गौ-रक्षा अथवा गौ-सेवा

August 1958

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(श्री राधाकृष्ण बजाज)

‘गोसेवा’ भारतीय संस्कृति का प्रमुख अंग है, गाय का महत्व ‘गौ-सेवा’ शब्द से ही प्रकट होता है क्योंकि सेवा के दो प्रधान कारण हैं, एक तो हम बिना उपयोग किसी की सेवा नहीं करते और दूसरा यदि बिना सेवा किए हुए किसी का उपयोग करेंगे तो वह गुनाह होगा। गाय का उपयोग तो स्वतः प्रकट है, जन्म काल से लेकर मृत्यु पर्यन्त किसी न किसी रूप में मनुष्य गाय के प्रति ऋणी रहता ही है और यह ऋण तभी चुकाया जा सकता है जब हम गो-वंश को विकसित करें, गाय की मजबूत बछड़े देने की शक्ति को बढ़ाएं, उसकी दूध देने की शक्ति में वृद्धि करें। हृष्ट-पुष्ट गायों का दूध भी स्वास्थ्यवर्धक होगा। मजबूत बैल ही हमारे खेत भली प्रकार से जोत सकते हैं। हमारी गौ-सेवा का यह अर्थ नहीं है कि जब तक गौ हमें दूध दे तभी तक हम उसका ध्यान रखें और बूढ़ी हो जाने पर उसे मरने के लिए छोड़ दें। यह तो एक निकृष्ट सेवा है। गाय को उचित समय पर उचित मात्रा में चारा-पानी देना, उसके रहने की अच्छी व्यवस्था करना, काम लेने में ज्यादती न करना, उसके सुख-दुख का ध्यान रखना और बूढ़ी हो जाने पर उसको मरने तक खाना देना, इतनी बातें गौ-सेवा में आती हैं इस प्रकार की नीति के द्वारा हम गो वंश की वृद्धि और गो-वध कतई बन्द करना चाहते हैं प्राचीन संस्कृति को कायम रखने के लिए और मनुष्यत्व की रक्षा के लिए जिस गाय ने जीवन भर मनुष्य मात्र की सेवा की उसका बुढ़ापे में वध करना किसी को मंजूर नहीं हो सकता, गाय से हमारा मतलब गाय, बैल, बछड़े, बछड़ी अर्थात् पूरे गो-वंश से है।

कुछ लोग कहते हैं प्राचीन काल में माँसाहार था और गो-माँस खाया जाता था पर बाद में गौ से हमें अहिंसा की शिक्षा मिली। वह मारी जाने पर भी हमारी सेवा में लगी रही। गाय ने हमें घी, दूध विशेष मात्रा में दिया दूसरी तरफ बैलों ने हमारे खेतों में मेहनत करके अनाज की पैदावार बढ़ा दी, लोगों का ध्यान गाय की इस सेवा की ओर आकर्षित हुआ और ये गौरक्षा के लिए तत्पर हो गए। गौरक्षा के प्रथम आन्दोलनकारी श्रीकृष्ण थे। उन्होंने गो वंश की रक्षा करने में और उन्नति करने में अतुलनीय कार्य किया है। इसके अतिरिक्त बैलों ने कपास की खेती में हमारी मदद करके हमें अच्छे कपड़े दिए और जब कपड़ों के कारण हमारी गर्मी सुरक्षित रहने लगी तब खुराक स्वतः कम हो गई। अन्न और वस्त्र दोनों ही शरीर की गर्मी को बनाए रखते हैं। इस तरह बैल ने अहिंसा के पालन में बड़ी मदद की है। अतः अहिंसा का तकाजा है कि हम गाय और बैल की रक्षा करें।

गाय की सेवा तय होने के बाद यह प्रश्न उठता है कि हमें किस प्रकार की गायों की वृद्धि करनी चाहिए ताकि गो-पालन सुलभ और गो-वध रोका जा सके। इस दृष्टि से विचार करने पर मालूम हुआ कि हमारे पास चारे की कमी है और पशुओं की संख्या कम होनी चाहिए। लेकिन खेती की दृष्टि से बैलों की शक्ति बढ़नी चाहिए और देश की आवश्यकतानुसार दूध का उत्पादन भी आज की अपेक्षा कई गुना अधिक होना चाहिए। यदि किसान दूध के लिए अलग और खेती के लिए अलग नस्लों के पशु को रक्खे तो वह दो जोड़ी को पूरा खाना नहीं दे सकता। उसके दोनों काम एक ही जोड़ी से यानी एक ही नस्ल के गाय-बैलों से पूरे होने चाहिए ताकि पशु संख्या भी कम रहे। ये दोनों काम पूरा करने की शक्ति जिस नस्ल में होती है उसे सर्वांगी कहा जाता है जैसे हरियाना थरपारकर, गीर, काँकरेज आदि।

दूसरी बात यह है कि जो गाय दूध अधिक देती है लेकिन खेती के लायक बैल नहीं देती उनके नरों की पूरी हिफाजत नहीं होती और वे भारस्वरूप जीवित रहते हैं या मार दिये जाते हैं। इसी तरह जो गाएं खेती के लिए बैल अच्छे देती हैं लेकिन दूध कम देती हैं उनकी बछड़ियों की पूरी हिफाजत नहीं होती फलस्वरूप या तो वे भूखी मरती हैं या कत्ल कर दी जाती हैं। इस प्रकार की दुग्ध प्रधान या वत्स प्रधान दोनों एकाँगी नस्लों के एक-एक पशु हिंसा के शिकार होते हैं। इस हिंसा को रोकने का उपाय यही है कि सारी गायों का विकास सर्वांगी रूप से किया जाय। वत्स प्रधान गायों को सिलेक्टिव ब्रीडिंग (चुनाव द्वारा नस्ल का विकास) द्वारा अधिक दूध देने की शक्ति बढ़ाकर सर्वांगी बनाया जा सकता है। उसी तरह दुग्ध प्रधान गायों के बैलों में खेत जोतने की शक्ति पैदा करके उन्हें भी सर्वांगी बनाया जा सकता है। नस्ल सुधार का काम गायों को सर्वांगी बनाने का लक्ष्य रखकर होना चाहिए। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि एक ही नस्ल में दूध देने की शक्ति और अच्छे बैल देने की शक्ति एक साथ नहीं बढ़ाई जा सकती, एक के बढ़ाने से दूसरी कम होती है। यदि यह ठीक भी मान लिया जाय तो भी मध्य स्थिति के पशु पैदा करने में कोई कठिनाई नहीं पड़ सकती। आज हरियाना थरपारकर जैसी गायें मौजूद हैं जिनके बैल खेती में बढ़िया से बढ़िया काम देते और गायें 10 सेर 15 सेर तक रोजाना दूध देती हैं हमारी नस्लें इस हद तक पहुँच जायं तो काफी है। हमें इस बात से खुशी है कि भारत सरकार भी सर्वांगी नस्ल बढ़ाने की तरफ ध्यान दे रही है।


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