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August 1961

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‘जब तक हम स्वयं अपने छोटे-छोटे दीपकों को न जलाये, तब तक आकाश-दीप जलाना व्यर्थ है। इसी प्रकार जब तक हम स्वयं अपनी तैयारियाँ न करें तब तक संसार की तैयारियों की सारी निधि भी उसी तरह प्रतीक्षा करती रहती है, जैसी वीणा अंगुली के स्पृश् की राह देखती है।

-रवीन्द्रनाथ ठाकुर

कर्म करने वाले पुरुष को ही इस जगत में श्री अर्थात् ऐश्वर्य मिलता है।

-महाभारत


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