यज्ञ समिति की एक पेचीदा उलझन

November 1958

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इसे सुलझाने के लिए आप भी अपनी सलाह दीजिए।

इस क्षेत्र में इस वर्ष जल प्रलय जैसी वर्षा हुई है, जिसके फलस्वरूप मथुरा जिले के सैकड़ों गाँव तथा उनके खेत पानी में डूब खड़े हैं। इन परिस्थितियों में यहाँ खाद्य संकट असाधारण रूप से विकट हो गया है। बड़े भोजों पर सरकार भी कोई रोक लगाने की तैयारी कर रही है। इन परिस्थितियों पर यज्ञ समिति गंभीरता पूर्वक विचार कर रही है। यह भी एक विचार चल रहा है कि अन्नाहार के स्थान पर फलाहार-शाकाहार की व्यवस्था की जाय। आलू, शकरकन्द, सिंघाड़ा, केला, अमरूद, गाजर, साँवा, रामदाना, मूँगफली, कूटू आदि अनेकों फलाहारी वस्तुएं उपलब्ध रहेंगी। इनको पाक विद्या के चतुर ज्ञाताओं की सहायता से नमक और मीठे के सम्मिश्रण से अनेक प्रकार के स्वादिष्ट भोजन बन सकते हैं। इतने पवित्र एवं सात्विक यज्ञ के याज्ञिक यदि इस प्रकार के शाकाहार पर रहें तो यह और भी श्रेष्ठ बात है। लागत की दृष्टि से रोटी, शाक, चावल, दाल की पूर्व योजना से इस प्रकार का भोजन कुछ महंगा तो पड़ेगा पर बनाने में सुविधा रहेगी और राष्ट्रीय खाद्य संकट की दृष्टि से फलाहारी भोजन की प्रथा आरम्भ करना एक अच्छा आदर्श रहेगा।

यों यज्ञ समिति के कई सदस्य इसी फलाहार व्यवस्था पर बहुत जोर दे रहे हैं, एक सदस्य का कहना यह भी है कि रोटी में छूत मानने वाले लोगों का भी इस फलाहारी व्यवस्था से समाधान हो जाएगा। पर कुछ सदस्य यह सोचते हैं कि अन्नाहार की अपेक्षा शाकाहार महंगा तो पड़ेगा ही साथ ही खाने वालों को संतोष न होगा, पेट न भरेगा, तृप्ति न होगी। इसलिए किसी भी प्रकार व्यवस्था करके अन्नाहार ही जुटाया जाय। पूड़ी शाक में घी का खर्च इतना अधिक बढ़ जाता है कि अन्य व्यवस्थाएं पूरी करना ही जहाँ कठिन पड़ रहा हो वहाँ पूड़ी में लगने वाले घी की भारी व्यवस्था का भार उठा सकना किस प्रकार संभव हो सकता है?

अन्नाहार का पक्ष लेने वाले यज्ञ समिति के सदस्यों के सामने एक कठिनाई यह भी है कि जितने व्यक्तियों का भोजन बनाना है उससे आधे से भी कम मात्रा में रोटी बनाने वाले रसोइयों का प्रबंध हो सका है। इस क्षेत्र में जितने रसोइए थे वे प्रायः सभी ढूँढ़ लिए गये हैं। शेष आधी मात्रा में रोटी किस प्रकार बनेंगी यह भी एक चिंता की बात है। वे सोचते हैं कि खिचड़ी, मीठा भात, गेहूँ का दलिया मीठा और नमकीन, आलू बेसन की पकौड़ी, उबला कर तला हुआ चना, सरीखी कढ़ाई में पकाई जा सकने वाली वस्तुओं से भी काम चलाया जा सकता है।

एक विचार यह भी चल रहा है कि फलाहारी और अन्नाहारी दोनों व्यवस्थाएं रखी जायँ। कोई व्यक्ति दोनों प्रकार का आधा-आधा भोजन ले सके या दोनों प्रकार के भोजनों में चाहिए जिस प्रकार का चाहिए उसे स्वीकार कर सके ऐसा प्रबंध किया जाय। कई दिन से यज्ञ समिति इस प्रश्न के विभिन्न पहलुओं पर विचार कर रही है पर अभी कुछ निर्णय नहीं हो सका है। इसलिए यह निश्चय किया है कि गायत्री परिवार की शाखाओं तथा अखण्ड ज्योति परिवार के सुलझे हुए मस्तिष्कों की सलाह से इस प्रश्न का निर्णय किया जाय। यह अंक हाथ में पहुँचते ही समस्या के विभिन्न पहलुओं पर विचार करके सभी वरिष्ठ सदस्य अपनी सम्मति भेजने की कृपा करें, ताकि यज्ञ समिति बहुमत के आधार पर अन्तिम निर्णय कर सके।


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