कर्म ही कल्प-वृक्ष है।

November 1958

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(श्री मुरलीधर श्रीराम शिरुड़े, खेतिया)

प्रत्येक मनुष्य चाहता है कि मेरी सब कामनायें पूर्ण हों। यह बात तब ही हो सकती है,जब वह अपने इच्छित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये लगन से काम करता है,प्रयत्नशील और उद्यमी बनता है। उद्यम करने से ही कार्य की सिद्धि होती है, न कि केवल इच्छा करने से। जैसे कि सिंह, पराक्रमी है परन्तु क्या उसके मुख में भी मृग स्वयं चला जाता है?

हाँ आप यदि अपनी प्रत्येक आकांक्षा पूर्ण करना हैं तो आपको कल्पवृक्ष को प्राप्त करना होगा। क्योंकि कल्प वृक्ष मनुष्य की सब कामनाओं को पूरी कर देता है। पर आप इस “कल्प वृक्ष” को कहाँ प्राप्त करोगे? कहा जाता है कि यह वृक्ष स्वर्ग में है। परन्तु स्वर्ग देखा किसने? वहाँ जाने का मार्ग ही अज्ञात है तो वहाँ जाना और उसे प्राप्त करना असम्भव बात है।

मेरे विचार से यह कल्पवृक्ष, मनुष्य है। क्योंकि वृक्ष का नाम ‘कल्प’धातु से बना है। यह ‘कल्प वृक्ष” जो कल्पनामय है, उसे प्राप्त करके मनुष्य अपनी इच्छा कल्पना में ही पूरी कर लेता है। अतः हम इसके ही तुल्य कर्म-वृक्ष निर्माण करें। जिसकी उपासना करने से मनुष्य की प्रत्येक इच्छा पूरी होगी।

आज के मानव ने भौतिक वस्तुओं को भोगना ही सुख समझा है। पर वह अब उन्हें बोझा अनुभव होता है। भौतिक वस्तुओं से मनुष्य में लालसाओं और कामनाओं का प्रवाह बढ़ जाता है। इसलिये उसे शान्ति नहीं मिलती। अतः उसे सुख और शान्ति प्राप्त करने के लिये इन लालसाओं पर विजय पानी होगी। और इसके लिये आत्म संयमी बनना होगा।

प्रेम मय जीवन ही सुख है। सच्चा सुख चाहिये तो प्रत्येक के प्रेमी बनो। प्रेमी बनने से आपका वहाँ आदर होगा। जब आपका आदर होगा तो आप सुख का अनुभव करेंगे। इस प्रकार यदि आप प्रेम का प्रचार करते रहे तो आप महासुख का अनुभव करेंगे। यदि आप ने यह महासुख पा लिया तो आनन्द आप के पास स्वयं चला आवेगा। क्योंकि सुख में ही आनन्द और आनन्द में ही शान्ति है। प्रेम से ही प्रेम बढ़ता है और द्वेष करने से द्वेष बढ़ता है। प्रेम करने से ही एकता है और द्वेष करने से फूट। यही कारण है कि हमारा देश परतंत्र हुआ था।

‘ईश्वर उसकी मदद करता है जो अपनी मदद करता है’। लक्ष्मी उद्योगी पुरुषों को प्राप्त होती है, भाग्य का रोना रोने वालों को नहीं। अतः आप अपनी इच्छा की पूर्ति के लिये प्रयत्नशील और उद्यमी बनिये। धनवान बनने के लिये मूल तत्व-अपनी योग्यता बढ़ाओ, मितव्ययी बनो, ईमानदारी से दृढ़ नाता जोड़ो। छोटे से छोटा काम करने में न हिचकिचाओ, सुशिक्षित बनो, आलस्य की मस्ती छोड़ो और हृदय में कुछ उमंगें पैदा करो। यही तत्व आप को धनवान बनने में सहयोग दे सकते हैं हमारी दीनता के क्या कारण हैं? इस प्रश्न को भी सोचो और जो भी कारण हो उन्हें नष्ट करने का सदा प्रयत्न करो ।

अकसर संतति हीन व्यक्ति सदा अपने भाग्य पर रोया करते हैं। परन्तु यह उनकी समझ का फेर है। वे नहीं जानते कि यह मेरे पूर्व जन्मों के कर्मों का फल है। जो इस जन्म में आपको उसका प्रायश्चित मिल रहा है। जब तक आप अपने कर्मों का कर्जा नहीं चुका देते, ऋणी बने रहोगे। इस ऋण को आपको चुकाने के लिए क्या करना चाहिए?

आप निराश न होइये,”कर्म वृक्ष” की उपासना कीजिए। यश अवश्य प्राप्त होगा। आपके अपराधों को क्षमा करने वाले केवल भगवान ही हैं। अतः आप उऋणी बनने के लिए, ऋण से मुक्त करने वाली गायत्री माता की आराधना कीजिए। दीनों की मदद करो, अतिथि का सत्कार करो। इससे वे आपके किये पर अच्छी दुआएं देंगे। सन्तों का, माँ-बाप का सम्मान करो। जिससे आपको वे शुभ आशीर्वाद देंगे। इस प्रकार उनकी दुआओं का और इनके शुभ आशीर्वादों का बल आपकी इच्छा की पूर्ति में मदद करेंगे। आप गायत्री माता की, जो सर्व-शक्ति मान हैं उपासना कीजिये, आपकी इच्छा शीघ्र ही पूर्ण होगी।

इसी प्रकार आप अपनी प्रत्येक इच्छा की पूर्ति इस “कर्म वृक्ष” की उपासना करके कर सकते हैं। कर्म करने से क्या नहीं हो सकता? कहा जाता है कि “मनुष्य अगर कर्म करे तो नर का नारायण बन जावे” सर्वस्व कर्म पर ही निर्भर है। यदि आप अच्छे कर्म करोगे तो उसका फल भी आपको अच्छा मिलेगा। भाग्य भी अपने-अपने कर्मों से ही बनता है। अतः कर्म वृक्ष की दृढ़ता से उपासना करो।


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