त्यौहार और संस्कार एक संस्कृति के प्राण कहे जो सकते हैं। संस्कारों द्वारा तो मनुष्यों के अन्तःकरण पर जीवन को श्रेष्ठ बनाने वाले उत्तम विचारों की अमिट छाप डालने का प्रयत्न किया जाता है। त्यौहार एक देश और जाति की सामूहिक समस्याओं को सुलझाने का माध्यम बनते हैं। इन शुभ अवसरों पर मिल जुल कर, संगठित रूप से यह विचार विनिमय किया जाता है कि हमारी अमुक समस्या का समाधान किस प्रकार से किया जा सकता है। त्यौहारों द्वारा मानव मस्तिष्क पर क्रियात्मक रूप से यह छाप डालने की चेष्टा की जाती है कि हम सब समाज रूपी शरीर के अभिन्न अंग है। अपने को समाज से पृथक मानने और वैसा व्यवहार करने में अपने स्वार्थों का ही हनन करना है और समाजहित का ध्यान रखते हुए तदनुरूप व्यवहार करने में सब प्रकार से अपना और समाज का लाभ है।
जिस प्रकार से विजयादशमी स्वास्थ्य संवर्धन का, बसंत पंचमी विद्या का, शिवरात्रि त्याग का, होली सफाई और स्वच्छता का, रामनवमी न्याय की रक्षा का, गायत्री जयन्ती तप का, गुरु पूर्णिमा श्रेष्ठ पुरुषों और गुरुजनों के सम्मान का, हरियाली अमावस्या वृक्षारोपण का, श्रावणी यज्ञोपवीत और वेद का, कृष्ण जन्माष्टमी गौ पालन का त्यौहार है, उसी प्रकार दिवाली हमारी आर्थिक समस्या को सुलझाने का शुभ अवसर है या यूँ कह सकते हैं कि दीपावली राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था का दिग्दर्शन करने और उसकी प्रगति के लिए नवीन योजना बनाने का समय है। अर्थ व्यवस्था व्यक्तिगत व सामूहिक दोनों रूपों से एक महत्वपूर्ण समस्या है जिसको सुलझाये बिना हम सुख और समृद्धि के मार्ग पर नहीं चल सकते। जो धन सम्पत्ति हमारे पास है या अपने पुरुषार्थ द्वारा हम कमाते हैं, उसका क्या उचित उपयोग होना चाहिए, पिछले वर्ष में जो आर्थिक कठिनाइयाँ हुईं उनके क्या कारण थे ओर उनको दूर करने के लिए आगामी वर्ष में क्या-क्या प्रयत्न करने चाहिएं। आड़े वक्त में काम आने के लिए अपनी आय में से कौन-कौन से खर्चे कम करके बचत योजना बनानी चाहिए, इन बातों पर सामूहिक रूप से विचार करने के लिए ही दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है। इसलिए इस दिन लक्ष्मी पूजन किया जाता है और पिछले वर्ष के आय व्यय का लेखा जोखा नई बहियों पर अपना व्यापार शुरू किया जाता है। उनका पूजन किया जाता है। इस दिन अपनी आय व्यय का बजट बनाया जाना चाहिए। उसकी परीक्षा करनी चाहिए। जो व्यक्ति अपनी आय-व्यय की जाँच पड़ताल नहीं करता, यह देखने का प्रयत्न नहीं करता कि कहीं मेरी आय से अधिक खर्च तो नहीं हो रहा, उसको बुद्धिमान मनुष्य नहीं का जा सकता क्योंकि उसके सामने कठिनाइयों का आना स्वाभाविक है। वर्ष में एक बार तो इस पर विचार कर ही लेना चाहिए। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी ऐसे व्यक्ति को विचारवान कहा है।
“तुलसी, सो समरथ, सुमति,
सुकृती, साधु सुजान।
जो विचारि व्यवहरत जुग,
खरच लाभ अनुमान॥
गृहस्थ जीवन में कार्य व्यस्तता के कारण नित्य प्रति जिन बातों पर विचार करने में हम असमर्थ रहते हैं, उनको अतिरिक्त समय में विशेष प्रकार की प्रसन्न मुद्रा में सोचने का अवसर हमें इन त्यौहारों से मिलता है।
दिवाली पर आगामी वर्ष की बचत योजना में बजट भी बना लेना चाहिए। जितनी आय हो, उतना ही खर्च करने में भी बुद्धिमानी नहीं है क्योंकि, कौन जानता है कि कब मुसीबत पड़ जाय। इसलिए विपत्तिकाल के लिए अवश्य धन संचय रखने की योजना बनानी चाहिए कि आगामी वर्ष में हर मास इतने रुपये कमाये जायेंगे। बचत योजना में सहयोग के लिए साधन हमारे सामने है। बैंक या डाकखाने में कुछ रकम अपनी धर्म पत्नी या बच्चों के नाम से जमा करा सकते हैं, अपने जीवन का बीमा करा के हर मास कुछ रुपए निकाल सकते हैं, नेशनल सर्टिफिकेट खरीद सकते हैं या फिक्स डिपॉजिट करा सकते हैं।
पूर्व काल में लोग बचत के लिए जेवर आदि मूल्यवान धातुओं की वस्तुओं को बनवा लेते थे। और कान, गले, हाथ, नाक आदि शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों पर पहन लेते थे क्योंकि उस समय धन की सुरक्षा का भय होता था। चूँकि आज धन की सुरक्षा के लिए बैंक आदि अन्य साधन उपलब्ध हैं इसलिए जेवरों की कोई आवश्यकता नहीं प्रतीत होती। उसमें तो आर्थिक हानि ही है क्योंकि जितने धन को जेवर के रूप में बंद कर लेते हैं उससे पर्याप्त मात्रा में ब्याज मिल सकता है।
दिवाली को छोड़कर अन्य त्यौहारों पर केवल एक देवता या अवतार की ही पूजा की जाती है या उनके साथ धर्म पत्नी की, जैसे राम के साथ सीता, शंकर के साथ पार्वती की पूजा होती है। यह दिवाली के त्यौहार की विशेषता है कि इसमें दो ऐसे देवी देवताओं का पूजन होता है जिनका सीधे रूप में कोई संबंध नहीं है। लक्ष्मी और गणेश का साथ-साथ पूजन करने का अर्थ यह है कि लक्ष्मी का आह्वान करने के साथ साथ, विचारशीलता का भी समावेश होना चाहिए। धन कमाने के साथ उस का उचित उपयोग भी जानना चाहिए। जिस प्रकार से अग्नि अत्यन्त लाभदायक होते हुए भी असावधानी में हानि पहुँचा देती है उसी प्रकार से धन से सब सुख सुविधाएं प्राप्त होते हुए भी यदि उसका दुष्प्रयोग किया जाए तो वह जीवन को नाश की ओर ले जाता है।
सामाजिक दृष्टि से देखने पर भी दीवाली का महत्व कम नहीं है क्योंकि दीवाली आने से कई दिन पूर्व ही सर्वत्र घर द्वार की सफाई होनी आरंभ हो जाती है। घर की दीवारों पर सफेदी और रंगाई की जाती है। टूटे फूटे स्थानों की मरम्मत की जाती है। चूने और सीमेंट के अभाव में मिट्टी और गोबर से ही यह काम लिया जाता है। इस प्रकार से इस के आने के कई महीनों पहले विशेषकर वर्षा के चार महीनों की गंदगी दूर हो जाती है और स्वच्छता का वातावरण उत्पन्न होता है। स्वच्छता का स्वास्थ्य से संबंध है। जहाँ गंदगी होती है वहाँ रोग की उत्पत्ति होती है। स्वच्छता से स्वास्थ्य का सुधार होता है और मन प्रसन्न और प्रफुल्लित रहता है। विष्णु भगवान द्वारा नरकासुर के मारे जाने का तात्पर्य भी यही है कि नरक अर्थात् गन्दगी रूपी असुर को उस दिन मारा जाता है।
*समाप्त*