त्याग दया ममता से पावन यह संसार करो! सबको प्यार करो!!
बंधन में उलझे अलियों से, शूलों पर हंसती कलियों से, गंध भरी स्वप्निल गलियों से, प्रकृति नदी के प्रति निज मन में मंजुल भाव करो!
सबको प्यार करो!! मानव के चिर पीड़ित मन को, तन को, यौवन को, जीवन को, जग की व्यापकता जन-जन को, अपने विविध स्वरूप समझकर अंगीकार करो!
सबको प्यार करो!! उसको जो पग में गति देता, वर देता शापों को लेता, मूक भाग्य की नौका खेता, उसके चरणों पर श्रद्धा के मनहर सुमन धरो! सबको प्यार करो!!
-विद्यावती मिश्र