‘जब तक हम स्वयं अपने छोटे-छोटे दीपकों को न जलाये, तब तक आकाश-दीप जलाना व्यर्थ है। इसी प्रकार जब तक हम स्वयं अपनी तैयारियाँ न करें तब तक संसार की तैयारियों की सारी निधि भी उसी तरह प्रतीक्षा करती रहती है, जैसी वीणा अंगुली के स्पृश् की राह देखती है।
-रवीन्द्रनाथ ठाकुर
कर्म करने वाले पुरुष को ही इस जगत में श्री अर्थात् ऐश्वर्य मिलता है।
-महाभारत