़ने वाले कल्पना भी नहीं कर सकते।

----***----


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118