पार्थिव जगत में मानव को जो सार्वभौमता प्राप्त हुई है, उसे आत्मा की शक्ति के द्वारा ही नियन्त्रित किया जा सकता है। शुष्क विज्ञान मानवीय मूल्य की सहायता के समाज का कल्याण नहीं कर सकता। विज्ञान सार्थक तभी हो सकता है जब उसका प्रयोग करने वाले उच्च आदर्शों द्वारा प्रेरित हों। दूसरे शब्दों में, जैसे मनुज जीवन में समृद्ध हुआ है वैसे ही जब तक वह अपने भीतर के जीवन को भी संवर्धित और विकसित नहीं कर लेता तब तक पृथ्वी पर एकता, सहृदयता, प्रेम और सौंदर्य के स्वर्ग की प्रतिष्ठा नहीं हो सकती। यह केवल आध्यात्मिकता के विकास से ही हो सकती है। पाश्चात्य लोग इस सत्य का अनुभव करने लगे हैं, कि उनकी चेतना इतनी बहिर्मुखी हो गई है आत्मा, भगवान, अमृतत्व पर उन्हें विश्वास न हो पाता। लेकिन जब तक मनुष्य भगवान शासन को स्वीकार नहीं करता, उसके जीवन में मधु बसन्त की बयार नहीं बह सकती।
-श्री अर्रा