सत्य की शुभ ज्योति में कब
जब करेगा आत्म-दर्शन
विश्व में कब मुक्त-वाणी का मनोहर गान होगा,
कर स्वेच्छाचारिता की रात का अवसान होगा,
हास बिखरेगा धरा पर, मंजु स्वर्ग विहान होगा,
नन्दनोपम मोदमय उजड़ा हुआ उद्यान होगा,
खिल उठेंगे दिव्य द्यूति से
मानवों के ये मलिन मन?
कब अशान्त वसुन्धरा पर शान्ति का अवतार होगा,
अस्थिओं के जाल में फिर रक्त का संचार होगा,
दीप्तिमान विशुद्ध हेम समान यह संसार होगा,
बीच धारा में फँसा बेड़ा मनुज का पार होगा।
लोल-तन कल्लोलकारी
कब बनेगा रुद्ध जीवन?
आँसुओं की धारा में घुल-धुल न अपने दिन भरेंगे,
काँपते थर-थर न नंगे ओर भिखमंगे फिरेंगे,
भूख में बेबस पड़ कर ही न यों मानव मरेंगे,
यों न भाई भाइयों के रक्त का शोषण करेंगे।
टूट बिखरेंगे गलित हो
विश्व के ये विषम बन्धन?
सत्य की शुभ-ज्योति में कब
जग करेगा आत्म-दर्शन
-महावीर प्रसाद विद्यार्थी एम.ए., साहित्यरत्न,
*समाप्त*