सच्ची मित्रता की प्यास।
दार्शनिक शोपनहार कुछ अच्छे मित्र चाहते थे। जिनके सहारे जिंदगी आनन्दमय बन सके। पर ऐसे मित्र जीवन भर में उन्हें एक भी न मिला, जो मिले धूर्त और खुदगर्ज। अन्त में उन्हें एकाकी मित्र विहीन जीवन बिताने का विवश होना पड़ा। उनका एक ही सच्चा मित्र रहा, वह था उनका कुत्ता जिसे वे आत्मा नाम से पुकारते थे।
शोपनहार ने अपने मित्र विहीन एकाकी जीवन की व्यथा को बड़े मार्मिक शब्दों में कहा है, इस अभाव ने उन्हें कितना मर्माहत किया था यह उन्हें के शब्दों में सुनिए-मेरा सारा जीवन एकाकी-मित्र विहीन-बीत गया। इस अभाव का जब मैं चिंतन करता हूँ तो अनायास ही मेरा मन व्याकुल हो उठता है। मैं भगवान से एक ही प्रार्थना करता रहा-प्रभो मुझे एक मित्र दो, पर उनने मेरी विनति सुनी नहीं। इसमें मेरा ही दोष है यह मैं नहीं मानता। जिस व्यक्ति में मुझे मानवता की जरा भी छाया दिखाई दी, उससे लिपटने की मैंने कोशिश की, कभी उसे अपने से दूर हटाना नहीं चाहा। पर जब कि मेरा अन्त समय निकट आ पहुँचा है मैं कहना चाहता हूँ कि किसी को मैं अपना नहीं बना सका।
अहिंसा और हिंसा
सन् 23 में पक्का महल में एक साम्प्रदायिक दंगा हुआ अत्याचार पीड़ित कुछ हिन्दू गाँधीजी के पास साबरमती पहुँचे और उनने मुसलमानों के अत्याचारों का रोमांचकारी वर्णन किया। बापू को बहुत दुःख हुआ। उनने पूछा तो आप लोगों ने मुकाबला करने के लिए क्या किया? उन लोगों ने कहा करते क्या आपकी अहिंसा ने तो हमारे हाथ पाँव बाँध रखे हैं। इसी से हमें अत्याचार सहने पढ़े।
गाँधीजी क्षुब्ध हो गये और बोले-मेरी अहिंसा ऐसे समय पर मर मिटने का आदेश देती है। आप में यदि वैसा साहस नहीं था तो अपने ढंग से अपने विश्वास के अनुसार हिंसा से भी मुकाबला करते। आपने मेरे मन को समझा नहीं और अपने मन पर चलने का साहस न कर सके।
शक्ति का दुरुपयोग
जब अणु शक्ति के उपयोग से बम बनाने और मानव को संहार करने की तैयारी होने लगी तो अणु शक्ति के रहस्योद्घाटन विज्ञानाचार्य अलबर्ट आइंस्टीन की आत्मशक्ति के इस दुरुपयोग को देखकर रो पड़ी। उनने रुद्ध कंठ से कहा-यदि मुझे नये सिरे से जीवन जीने का अवसर मिले तो मेरा विज्ञान के साथ तनिक भी संबंध न रहेगा। अणु बम बनाने वाले वैज्ञानिक की अपेक्षा में बढ़ई, लुहार, चमार, या चपरासी का काम करना अधिक पसंद करूँगा
जीवन की खेती।
मेहता कालूराम अपने पुत्र नानक को खेती करने का आदेश देते हैं। नानक कहते हैं-मैंने अपने लिए एक नई खेती बोई है और वह अच्छी लगी है। इस पर उनके पिता पूछते हैं-इस शरीर रूपी खेत में सत्कर्मों का हल चला कर परमात्मा के भजन रूपी बीज को मैंने बोया है। साधु संगति का इसमें पानी देता रहता हूँ और संतोष रूपी खाद लगाता हूँ। वह घर धन्य है जहाँ ऐसी खेती होती है।’
सब के लिए एक ही मार्ग
सिकन्दरियों के राजा टालेमी को शिक्षा शास्त्री यूक्लिड रेखागणित पड़ा रहे थे। टालेभी ने कहा क्या इसके सीखने का कोई सरल मार्ग नहीं है? यूक्लिड ने उत्तर दिया- यह ठीक है कि राजा के लिए सुंदर राजमार्ग होते हैं, किन्तु शिक्षा के लिए सबको एक ही मार्ग से गुजरना पड़ता है।
जाति और पानी।
एक बार भगवान बुद्ध कहीं जा रहे थे। रास्ते में प्यास लगी। कुँए पर चाण्डाल कन्या पानी भर रही थी। उसने पानी माँगा तो कन्या ने कहा- मैं तो चाँडाल हूँ। बुद्ध ने कहा-देवी मैं कुल जाति नहीं पूछता पानी माँगता हूँ। कुल जाति और पानी का क्या संबंध है? कन्या ने पानी दे दिया।
विवाह का पछतावा
एक व्यक्ति ने सुकरात से पूछा-मैं विवाह करूँ या न करूँ? सुकरात ने उत्तर दिया-करो या न करो, दोनों ही हालत में तुम्हें पछताना पड़ेगा।
परमेश्वर सब कुछ देखता है।
मंगोलिया में चागंशेन नाम का एक न्यायशील अफसर रहता था। वह अभावग्रस्त जीवन व्यतीत करता पर किसी से रिश्वत न लेता था। एक दिन उसके एक धनी मित्र ने उससे अपने पक्ष में कुछ काम कराने के लिए अशर्फियों की थैली भेंट की और कहा-हमारे आपके सिवाय इस बात को तीसरा न जान सकेगा। इस थैली को रखिए और मेरा काम कर दीजिए। चागंशेन ने कहा-मित्र यह मत कहो कि कोई नहीं देखता। यह धरती देखते है, आकाश देखता है और सबका मालिक परमेश्वर देखता है।
दाम्पत्य जीवन की दुर्दशा।
प्रसिद्ध उपन्यास लेखिका मेरी कुरली से किसी ने पूछा-आप विवाह क्यों नहीं करती? उनने उत्तर दिया-मैंने तीन जानवर पाल रखे हैं जो मिलकर पति का काम कर देते हैं। एक कुत्ता पाला है जो सबेरे गुर्राता है। एक तोता है जो शाम को बड़ी-बड़ी कसमें खाने और सब्जबाग दिखाने की बोली सीख गया है। एक बिलाव पाला है जो इधर उधर भटकता हुआ रात को देर में घर पहुँचता है। यही तो आज कल के पति भी करते हैं।
विद्वान् का निरहंकार।
गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त के आविष्कर्ता सर आईजक न्यूटन कहा करते थे कि लोग मुझे ज्ञानवान समझते हैं, पर जब मैं अपने उपलब्ध ज्ञान की ओर विश्व में फैली हुई महान् ज्ञान गरिमा की तुलना करता हूँ तो लगता है कि समुद्र के किनारे पर बैठकर घोंघे और सीपी बीनने वाले बालक की तरह ही मेरा तुच्छ प्रयास है।
पछतावा क्यों ?
जर्मनी का नाजी नेता गायेरिंग द्वितीय महायुद्ध के असफल होने पर पकड़ा गया और जेल में डाल दिया गया। इस पर भी उसकी जिन्दादिली न गई। जेल अधिकारियों से उसने कहा-जेलों को नये सिरे से निर्माण करने वाले सेनापति को ऐसी सड़ी गली जेल में डाल रखना आपके लिए उचित नहीं। मेरे जैसे आदमी को जेल में भी साफ और खुली हवा की जरूरत है।
मृत्यु दंड सुनकर गोवरिंग ने सहज मुद्रा में पुकारते हुए कहा-युद्ध में हारने वालों को मौत ही मिलती हैं इसमें पछताने की क्या बात है?