वीरता के साथ विवेक भी
वह वीरता कैसी जिसमें शक्ति के साथ आत्म संयम न हो। वीरता उन्माद नहीं, वह आँधी नहीं है, जो उचित-अनुचित का विचार न करती हो। तुम्हें दूसरे क्षेत्रों में भी ध्यान दौड़ाना चाहिये, केवल शक्ति-बल पर टिकी हुई वीरता बिना पैर की होती है, उसके साथ विवेक का समभाव भी बना रहना चाहिये।
-जयशंकर प्रसाद