गौ की उपयोगिता और हमारा कर्तव्य

October 1959

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(प. रामस्वरूप शर्मा’शास्त्री’)

गोभिर्विप्रैश्च वेदश्च सतीभिः सत्यवादिभिः। अलुब्धै र्दान शीलैश्च सप्तभि र्धार्यते मही।

पृथ्वी को धारण करने वाले सात तत्व इस श्लोक में बताये गये हैं, उनमें गौ का प्रथम स्थान है। गौ का प्रथम स्थान क्यों है? इस प्रश्न पर हम थोड़ा सा भी विचार करें तो पता चल जायेगा कि माता-पिता, गुरु इनमें प्रथम स्थान माता का माना जाता है तो “गावो विश्वस्य मातरः” गाय विश्व की माता ही ठहरी, उसे क्यों न प्रथम स्थान प्राप्त हो? गौ की उपयोगिता सर्वत्र आपको दिखलाई देगी, चाहे आप धार्मिक दृष्टि से देखें, चाहे आर्थिक व चाहे स्वास्थ्य की दृष्टि से। गौ संसार का वह अनुपम धन है जिसकी समता हो ही नहीं सकता। धार्मिक दृष्टि से देखें तो अपना कोई धार्मिक कृत्य ऐसा नहीं जिसमें गौ की आवश्यकता नहीं होती। चाहे वह हमारे षौडस संस्कार हों चाहे अन्य कोई यज्ञ आयोजन हों। ऐसा प्रतीत होता है जैसे गौ ब्राह्मण एक ही कुल के हों और उनके दो भाग कर दिये गये हैं। आर्थिक दृष्टि से देखें तो ऐसा प्रतीत होगा कि हम गौ के बिना जीवित ही न रह सकेंगे। आज संसार का बहुत बड़ा भू भाग ऐसा है जहाँ हमारे कृषि यंत्र बेकार साबित हुये हैं, केवल गौ माता के पुत्र ही हमें रोटी देते हैं। इसके अतिरिक्त अनेकों स्थल ऐसे हैं जहाँ रेल बस आदि नहीं पहुँच पाते वहाँ का जीवन व यातायात का अवलम्ब केवल गौ पुत्र हैं।

यदि यह भी मान लें कि हम समस्त पृथ्वी पर यंत्रों से कृषि कर लेंगे, तो यह यंत्र क्या खाद भी दे सकेंगे? अथवा श्री मैथिलीशरण जी के शब्दों में-

यदि तुम कहो कि हम कलों से जोत लेवेंगे मही।

हम पूछते हैं क्या कलें वह दूध भी देंगी सही॥

दूध भी मिल सकेगा? यदि नहीं तो आप सोचें कि हमारे खेत कितने समय तक बिना खाद के अन्न दे सकेंगे? और बिना दूध के कितने समय हमारा स्वास्थ्य साथ देगा?

इन महापुरुषों से हम और पीछे यदि अपने गौरवपूर्ण इतिहास पर दृष्टि डालें, तो एक दो नहीं, बीसियों गौभक्त आपको मिलेंगे। महर्षि वशिष्ठ का कामधेनु के लिए प्राणों की बाजी लगाना, महाराज दिलीप का गोचारण तथा गौ के बदले सिंह के सामने अपने को प्रस्तुत कर देना कौन भूल सकता है? महर्षि च्यवन का अपने शरीर के बदले नहुष का चक्रवर्ती राज्य ठुकरा कर एक गाय का मूल्य निश्चित करना गौ की कितनी बड़ी महत्ता प्रदर्शित करता है पाठक विचार करें।

गौ की महत्ता केवल हिन्दू धर्म में ही हो ऐसी बात नहीं है, संसार के सभी धर्मों के जो सत्यान्वेषी पुरुष हैं इस विषय में एक मत हैं अब पृथक-पृथक धर्म के व्यक्तियों की गाय की महत्ता के संबंध में विचार धारा नीचे दी जाती है।

इस्लाम धर्म में गाय का स्थान

आज देश में बहुत बड़ी संख्या ऐसे व्यक्तियों की है, जो समझते हैं इस्लाम धर्म में गोवध अनिवार्य है। यदि ऐसा होता तो कई भारत के प्रसिद्ध मुस्लिम सम्राट कभी इसके विरुद्ध आवाज नहीं उठाते। न मौलाना लोग गोवध के विरुद्ध फतवा ही देते। इस तथ्य की पुष्टि में कुछ उदाहरण दिये जाते हैं।

“जब भारत का शासन सूत्र तैमूरवंशी मुगल बादशाहों के हाथ आया, तो उसका प्रथम शासक बाबर हुआ। मरने के समय उसने अपने पुत्र हुमायूँ को एक पत्र लिखा था वह पत्र उसके हस्ताक्षर सहित हूबहू नवाब भूपाल के पुस्तकालय में है। उसका फोटो लेकर छपरे के प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता डॉ. सैय्यद महमूद ने ‘मॉर्डन रिव्यू’ में एक लेख निकाला था जिसमें गौ हत्या से परहेज रखने की खास हिदायत की गई थी।” (अखबार तोहफए हिन्द 9 जुलाई, 1923)

2- गाय की कुर्बानी करना इस्लाम धर्म का नियम नहीं है। (फतवे हुमायूँनी भाग 1 पृष्ठ 360)

3-गरीब मुसलमान के लिए कुर्बानी जरूरी व और नैमित्तिक नहीं है। (मौलाना हसन निजामी का फतवा)

4-गाय की कुर्बानी जरूरी और नैमित्तिक नहीं है। अगर कोई इसे छोड़ देता है तो धर्म विरुद्ध काम नहीं करता। (लखनऊ के मौलाना हबी का फतवा जिस पर अब्दुल हसन, अब्दुल वहीद, अब्दुल अदबली हाजी, काजी हसन मोहम्मद के दस्तखत हैं)

5- “मैं तो कुरान न अरब की प्रथा ही गौ की कुर्बानी का समर्थन करती है”। हकीम अजमालखाँ

6-”हजरत आयशा फरमाती हैं कि गाय का दूध दवा, मक्खन सिफा और गोश्त सरासर मर्ज है।”

7-”नवाब साहब मुर्शिदाबाद, नवाब राधनपुर नवाब मंगरौल, नवाब दरजाना जिला करनाल, नवाब गुड़गाँवा, यह सब गोवध के विरोधी है।” (हिन्दुस्तान लखनऊ, 2 नवंबर 1924)

8-”सुन्दर वसुन्धरा भारत में गाय माँगलिक समझी जाती है। उसकी भक्तिभाव से पूजा होती है, और इसी से खेती होती है। इसके द्वारा उत्पन्न अन्न, दूध, मक्खन आदि से यहाँ के अधिकारियों की गुजर होती है। गौ माँस निषिद्ध और उसे छूना पाप समझा जाता है।” (आईन ए अकबरी आईन से पृष्ठ 63)

उपरोक्त उद्धरण से स्पष्ट है कि गौ का कितना महत्व मुसलमानों की दृष्टि में है। यदि कुछ व्यक्ति भ्रमवश या रूढ़िवादिता के वशीभूत हो इस स्पष्ट सत्य की उपेक्षा कर दें तो बात दूसरी है। जिसने सत्यासत्य के अन्वेषण में आँखें बंद न कर ली हों, इस सचाई से कौन इंकार कर सकेगा?

गौ ईसाई धर्मावलम्बियों की दृष्टि में-

1-”गौ हमारे दुग्ध भवन की देवी है, वह भूखों को भोजन देती, नंगों को आच्छादन और बीमारों को स्वास्थ्य प्रदान करती है।” होडर्स हेरीमैन अमेरिका का प्रसिद्ध पत्रकार।

2-”मैं इसकी कल्पना कर सकता हूँ के किसी राष्ट्र कि बिना भी गौ हो सकती है, किन्तु मैं स्वप्न में भी यह अनुमान नहीं कर सकता कि कोई राष्ट्र बिना गौ के भी रह सकता है” (सर विलियम वैडरवर्न)

3-”गौ के सौम्य रूप से वास्तव में देवत्व भय है। उसमें एक महानता और भव्यता है, जो ग्रन्थ देवता के अनुरूप है, उसमें शत प्रतिशत मातृत्व है, और उसका निश्चय मनुष्य जाति से माता का संबंध है” (श्री वाल्टर ए. डामर अमेरिका के प्रसिद्ध लेखक)

4- “जिन लोगों ने संसार में कुछ नाम कमाया है, जो अत्यन्त बली और वीर हुये हैं, जिनके समाज में बाल मृत्यु की संख्या बहुत घट गई है, जिन्होंने व्यापार धन्धों पर अधिकार प्राप्त किया है, जो साहित्य और संगीत कला का आदर करते हैं, तथा जो विज्ञान व मानव बुद्धि की प्रत्येक दशा में प्रगतिमान हैं, वे वैसे लोग हैं जिन्होंने गौ के दूध और दूध के बने पदार्थों का स्वच्छंदता से उपयोग किया है।” (डॉ. ई. बी. भैकालम अमेरिका)

5-”कोई जाति बिना गौ पालन के समृद्धि शाली नहीं हो सकती, गौ सबसे उत्तम भोजन मानव को प्रदान करती है। घास खाकर अमृत का दान करती है। जहाँ गौ की अच्छी सेवा की जाती है, वहाँ की भूमि उपजाऊ, सभ्यता उच्च, जाति अधिक स्वस्थ व बलवान होती है। गौ का दूध संसार में अमूर्त पदार्थ है। गोबर व गोमूत्र की खाद भूमि के लिए अक्सार है।” (फिजिकल कल्चर अमेरिका के संपादक)

जिन कतिपय ईसाई विद्वानों की सम्मतियाँ प्रस्तुत की गई हैं वह इतनी स्पष्ट और पक्षपात रहित कही गई हैं, कि उनका प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकता। उन्होंने जो अपनी सम्मति दी है उस पर स्वयं आचरण भी किया है। हम लोगों ने गौ की प्रशंसा के गीत तो बहुत गाये लेकिन उसके पालन पोषण और बुद्धि पर बहुत कम ध्यान दिया है। हमारे यहाँ जो गायों का मूल्य और सम्मान था वह हमने भुला दिया। आज यह गौ का पुजारी देश करोड़ों अरबों का शुष्क दुग्ध उन देशों से क्रय करता है, जिन पर गाय के विरोधी होने का आरोप है। यदि हम अपनी पुरातन सभ्यता संस्कृति जैसा मान गौ को अब भी देने लगे, पाश्चात्य देशों से गौ सेवा का सबक लें, कृष्ण की गौ सेवा की पवित्र स्वर लहरी जो गोचारण में आत्म विभोर हो बजी थी सुन सकें, तो यह अपना देश पुनः उस स्थान पर पहुँच सकता है जहाँ पहले था। यह भारत भूमि शस्य श्यामला बन पुनः सोना उगलने लगेगी। गौ वह अमर धन है जिससे हमें संसार के चारों पदार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। हम चाहते हैं कि वह दिन शीघ्र आए, जब हम देखें कि गायें हमारे आगे हैं, पीछे हैं। चारों ओर हैं “गताँमध्येवसान्यहम्” हम गायों के मध्य में हैं।




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