प्रत्यक्ष से भी विचित्र अदृश्य संसार

May 1976

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पुनर्जन्म के सम्बन्ध में यों तो अनेकों घटनायें सामने आती हैं। अखबारों में छपती हैं। पूर्वजन्म की स्मृति आना और बोलना सीखते ही पिछले जन्म के घर, पत्नी-बच्चों, रिश्तेदारों के सम्बन्ध में बताने, उन्हें पहचानने और कोई राज की बात जिसे अकेला वही व्यक्ति या एकाध अन्य सदस्य और जानते थे बताने की घटनायें इतनी आम हो चुकी हैं कि कोई नयी चर्चा उठते ही उसी जैसी दो चार और घटनाओं की भी चर्चा होने लगती है।

इन घटनाओं के सम्बन्ध में जो विवरण प्राप्त हुए उनके आधार पर जाँच पड़ताल से जो तथ्य सामने आये उन्होंने पुनर्जन्म और परलोक के भारतीय सिद्धान्त की पुष्टि करते हुए यह भी प्रमाणित कर दिया कि मरने के बाद शरीर तो छूट जाता है पर मनुष्य की चेतना जीवित ही रहती है। लेकिन अभी कुछ समय पूर्व विश्व-विख्यात ब्रिटिश परा मनोवैज्ञानिक जे0 बर्नाड हटन ने कुछ ऐसी घटनाओं पर शोध किया जो यह सिद्ध करती हैं कि व्यक्ति ही नहीं घटनाओं का भी पुनर्जन्म होता है। इस विषय को उन्होंने अपनी पुस्तक ‘द अदर साइड आफ रियेलिटी’ (यथार्थ का दूसरा पक्ष) में प्रमाणों और तथ्यों के आधार पर प्रतिपादित किया।

हटन के साथ उनके एक मित्र जो सेना में कैप्टेन थे- शुलकौझ भी द्वीप पर छुट्टियाँ मनाने के लिए सपरिवार आये हुए थे। दोनों मित्रों ने आस-पास रहने का फैसला किया और एक ही स्थान पर बंगले किराये पर लिये। अभी छुट्टियां बीत भी न पायी थीं कि हटन को किसी आवश्यक कार्य से बाहर जाना पड़ा। श्रीमती हटन और उनके बच्चों के साथ कैप्टेन-शुलकौझ का परिवार भी श्री हटन को विदा करने स्टेशन तक गया। विदा कर लौटते हुए सब ने पूरे द्वीप का घूमते हुए चक्कर लगाकर अपने बंगलों पर वापस लौटने का निश्चय किया। इस प्रकार उन्हें छोटे से सिल्टद्वीप की चार मील की परिधि भर का चक्कर लगाना पड़ता अतएव वे स्टेशन से बंगलों के लिए पैदल ही रवाना हुए।

थोड़ी देर में कुछ मछुए पास के गाँव से आ गये और उन्होंने तोप द्वारा लाइफलाइन फेंकी ताकि उसे पकड़कर फंसे हुए मछुए अपनी रक्षा कर लें। लेकिन लाइफ लाइन नाव तक ही नहीं पहुँची। दुबारा लाइफ लाइन फेंकी गयी। इस बार पूरी सतर्कता रखी गयी थी। इसलिए लाइफ लाइन ठीक तक पहुँच गयी। नाव में बैठे मछुए उसे पकड़ें-पकड़ें इतने में ही एक लहर ऊंची उठी और उसने लाइफ लाइन को लपक लिया।

तोप की आवाज सुनकर पास की बस्ती से बहुत सारे लोग जिनमें स्त्रियाँ और बच्चे भी थे समुद्र के तट पर आ गये। अच्छी खासी भीड़ इकट्ठी हो गयी। कुछ स्त्रियाँ विलाप भी करने लगीं। सम्भवतः उस नाव में उनके पति, पुत्र या सम्बन्धी होंगे। दो बार लाइफ लाइन फेंकने की कोशिश बेकार तो तोप वाले मछेरों ने किनारे से एक नाव उतारी जिसमें चार-पाँच हृष्ट-पुष्ट और ताकतवर व्यक्ति बैठे थे, वे सफलता पूर्वक नाव को खेते हुए उस ओर ले गये जहाँ उनके साथी फंसे हुए थे।

लहरों से संघर्ष करते हुए वे अपने साथियों की ओर बढ़ने लगे। उस नाव के मछेरों ने भी लाइफ बोट उतार ली थी और वे ज्वार-क्षेत्र से बाहर आने की कोशिश करने लगे। किनारे से रवाना हुई नाव उन तक पहुँच ही गयी थी। तट पर खड़े कुछ मछेरों ने फिर लाइफ लाइन फेंकी पर वह भी लहरों की चपेट में आ गयी। जीवन और मृत्यु के इस संघर्ष को देखकर किनारे पर खड़े व्यक्ति परमात्मा से दया की प्रार्थना कर रहे थे। लाइफ बोट को सहारा देकर दुर्घटना में फंसे मछेरों को किनारे पर लाने की कोशिश की ही जा रही थी कि एक तेज लहर आयी जिसने आकाश की ऊंचाइयों को छूते हुए दोनों नावों और उनके सवार मछेरों को सागर की तलहटी में पहुँचा दिया।

इस दृश्य के समय बड़ा कारुणिक वातावरण बन गया था। स्वयं शुलकौझ, उनके साथी, बच्चों व अपनी तथा अपने मित्र की पत्नियों को कुछ समझ नहीं आ रहा था। एक दूसरे से आश्चर्य व्यक्त करते हुए उन्होंने आस-पास देखा तो न कोई भीड़ थी और न ही सागर में तूफान आया हुआ था। एकदम शाँत समुद्र भी जैसे उस घटना को झुठला रहा था।

घटना अविश्वसनीय लगती है। परन्तु सच है यह बात तब प्रमाणित हुई कैप्टन ने अपने घर जाकर द्वीप के पादरी से इसकी चर्चा की। पादरी ने और भी आश्चर्य में डाल दिया कि अब से पचास वर्ष पूर्व जब वह बच्चा ही, था सचमुच ही ऐसी घटना घट चुकी है। दिन यही था जिस दिन शुलकौझ ने यह दृश्य देखा था। यही नहीं पादरी ने उन लोगों के बयान भी दिखाये जो पहले इस घटना की पुनरावृत्ति को देख चुके थे। कैप्टन शुलकौझ ने उन बयानों को पढ़ा तो अनुभव हुआ कि जैसे अभी-अभी कोई व्यक्ति यह घटना देखकर आया है और अपने संस्मरण लिख रहा है।

उस समय बच्चे रहे बर्नार्ड-हटन इस अविश्वसनीय सचाई से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसी दिशा में खोज करना अपना लक्ष्य बना लिया और परा मनोविज्ञान के क्षेत्र में एक से एक अद्भुत प्रयोग किये तथा उनके निष्कर्षों से लोगों को अचम्भित कर दिया। क्योंकि आज का बुद्धिजीवी वर्ग इस प्रकार की बातों को बिना कुछ समझने का प्रयत्न किये तत्काल कपोल या गप्प करार दे देता है।

पश्चिमी देशों में मरणोत्तर जीवन की स्थिति पर शोध और प्रयोग के बड़े कार्य होने लगे हैं। सर ओलीवर लाज, सर विलियम वारेट, एफ0डब्ल्यू0एच0 मारेस, रिचार्ड होड़सन, मिसेज सिडपिक, सर आर्थरकानन डायल आदि परा मनोवैज्ञानिकों ने इस दिशा में गम्भीर खोजें की हैं और प्रामाणिक तथा तथ्यपूर्ण जानकारियाँ संग्रहीत कर अध्यात्म को भी विज्ञान की कसौटी पर कसा है।

उक्त प्रकार की घटना के ही समान प्रख्यात परा मनोवैज्ञानिक ए0पी0 सीनेट ने भी ऐसा ही एक चौंका देने वाला अनुभव लिखा है। सीनेट एक बार झील के किनारे चहलकदमी कर रहे थे एकाएक उन्हें लगा कि कोई युवती आत्मघात के उद्देश्य से झील में कूदने जा रही है। उन्होंने युवती को देखा और उसे पकड़ने के लिए दौड़े ताकि उसे आत्मघात से बचाया जा सके , पर इसके पहले ही लड़की पानी में कूद चुकी थी। छपाक् की आवाज हुई और सीनेट लोगों को उसे निकालने के लिए पुकारने लगे। लोग आये, उन्होंने झील में लड़की का मूर्छित शरीर या शव निकालने के लिए काफी देर तक डुबकियाँ लगायीं। बाद में पुलिस को रिपोर्ट की गई, पर यह जानकर आश्चर्य हुआ कि प्रति वर्ष इसी दिन और इसी समय आत्म-हत्या की रिर्पोट दर्ज करायी जाती है। पिछली पन्द्रह-सोलह साल की फाइलों में एक सी रिपोर्ट, आत्महत्या लड़की का एक सा हुलिया और एक से कपड़े बताये जाते हैं।

सीनेट ने यह क्रम कब से शुरू होता है- यह बताने का आग्रह किया तो पता चला कि सोलह साल पहले इसी हुलिया की लड़की ने आत्म हत्या की थी। उसके परिवार वालों ने इसके शव को ढूंढ़ा और निकाला था। इस प्रकार घटनाओं की पुनरावृत्ति का कारण बताते हुए ‘टेननीक्स आफ एस्ट्रल प्रोजेक्शन’ ‘सुप्रीम ऐडवेचर’ तथा ‘मोरल एस्ट्रल प्रोजेक्शन’ जैसी विश्व विख्यात पुस्तकों के लेखक रार्वट कूकल ने लिखा है कि- मृत्यु चाहे दुर्घटना से हुई हो या आत्मघात द्वारा। मरने वालों का सूक्ष्म शरीर (एस्ट्रल-बॉडी) तुरन्त यह अनुभव करने में असमर्थ होता है कि वह मर गया है। किसी तालाब में ढेला फेंकने के बाद जिस प्रकार बहुत देर तक तरंगें उठती रहती हैं उसी प्रकार मृतक व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर भी उन घटनाओं की मूर्च्छा की दशा में पुनरावृत्ति करता है। ए0पी0 सीनेट द्वारा उल्लेखित इस घटना का यही कारण है।

रार्बट कूकल ने अपनी पुस्तकों में ऐसे बहुत से तथ्य संग्रहीत किये हैं कि जो उन्होंने मृतात्माओं से प्रत्यक्ष वार्तालाप सम्पर्क, खोज-बीन और प्रयोगों के आधार पर खोजे हैं। उनके निष्कर्ष भारतीय तत्वज्ञान को ही पुष्ट करते हैं जो यह मानता है कि मृत्यु केवल स्थूल शरीर की होती है। प्राणी के साथ उसका सूक्ष्म शरीर, इच्छाएं, वासनाएं, आकाँक्षाएं और भावनाएं साथ ही जुड़ी रहती हैं जो उसे पारलौकिक जीवन में ही नहीं दूसरे जन्मों में भी नियंत्रित और प्रभावित करती हैं। मोह और अतृप्त वासनाओं के सम्बन्ध में कूकल ने लिखा है- “जो लोग मोह के वशीभूत हैं तथा जिनके जीवन में अतृप्त वासनाएं घर किये रहती हैं उनकी एस्ट्रल बॉडी पूर्णरूप से- ईश्वर से मुक्त नहीं होती। उनके लिए सारा वातावरण धूमिल अन्धकार पूर्ण और भयावह रहता है।” इसे ही भारतीय धर्मशास्त्रों ने अपनी अलंकारिक भाषा में नरक कहा है।”

अन्त में जे0 बर्नार्ड हटन द्वारा देखी गई एक अनोखी घटना के पुनर्जन्म का भी स्पष्टीकरण किया है जिसका कारण बताते हुए उन्होंने लिखा है- “भय और आसक्ति समान रूप से मनुष्य के सूक्ष्म शरीर को प्रभावित करती है। आकस्मिक दुर्घटनाओं में तो इसलिए और भी ज्यादा कि बहुत काल तक मृत्यु का ही भान नहीं होता और अपने शरीर से बंधा हुआ उसका लगाव उसे पुनः पुनः संघर्षों की ओर धकेलता है।”

इस प्रकार की घटनाओं के पुनर्जन्म का पूर्ण स्पष्टीकरण तो गहन प्रवेश की क्षमता या इस दिशा में की जाने वाली खोजों द्वारा ही हो सकता है। बहरहाल वैज्ञानिकों के लिए यह गुत्थी आज भी उलझी हुई है कि उस घटना की प्रतिवर्ष उसी दिन किस प्रकार पुनरावृत्ति होती रही है।


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