“शरीर और कीर्ति दोनों नाशवान् है और मृत्यु भी सदा निकट रहती है,
इस कारण धर्म संग्रह करना उचित है-चाणक्य“धर्म की क्षति जिस अनुपात से होती है, उसी अनुपात से आडम्बर की वृद्धि होती है।”
‘वास्तविक धर्म यह है कि जिस बात को मनुष्य अपने लिए उचित नहीं समझता,
दूसरों के साथ वैसी बात हरगिज न करे।-भीष्म पितामह