आगामी वर्ष का विश्व भविष्य

April 1961

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(श्री.के. कुरियाँ)

सन् 1962 की 3 फरवरी की संध्या के 5॥ बजे प्रकाश स्थिति आठ ग्रहों का मकर राशि में योग होने वाला है, जो दो दिन तक उसी प्रकार बना रहेगा। जब इतने अधिक ग्रह अपना प्रभाव एक ही क्षेत्र पर सम्मिलित रूप से डालने लगते हैं, तो इसके परिणाम स्वरूप वहाँ अनेकों ऐसी घटनायें होती हैं जो समाज, राष्ट्र और व्यक्तियों के लिए नाशकारी अथवा कष्टदायक सिद्ध होती हैं।

सन् 1961 में अगस्त की 16 तारीख (बुधवार) को दोपहर के समय (ग्रीनविच टाइम से) सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करेगा। उस समय बुद्ध, हर्शल, राहु और प्लूटो कन्या राशि में एकत्रित होने मंगल की उन पर क्रूर दृष्टि होगी। इसके पश्चात् ही यह आठ राशियों वाला योग 3 फरवरी, 1962 को होगा। 5 फरवरी को एक खग्रास सूर्य ग्रहण भी मकर राशि में होगा जो पृथ्वी के दक्षिण भाग, जैसे फिजी आस्ट्रेलिया आदि में स्पष्ट रूप से दिखाई देगा। दूसरा सूर्य ग्रहण 31 जुलाई को कर्क राशि में होगा।

ज्योतिष विद्या के ग्रंथों में बतलाया गया है कि राशि-चक्र के किसी एक भाग में इस प्रकार बहुत से ग्रहों का इकट्ठा हो जाना, अथवा ग्रहण के अवसर पर उनका हानिकारक प्रभाव पड़ना मानव-जीवन के लिए अशुभ होता हैं। चूँकि मनुष्यों का संबंध घनिष्ठ रूप से समाज और राष्ट्र से रहता है इसलिए इस प्रकार की ग्रहस्थिति का प्रभाव संसार की राजनैतिक अवस्था पर अनिवार्य रूप से पड़ता है। सन्निकट में जो भी वस्तु वर्तमान है उसका कुछ भविष्य भी अवश्य होता है और ज्योतिष द्वारा हम उसको जानने का प्रयत्न करते हैं।

क्योंकि मैं निश्चित रूप से “वेदाँग ज्योति” में विश्वास रखता हूँ, इस लिए मैं राजनैतिक और व्यक्तिगत मामलों के लिए दो विभिन्न विधियों से विचार करने के पक्ष में नहीं हूँ। ‘वेदाँग ज्योतिष” के अनुसार प्रत्येक भौगोलिक प्रदेश में एक निश्चित राशि होनी है और उसी के अनुसार उसका फलाफल होता हैं ये नियम हजारों वर्ष पहले निश्चित कर दिये गये थे। मैंने भी पिछले बीस-तीस वर्षों में उनकी बारम्बार परीक्षा की है और उनको पूर्ण रूप से सत्य पाया है।

मेष राशि मुख्य रूप से इंग्लैण्ड और उसके समीप स्थित यूरोपियन देशों की शासक है। यहाँ कारण है कि महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय मामलों का नेतृत्व समय-समय पर उसी देश के व्यक्तियों द्वारा किया जाता है और जब तक पृथ्वी की धुरी में परिवर्तन होकर इंग्लैण्ड की राशि बदल नहीं जायेगी तब तक ऐसी ही स्थिति बनी रहेगी। जब कभी मेष राशि पर आघात होता है तो इंग्लैण्ड वाले लड़खड़ा जाते है, गिर पड़ते हैं, पर फिर शीघ्र ही खड़े होते है। यही बात रूस की है। आज कल पूँजीपति श्रेणी के लोग प्रायः यह कल्पना किया करते हैं कि जहाँ मित्र राष्ट्रों ने एक बम गिराया कि कम्यूनिज्म का अन्त हुआ। पर ज्योतिष का मत इसके विपरीत है। अभी सूर्य उसी कुम्भ राशि में चल रहा है, जो रूस की शासनकर्ता है। उसके प्रभाव से वे अभी दो हजार वर्ष तक वर्तमान प्रमुख पद पर स्थिर रहेगा इसके बाद सूर्य मकर राशि में आ जायेगा जो कि उत्तर भारत की शासिका मानी जाती है। सूर्य का प्रभाव अन्य ग्रहों के साथ में अशुभ हो जाता है, इस लिए रूस में घरेलू भगोड़ों के कारण समय-समय पर प्राण हानि होती रहेगी और बाहर वाले भी उसे यातनाऐं देंगे, तो भी उसकी वृद्धि होती रहेगी ओर उनकी शासन प्रणाली संसार के अनेक भागों में प्रचलित हो जायेगी।

अमेरिका की राशि मिथुन है। मेरा व्यक्तिगत विचार यह है कि वहाँ के लोग आगामी छः सौ वर्ष तक अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में नेतृत्व करेंगे

मनुष्य ओर मनुष्य अथवा राष्ट्र और राष्ट्र के बीच युद्ध होना प्राकृतिक नियम है और वही नक्षत्रों और ग्रहों द्वारा प्रकट होता है। यह कहना या समझना भूल है कि ग्रहों के कारण युद्ध या अन्य देवी उत्पाद होते है। अगर मनुष्य वैज्ञानिक प्रगति द्वारा प्रकृति पर विजय प्राप्त करता है तो प्रकृति युद्ध के द्वारा मनुष्य पर विजय प्राप्त करती है। जब तक संसार के सब मनुष्य मिलकर एक परिवार के रूप में संगठित न हो जायेंगे तब तक किसी भी प्रकार की उन्नति स्थायी नहीं हो सकती। मेरा मन यह है कि आकाशस्थितः ग्रहों की विभिन्नता के होते हुये भी मनुष्य का लक्ष्य संसार को एक के सूत्र में बाँधना होना चाहिए।

सन् 1961 की तीसरी तिमाही में सिंह राशि में कई क्रूर यहाँ का योग होने वाला है। यह राशि भूमध्य सागर के प्रदेश की शासनकर्ता है और इस के कारण वहाँ पर तनाव ओर अशान्ति का वातावरण उत्पन्न होगा। इंडियन नेशनल काँग्रेस की कुंडली में राहु छठे घर में है। राजनैतिक कुंडलियों में राहु को वामपन्थी अथवा कम्यूनिस्ट माना जाता है। राहु स्वभावतः क्रूरग्रह है और जब छठे घर में हो तो शत्रु बनाने उन्हें नष्ट करने, कर्जदार बनाने में समर्थ होता है। काँग्रेस वालों को इस क्रूरग्रह का प्रभाव इस प्रकार अनुभव होगा जैसे कपड़ों के भीतर कोई काटने वाला कीड़ा चल रहा हो। भूमध्य सागर की स्थिति परिणाम में भारतवर्ष के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकती है। यह घटना मिथुन राशि के तीसरे घर में होगी, इससे अमरीका को चिन्ताजनक इंग्लैण्ड की प्रतिष्ठा को घटाने वाली होगी। सिंह राशि ओर उसके स्वामी सूर्य का संबंध सुवर्ण से भी है। इस लिये हम ग्रह दशा का प्रभाव सोने ओर उससे संबंधित व्यक्तियों पर भी हानिकारक पड़ सकता है। जब हर्बल सिंह राशि में होकर मकर में जाने लगेगा तो उसका अशुभ प्रभाव भारत की आर्थिक व्यवस्था पर पड़ेगा और इस संबंध में कठिनाइयों में होकर गुजरना पड़ेगा। इस समय से पाना की बिजली का स्थान एटम और सूर्य द्वारा उत्पादित बिजली लेने लगेगी और इससे उद्योग धन्धा का बहुत रूपान्तर होगा।

सिंह राशि राजवंशी शासकों पर भी आधिपत्य रखनी है, इस लिये जब उससे क्रूर ग्रहों का प्रवेश होता है तो उनका अशुभ परिणाम ऐसे मुकुट धारियों पर विशेष रूप से पड़ता है। इसी प्रकार जो ग्रहण क ग्रहों के साथ होता है उसका प्रभाव भी प्रायः देशों के बजाय उसके शासकों पर पड़ता है। इसलिये इस समय में कितने ही राजाओं ओर राजवंशी शासकों का अन्त हो जाय तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

मकर राशि ‘जलचर तत्वम्’ पर अधिकार रखती है। क्योंकि शनि और मंगल कुम्भ राशि के 12 वें और मिथुन राशि के 8 वें घर में हैं, इसलिये सम्भवतः अमरीका को किसी मछली के आकार के विशालकाय अस्त्र का सामना करना पड़ेगा जो कि ऐटोमिक शक्ति से चलता होगा। अमरीका के गुप्तचर इस अस्त्र का भेद जानने का प्रयत्न करेंगे

जो भौगोलिक प्रदेश मकर राशि द्वारा शासित है, जैसे भारतवर्ष, उनमें बहुत उपद्रव और गतिरोध होगा। इस राशि चिह्न का आधा भाग तो पृथ्वी से संबंधित है और शेष आधा नदियों, झीलों, दलदलों आदि से संबंध रखता है। इसलिए इस अवसर पर पृथ्वी के स्तरों में भूकम्प आदि के द्वारा उलटफेर होने का सम्भावना है। भारत के धर्म की प्रभावना बढ़ेगी और संसार के अन्य देशवासियों से आध्यात्मिक संबंध में वृद्धि होगी। बुद्ध मकर राशि में बृहस्पति से 25 अंश के अन्तर पर रहेगा। इससे यहाँ किसी प्राचीन बहुत महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के प्राप्त होने की सम्भावना है।

फरवरी और जुलाई के ग्रहण अशुभ फल वाले है। इसलिए मकर और कर्क राशि द्वारा शासित देशों के प्रमुख शासन कर्ताओं की मृत्यु का भय है।

मकर राशि पेड़ों के तने की सी या सिलैण्डर की आकृति की वस्तुओं का संकेत करना है। उसमें शनि, मंगल और केतु की उपस्थिति उसका धातु या प्लास्टिक से बना हुआ होना प्रकट करती है। पृष्टादय केतु बन्दूक या कारखाने की चिमनी से निकलने वाले धुएँ की सूचना करता है। क्योंकि केतु, बृहस्पति और शुक्र के बची में अवस्थित होगा इसलिए धुएँ का रंग लालिमा और नीलापन लिये होगा। इन सब बातों से इस अवसर पर एटम बम राकेटों का प्रयोग होने का पूरा भय है, जिसे निराधार नहीं कहा जा सकता।


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