बढ़ें श्रेय पथ पर सत्वर (kavita)

March 1959

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

ओ3म् स्वस्तिपंथामनुचरेम सूर्याचन्द्र मसाविव।

पुनर्ददताऽद्मता जानता संभयेमहि ॥

नित्य नियम से अंबर में रवि, झाँक मधुर सा मुसकाता।

तिमिर आवरण हटा सहज ही, रम्य जागरण विकसाता॥

नवल स्फूर्ति भरता जन-जन में, जग की जड़ता द्रुत हरता॥

अविरत श्रेय साधना करता, संतत नव-जीवन भरता॥

औेर निशा में नियमित गति से, आता मधुर सुधाकर।

भाँति-भाँति की कला दिखाता, मनहर मंजु कलाधर॥

विमा सुध से हृदय गगन को, अवनी को नहला देता।

मधुर प्रीति जीवन में भरता, भव्य भाव विकसा देता॥

इसी भाँति आओ हम सब भी, बढ़ें, श्रेय पथ पर सत्वर।

सूर्य चंद्र सम नियमित गति से, उर उमंग नव साहस भर॥

जग से लें कम, देवें अविरल, सत्कार्य सदा भरपूर करें।

प्राप्त करें ऋतु ज्ञान विवेकी, कलुष तिमिर अब दूर करें॥

—यज्ञदत्त ‘अक्षय’


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118