जिन्दगी जीना कला है (kavita)

May 1976

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जिन्दगी जीना कला है और जीवन साधना है। जिन्दगी सोना नहीं है जिन्दगी तो जागना है॥

हर सृजन, पूजन, भजन, हर कर्म तप है अर्चना है। भाव में भगवान है तो, क्या नहीं आराधना है॥

हर पसीना अर्घ्य, निष्ठावान दिव्य उपासना है। जिन्दगी जीना कला है और जीवन साधना है॥

श्वास का प्रतिफल सफर है प्यास ही चलती डगर है। है कहाँ ठहराव राही, यह जगत पथ का नगर है॥

कारवाँ रुकता न कोई, राहियों को जानना है। जिन्दगी जीना कला है और जीवन साधना है॥

दृश्य तो बँधते न दृग से, रूप तो बिखरे पड़े हैं। दृश्य में उलझे बँटोही, बीच राहों में खड़े हैं॥

पाँव का अविराम चलना, लक्ष्य पार उतारना है। जिन्दगी जीना कला है और जीवन साधना है॥

यह समय बहती नदी है, हाथ से आती नहीं है। सामने ही भागती है, दूर भी जाती नहीं है॥

हर तृषातुर अंजली को तृप्ति की सम्भावना है। जिन्दगी जीना कला है और जीवन साधना है॥

-लाखन सिंह भदौरिया ‘सौमित्र’

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*समाप्त*


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