इस उमड़ते हुए जन-समुद्र को रोका जाय।

November 1958

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अन्यथा व्यवस्था काबू से बाहर हो जायगी?

ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान के महान आयोजन का उद्देश्य विश्व कल्याण के लिए मानवता, नैतिकता आध्यात्मिकता की—देवत्व की, सतोगुणी सूक्ष्म शक्तियों को प्रबल करना है। इस योजना के अंतर्गत कम से कम 24 लक्ष व्यक्तियों को गायत्री का महत्व समझाना तथा इस महान् उपासना में संलग्न करना भी है। इन उद्देश्यों की पूर्ति में इस एक वर्ष में बहुत भारी काम हुआ है इतना अधिक कार्य— जितना छुटपुट प्रयत्नों से सैंकड़ों वर्षों में भी संभव न था। इस दृष्टि से इस महान् धर्मानुष्ठान को आशाजनक सफलता प्राप्त हुई है।

जिन लोगों ने गायत्री का नाम भी नहीं सुना था और जिन्होंने उपासना की आवश्यकता पर कभी विचार तक नहीं किया था ऐसे लाखों व्यक्ति इस एक कार्य के अन्दर नैष्ठिक साधक बने हैं, तथा अपने विचार दृष्टिकोण, लक्ष, चरित्र, गुण, कर्म स्वभाव में उन्होंने आश्चर्य जनक परिवर्तन किया है। ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान के अंतर्गत जो 24 करोड़ जप प्रतिदिन होने का संकल्प था अब ऐसा निश्चय है कि वह संकल्प चिरस्थायी हो गया। इतना जप तो गायत्री परिवार के सदस्यों के द्वारा नियमित रूप से चलता रहेगा। आगे इसमें बराबर वृद्धि भी होती चलेगी। भारी संख्या में जनता का दृष्टिकोण भौतिकता से बदल कर आध्यात्मिकता की ओर जो इस योजना द्वारा मुड़ना आरम्भ हुआ है यह प्रवाह भी दिन-दूनी रात-चौगुनी गति से बढ़ता रहेगा यह भी निश्चय है इस भारतभूमि में ऋषि-युग की पुनः स्थापना करने का स्वप्न साकार होकर रहे तो इसमें कल आश्चर्य न मानना चाहिये। प्रवाह जिस गति से बढ़ रहा है वह भारत भूमि के प्राचीन गौरव की दृष्टि से सचमुच ही सन्तोषजनक और गर्व करने योग्य है इस संस्था द्वारा जलाई हुई छोटी सी लौ अपना विशाल रूप धारण करके एक महान प्रकाश पुँज के रूप में परिलक्षित होते हुए देखने के लिए अब हम प्रसन्नतापूर्वक तैयार रह सकते हैं।

महायज्ञ के समय मथुरा आते हुए रास्ते में गायत्री प्रचार करते हुए हर याज्ञिक को आना है। चुपचाप चले आने वालों को उतना पुण्य फल प्राप्त नहीं हो सकता जितना कि रास्ते में भजन, कीर्तन करते हुए, गायत्री माता और यज्ञ पिता की जय घोषणा करते हुए, पर्चे पोस्टर बाँटते चिपकाते हुए आने से हो सकता है। हर याज्ञिक इस प्रक्रिया को अवश्य पूरा करेगा ऐसी आशा है। इस प्रकार आने में गायत्री माता का और यज्ञ पिता का सन्देश घर-घर पहुँचाने का भारी कार्य होगा। याज्ञिकों को इधर से वापिस जाते हुए महायज्ञ से प्रसाद स्वरूप गायत्री चालीसा गायत्री, गायत्री मन्त्र माता के चित्र यज्ञ भस्म आदि ले जानी है और उन प्रसाद वस्तुओं को धार्मिक लोगों द्वारा दूर-दूर तक पहुँचाना है।

इस धर्मप्रचार के महान् कार्य को देखते हुए प्रत्येक धर्म प्रेमी के आनन्द और उत्साह का ठिकाना नहीं रहता। जप और हवन के उपरान्त जब सद्बुद्धि रूपी गायत्री और त्याग मय प्रेम रूपी यज्ञ की मानवीय अन्तःकरणों में गहराई तक प्रतिष्ठापना होगी तो सचमुच ही यह भारत भूमि-धर्म भूमि बनेगी। इस महान लक्ष की पूर्ति में गायत्री-परिवार का यह धर्मप्रचार बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्ध होगा।

पर एक विचारणीय समस्या भी इस धर्म प्रचार के फलस्वरूप उत्पन्न हो रही है। वह यह कि जितनी संख्या में महायज्ञ के आगन्तुकों के लिए ठहरने और भोजन की व्यवस्था हो सकी है, उसकी अपेक्षा यह पंक्तियाँ लिखने के समय तक कई गुने अधिक लोगों के आने की सूचनाएं आ चुकी हैं। खाद्य संकट और अपनी अर्थ दुर्बलता को ध्यान में रखते हुए तथा तपोभूमि के आस-पास दो मील के घेरे में जितनी खाली जमीनें थीं वे सभी ले लेने के उपरान्त भी बीस पच्चीस हजार से अधिक व्यक्तियों से अधिक की गुँजाइश दिखाई नहीं पड़ती।

ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान के होता यजमान एक लाख से ऊपर हैं। इनमें से अधिकाँश आने ही वाले हैं। दर्शक की संख्या इन से भी कई गुनी हो सकती है। ऐसी दशा में यज्ञ समिति के सामने काफी पेचीदा समस्या उपस्थित हुई है।

इस समस्या का समाधान एक ही है कि अधिक उत्साही, नैष्ठिक एवं श्रद्धालु याज्ञिक ही मथुरा आवें। जिनमें कम श्रद्धा है तथा अन्य प्रकार की कठिनाइयाँ जिनके सामने हैं उन लोगों पर मथुरा चलने के लिए अधिक जोर न दिया जाय। अगले वर्ष सभी क्षेत्रों में बड़े सामूहिक यज्ञों की तैयारी होनी चाहिए और उनमें उन होता यजमानों की उपासना की पूर्णाहुतियाँ हों जो मथुरा न आ सकें। जो होता यजमान मथुरा न आवें उन्हें आश्वासन दिया जाय कि आप दुख न मानें अगले वर्ष हमारे क्षेत्र में एक बड़ा यज्ञ अवश्य होगा और उसमें आचार्य जी स्वयं आकर पूर्णाहुति करावेंगे। इस आश्वासन से उनकी खिन्नता दूर हो सकती है। जो लोग अधिक उत्साही है उन्हें प्रतिबन्ध के रूप में रोका न जाय। ऐसे लोगों के लिए किसी ने किसी प्रकार ठहराने भोजन आदि की व्यवस्था हो ही जायगी। हाँ, अपनी ओर से किसी को बहुत अधिक प्रोत्साहित न किया जाय इतना ही प्रतिबन्ध पर्याप्त है।

साधारण श्रेणी के वे दर्शक जो तीर्थ यात्रा के साथ-साथ यज्ञ के दर्शन करने आ रहे हैं, उन्हें निरुत्साहित करना चाहिए। विशेषतया अशिक्षित, भावना शून्य वे महिलाएं जो केवल मेला ठेला देखने निकलती हैं न आने दी जाएं। क्योंकि पिछले सम्मेलनों का अनुभव यही कहता है कि इन्हीं के द्वारा सबसे अधिक गड़बड़ी पैदा होती है। ना वे नियंत्रण में रहती हैं और न किसी प्रकार के नियम मानती हैं, व्यवस्था बिगाड़ने में एक भारी सिर दर्द बनी रहती हैं। इसलिए जो उपासिका न हों, जिन्हें गायत्री तथा यज्ञ के बारे में अधिक जानकारी तथा निष्ठा न हो उन महिलाओं को दर्शक रूप में भी इस समय न लाया जाय। दर्शकों में भी जो विशेष भावनाशील एवं समझदार हैं वे ही आवें। उनका तो स्वागत है। पर दर्शन झाँकी करने के उद्देश्य से आने वालों के ठहराने और भोजन का प्रबन्ध कर सकना काबू से बाहर की बात होगी ऐसा दिखाई पड़ता है।

इसलिए परिवार के प्रत्येक जिम्मेदार सदस्य को अब इन दो बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना है कि महायज्ञ में मथुरा वे ही आवें जो विशेष श्रद्धालु हों। सामान्य श्रद्धा वालों को अगले वर्ष अपने क्षेत्र में ही होने वाले बड़े यज्ञ में सम्मिलित होने का आश्वासन दिया जाय। दर्शक कम से कम आवें केवल चुने हुए लोग ही आवें। बेकार की भीड़ न आवें यदि आवें तो अपने ठहरने और भोजन की स्वतंत्र व्यवस्था करें। क्योंकि सूचनानुसार कई लाख आदमी आने की जैसी कि संभावना है उसकी उपयुक्त व्यवस्था बन सकना यहाँ कठिन है।

महायज्ञ में भाग लेने के लिए भागीदार बनाने के लिए अधिकाधिक लोगों को तैयार किया जाय। इसके लिए कुछ तरीके यह हो सकते हैं।

कम से कम 10 मन्त्र लिख कर महायज्ञ के लिए श्रद्धाँजलि भेजें। ऐसी श्रद्धाँजलियाँ अपने क्षेत्र के सभी धार्मिक व्यक्तियों से एकत्रित की जाएं। यह श्रद्धाँजलियाँ हर शाखा, हर याज्ञिक, अपने साथ जितनी अधिक संख्या में लावें उतना ही उत्तम है।

पूर्णाहुति के लिए सुपाड़ी या गिरी का गोला अधिकाधिक लोगों से एकत्रित करके लाये जावें। इस प्रकार पूर्णाहुति में मथुरा न आने वाले होता, यजमान एवं संरक्षकों को ही नहीं वरन् साधारण जनता में से भी अधिकाधिक लोगों को भागीदार बनाना चाहिए। सुपाड़ी जहाँ उपलब्ध न हो वहाँ से एक पैसा लेना चाहिए पूर्णाहुति में एक पैसा देकर भी कोई व्यक्ति पुण्य फल का भागीदार बन सकता है।

(3) हवन सामग्री को देने के लिए तिल, शक्कर, घी आदि थोड़ी मात्रा में भी जो लोग दे सकें उनसे चाहे एक मुट्ठी ही वस्तु क्यों न हो ले ली जाय, जौ, चावल जैसी अन्न श्रेणी की वस्तुओं पर तो संभवतः एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त में प्रतिबंध है। जहाँ से लाने में प्रतिबन्ध न हो वहीं से हवन सामग्री में मिलाने के लिए एक मुट्ठी जौ तिल भी लिए जा सकते हैं। या वहाँ उन चीजों को बेचकर यहाँ वे ही वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं।

इस प्रकार के तरीकों से अधिकाधिक लोगों का इस महायज्ञ का भागीदार बनाना चाहिए। इन भागीदारों की संख्या 24 लाख होनी चाहिए। इसलिए अधिकाधिक सहयोग एकत्रित करने का तो प्रयत्न किया जाय पर मथुरा चलने के लिए बहुत लोगों को प्रोत्साहित न किया जाय। क्योंकि जो जन संख्या इस महायज्ञ में आने को उत्सुक है उसे रोका न गया तो इतने बड़े जन समूह का कोई प्रबंध हो सकना कठिन है। अब तक जिन लोगों को स्वीकृतियाँ दी जा चुकी हैं उनके सम्बन्ध में भी यज्ञ समिति पुनर्विचार कर रही है और शाखा मंत्रियों की सलाह से कुछ स्वीकृतियाँ हर शाखा से वापिस ली जाएंगी।

प्रचार कार्य पूरी शक्ति से एवं उत्साह से जारी रखा जाय, अधिकाधिक लोगों को उपरोक्त तीन तरीकों से महायज्ञ का भागीदार बनाया जाय, पर मथुरा चलने के लिए हर किसी को न कहा जाय, वरन् जो आने वाले हैं उनमें से भी कुछ को रोकने का प्रयत्न किया जाय अन्यथा व्यवस्था काबू से बाहर हो जाने का भय है। इस तथ्य को प्रत्येक परिजन ध्यान में रखें।


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