प्रेरणा-प्रद दोहे

February 1961

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

नारायण दो बात को, दिजै सदा बिसार।
फरी बुराई और ने, आप कियो उपकार।।
दो बातन को भूल मत, जो चाहे कल्यान।
नारायण इक मौत को, दूजे श्री भगवान।।
तज पर-अवगुण नीरको, क्षीर गुणन सों प्रीत।
हंस संत की सर्वदा, नारायण यह रीत।।
तनक मान मन में नहीं, सबसों राखत प्यार।
नारायण ता संत पै, बार बार बलिहार।।
अति कृपालु संतोप वृत्ति, जुगल चरण में प्रित।
नारायण ते संत बर, कोमल वचन विनीत।।
मगन रहैं नित भजन में, चलत न चाल कुचाल।
नारायण ते जानिये, ये लालन के लाल।।
पर हित प्रित उदार हित,विगत दंभ मग रोप।
नारायण दुख में लखै, निज कर्मन कै दोप।
संत जगत में सो सुखी, मैं मेरी को त्याग।।
नारायण गोविन्द पद, दृढ़ राखत अनुराग।
जिनके पूरण भक्ति है, ते सबसों आधीन ।
नारायण तज मान मग, ध्यान सलिज्ञ के मीन।।
नारायण हर भक्ति की, प्रथम यही पहचान।
आप अमानी है रहे, देत और को मान।।
कपट गाँठ मन में नहीं, सबसों सरल सुभाव।
नारायण ता भक्त की, लगी किनारे नाब।।
जिनको मन हरि पद कमल, निसिदिन भ्रमर समान।
नारायण तिनसों मिले, कबहुँ न होवें हान ।।
नारायण हरि कृपा की, तकत रहै नित बाट।
जानहार जिमिपार को, निरखत नौका घाट।।
चाह मिटी चिंता गई, मनुवा बेपरवाह।
जाको कछू न चाहिये, सोई साहनसाह।।
नारायण होवै भले, जो कछु होवनहार।
हरिसों प्रीत लगायकै, अब कहा सोच-विचार।।
नारायण अति कठिन है, हरि मिलिवे की बाट।
या मारग तब पग घरैं, प्रथम शीश दै काट।।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: