सोच मनुज-जीवन क्षण भंगुर, सबसे प्यार करो!
समझ प्रर्त्य, मत डरो मृत्यु से, पर-उपकार करो!!
देख यहाँ तू सुरा सुन्दरी,
निज संयम मत तोड़।
व्यर्थ बिता मत दुर्लभ जीवन,
चेत, व्यसन सब छोड़॥
कमल पत्र की भाँति विश्व में रह, व्यवहार करो!
बिता संयमित सुंदर जीवन, जग का भार हरो !!
मानव वही, हरे पर पीड़ा,
अपना सुख सब त्याग।
भूले भटके व्यथित जनों से,
करता जो अनुराग।।
छोड़ मोह, निष्काम-भाव से तुम उद्धार करो!
बनो स्वावलंबी कथनी तज, श्रम-सत्कार करो!!
कर्म भूमि यह, कर्म करो शुभ,
हो नव-युग-निर्माण।
पाकर अनुज-देह कर साधन,
हो जिससे निर्वाण।।
सत्य-प्रेम के सुमन चयन कर नव-उपहार करो!
नये रूप से तुम वसुधा का नव शृंगार करो!!
-राम स्वरूप खरे’साहित्य रत्न’