सादा जीवन उच्च विचार

October 1959

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(श्री मोहनचन्द्र पारीक माँगरोल)

भारतवर्ष के महर्षियों ने जीवन का उद्देश्य चार पदार्थों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति स्थिर किया है। इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए पुरुषार्थ को साधन ठहराया है। हमारे देश में धर्म का आचरण इसलिए श्रेष्ठ माना जाता है कि उसके द्वारा इस लोक में उन्नति तथा परलोक में सुगति प्राप्त होती है। पाश्चात्य जीवन का उद्देश्य ठीक इसके विपरीत है वहाँ के निवासियों ने भोग-विलास को अधिक आदर दे रखा है। इसलिए उनके मतानुसार ऐहिक सुखों की प्राप्ति ही जीवन का चरम उद्देश्य है। ‘खाओ, पीवो और मौज उड़ावो’ ही उनके जीवन का एक मात्र लक्ष्य है- इससे सिद्ध होता है कि पूर्वी व पाश्चात्य जीवन के उद्देश्यों में मौलिक एकता नहीं है-एक अतीन्द्रिय जगत् को प्रधानता देते हैं दूसरे इन्द्रिय जगत को। एक आत्मा की आत्म साधना को श्रेष्ठ मानते हैं दूसरे शरीर की साधना को। एक त्याग को महत्व देते हैं दूसरे संग्रह को।

सादगी और उच्च विचार जीवन का एक अत्यन्त सुँदर आदर्श है। प्राचीन काल से यही भारतीय जीवन का मनोतीत सिद्धाँत रहा है। सरलता स्वयं चरित्र का भूषण है परंतु उच्च विचार के संयोग से इसमें और अधिक रमणीयता आ जाती है। सादगी एवं उच्च विचार के समन्वय से सद्चरित्रता उत्पन्न होती है।

सादगी और उच्च विचार का चरित्र पर विलक्षण प्रभाव पड़ता है। सादगी के साथ अनेक गुण मिले हुए हैं। सादगी को अपनाने से निष्कपटता, साधुता, सदाशयता, उदारता आदि गुण अपने आप आ जाते हैं। जो व्यक्ति सादगी को आदर देता है, उसका भीतर बाहर एक-सा हो जाता है। उसके मन, वचन, कर्म में समरसता आ जाती है। छल,कपट, प्रवंचना, धूर्तता आदि दुर्गुण उससे दूर भाग जाते हैं। इस प्रकार उच्च विचार मनुष्य के हृदय की संकीर्णता को नष्ट करते हैं। सहानुभूति को जागृत करते हैं तथा हृदय को विशाल बनाते हैं। संसार के महापुरुषों में सादगी और उच्च विचार पूर्ण मात्रा में मिलेंगे।

सादगी और उच्च विचार रखने वाला सुसंस्कृत मनुष्य प्राणी मात्र में ईश्वर का दर्शन करता है। वह समझता है कि जनता की सेवा करने से ईश्वर प्रसन्न होता है। ऐसे व्यक्ति में आत्म विश्वास उत्पन्न हो जाता है। उसका हृदय संवेदनशील होता है। वह किसी को पीड़ा तो पहुँचा ही नहीं सकता। वह सदैव दूसरों की पीड़ा हरने को तैयार रहता है। दूसरों की सेवा करने की भावना उसमें दृढ़ हो जाती है। उसकी स्वार्थ भावना से काम करने की प्रवृत्ति दिन-दिन नष्ट होती जाती है वह परोपकार की भावना से काम किया करता है। ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का सिद्धाँत उसके जीवन का अंग बन जाता है।

सदाचारी मनुष्य अपूर्व सुख और शाँति का अनुभव करता है। कारण यह है कि सादगी से मनुष्य की आवश्यकता कम हो जाती है। जिसकी आवश्यकता थोड़ी है, वह सदैव सन्तुष्ट रहता है। जिसकी इच्छा प्रबल है, वह मनुष्य सदैव दुख भोगता है। उसे कभी शाँति नहीं मिलती। इसलिए सुख और शाँति प्राप्त करने का सुगम साधन सादगी और उच्च विचार है।

‘सादा जीवन उच्च विचार’ सदैव ही भारतीयों का आदर्श रहा है। भारतवर्ष के मनीषियों ने इस सिद्धाँत के विचार सारे जगत के लिए विस्तारित किये हैं। सादगी प्रत्येक भारतवासी के जीवन का अंग थी। यहाँ के निवासी कृत्रिम जीवन में बिल्कुल विश्वास नहीं रखते थे। पाश्चात्य देशों ने किसान के बल से मानव जीवन की काया पलट दी है। वहाँ के निवासी कृत्रिम साधनों द्वारा विविध प्रकार से सुखोपभोग में लीन रहते हैं। उनकी दृष्टि में इन्द्रियों की तृप्ति ही जीवन का साध्य है। इनके परिणाम भी दृष्टिगोचर हो रहे हैं कि उनका जीवन कितना अशाँत, कितना कृत्रिम तथा कितना असन्तोषपूर्ण है। इसके विपरीत है भारतीय आदर्श। यहाँ के निवासी इन्द्रियोपभोग तथा कृत्रिमता को निकृष्ट समझते थे। सादगी के द्वारा विषयोपभोग का परिहार करते थे। उनका ध्येय शरीर में लिप्त न होकर मोक्ष की प्राप्ति करता था।

भारतीयता का आदर्श मनुष्य की अन्तरात्मा का विकास करना है। यह लक्ष्य तभी पूर्ण हो सकता है जब हम सादगी और मितव्ययिता को अपनाते हुए अपरिग्रही और संतोषी जीवन बिताने के लिए अग्रसर हों। जब साँसारिक कामनाओं और वासनाओं से मनुष्य का मन पीछे हटता है तभी उसे आत्म-कल्याण , धर्म, ईश्वर और परमार्थ की बात सूझती है। यदि उसका मन साँसारिक वासनाओं, तृष्णाओं में ही लगा रहे तो उसकी अन्तःप्रेरणा सत्कर्मों की ओर मुश्किल से ही उन्मुख होती है। इसलिए जिन्हें जीवन लक्ष प्राप्त करना हो उनके लिए आवश्यक है कि सादगी, संतोष और उच्च विचारों को अपनाने के लिए तत्पर हो। इसके बिना आत्मिक प्रगति में सफलता प्राप्त हो सकना कठिन है।


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