दुर्बलता एक पाप है।

January 1957

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(प्रो. रामचरण महेन्द्र एम.ए.)

हिन्दू धर्म में तीन शक्तियों लक्ष्मी, सरस्वती तथा दुर्गा में गुप्त रूप से धन, ज्ञान और शारीरिक शक्ति की साधना करने का गुप्त संकेत छिपा हुआ है। हिन्दू धर्म में शक्ति का बड़ा महत्व है। कमजोर व्यक्ति को मुक्ति नहीं मिलती। जब तक साधक शक्तिवान न बने, तब तक उसकी मुक्ति नहीं हो सकती। शक्तिवान का ही संसार में आदर होता है। शक्ति की इतनी उपयोगिता देखकर ही हमारे यहाँ शक्ति धर्म तक की स्थापना हुई है। शक्ति की देवी को महत्व प्रदान करने के लिए उसके नाना नाम धरे गये- दुर्गा, देवी, चण्डी, काली, भवानी- उसे असुरों को पराजित करने वाली देवी माना। वह धर्म की स्थापना के लिए युद्ध करती और अत्याचार, अन्याय, विलास और कामुकता का विनाश करती है। तात्पर्य यह है कि इन सब रूपों के विधान में शक्ति के नाना रूपों का महत्व जनता के हृदय तक पहुँचाया गया। एक युग था जब भारतवासी सुशिक्षित थे और इन प्रतीकों का अर्थ समझते थे। खेद है कि अब इनके गुप्त भेद विस्मृत हो गए हैं और केवल मिथ्या पूजा की थोथी भावना मात्र शेष रह गयी है। फिर भी इससे शक्ति का महत्व स्पष्ट हो जाता है।

बलवान बनो! शक्ति की पूजा करो। जब हम यह सलाह देते हैं, तो हमारा गुप्त मन्तव्य यह होता है कि दुर्बल मत बनो। कमजोर मत बनो! जिधर से कमजोरी आती है, उधर ध्यान दो और निर्बलता को दूर भगाओ। अपने शरीर, मन, आत्मा में शक्ति भर लो।

संसार में अनेक पाप हैं। आप गौ को मार देते हैं, तो गौ हत्या का जघन्य पाप आपके सिर पर पड़ता है, किसी बच्चे को मार देते हैं, तो बाल हत्या के अपराधी होते हैं, किसी ब्राह्मण का वध कर डालते हैं, तो ब्रह्महत्या का पाप लगता है। इसी प्रकार हम शास्त्रों में अन्य भी अनेक पापों का उल्लेख है, कि सब से बड़ा पाप दुर्बलता है।

कमजोर होना मनुष्य का सबसे बड़ा पाप है। इसका कारण यह है कि दुर्बलता के साथ अन्य समस्त पाप एक-एक कर मनुष्य के चरित्र में प्रविष्ट हो जाते हैं। दुर्बलता सब प्रकार के पापों की अवश्य जननी है।

यदि आप दुर्बल हैं, शरीर में कृशकाय और मन में साहस विहीन हैं, तो अपने या अपने परिवार-पड़ौस इत्यादि पर किए गये अत्याचार को नहीं रोक सकते, न उसके विरुद्ध आवाज ही उठा सकते हैं।

पातकी वह है, जो अत्याचार सहता है, क्योंकि उस की कमजोरी देखकर ही दूसरे को उस पर जुल्म करने की दुष्प्रवृत्ति आती है।

मनुष्यों! दुर्बलता से बचो! दुर्बलता में एक ऐसी गुप्त आकर्षण शक्ति है, जो अत्याचारी को दूर से खींचकर आपके ऊपर अत्याचार कराने के लिए आमन्त्रित करती है। मजबूत तो हमेशा ऐसे कायर की तलाश में रहता है। वह प्रतीक्षा देखता रहता है कि कब अवसर मिले और कब मैं अपना आतंक जमाऊँ। दूसरे शब्दों में यदि आप निर्बल न रहें, तो अत्याचार करने का प्रलोभन ही न हो, बेइंसाफी को पनपने का अवसर ही प्राप्त न हो। जहाँ प्रकाश नहीं होता, वहाँ अन्धकार अपना आसन जमाता है। इसी प्रकार जहाँ निर्बलता, अशिक्षा, कमजोरी होती है, वहीं पर अत्याचार और अन्याय पनपता है।

शक्ति ऐसा तत्त्व है, जो प्रत्येक क्षेत्र में अपना अद्भुत प्रकाश दिखाता है, संसार को चमत्कृत कर देता है। व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य, योग्यता- चाहे किसी क्षेत्र में आप शक्ति का उपार्जन प्रारम्भ कर दें। आप प्रतिभावान बन जायेंगे।

एक विद्वान के वे वचन अक्षर सत्य हैं- “शक्ति विद्युत धारा में ही बल है कि वह मृतक व्यक्ति समाज की नसों में प्राण संचार करे और मुक्त एवं सतेज बनाये।

शक्ति एक तत्त्व है, जिसका आह्वान करके जीवन के विभिन्न विभागों में भरा जा सकता है और उसी अंग में तेज और सौंदर्य का दर्शन किया जा सकता है। शरीर में शक्ति का आविर्भाव होने पर देह जैसी चमकदार, हथौड़े जैसी गठी हुई, चन्दन जैसी सुगंधित एवं अष्टधातु-सी निरोग बन जाती है। बलवान शरीर का सौंदर्य देखते ही बनता है। में शक्ति का उदय होने पर साधारण मनुष्य कोलम्बस, लेनिन, गाँधी, सन्यतसेन जैसा बन जाते हैं और ईसा, बुद्ध, राम, कृष्ण, मुहम्मद के समान असाधारण कार्य अपने मामूली शरीरों द्वारा ही करके दिखा देते हैं। बुद्धि का बल महान है। तनिक से बौद्धिक-बल की चिनगारी बड़े-बड़े तत्त्व ज्ञानों की रचना करती है और वर्तमान युग में वैज्ञानिक आविष्कारों की भाँति चमत्कारिक वस्तुओं में अनेकानेक वस्तुएँ निर्माण कर डालती हैं। अधिक बल का थोड़ा सा प्रसाद हमारे आस-पास चकाचौंध उत्पन्न कर देता है। आत्मा की मुक्ति भी ज्ञान, शक्ति एवं साधना से होती आई है। अकर्मण्य और निर्बल मन वाला व्यक्ति आत्मोद्धार नहीं कर सकता। तात्पर्य यह है कि ‘लौकिक और पारलौकिक सब प्रकार के दुःख द्वन्द्वों से छुटकारा पाने के लिए शक्ति की ही उपासना करनी पड़ेगी।’

शक्तिवान बनिये। जीवन के हर क्षेत्र में लोग पुकार-पुकारकर आपको शक्ति अर्पित करने की सलाह दे रहे हैं। जो जिस मात्रा में शक्ति प्राप्त कर लेता है, वह उतना ही समुन्नत समझा जाता है। उन्नति का रहस्य शक्ति संचय का ही मार्ग है।

भगवान शंकराचार्य के ये वचन स्मरण रखिये, ‘शक्ति के बिना (अर्थात् बलवान बने बिना) शिव का स्पन्दन नहीं होता। शिव की उन्नति देह की सहायता से होती है, वैसे ही शिव-तत्त्व का स्पन्दन शक्ति द्वारा होता है। यदि भक्ति के बिना ईश्वर नहीं, तो शक्ति के बिना शिव नहीं मिलते-अर्थात् कल्याण का मार्ग पास नहीं होता। ब्रह्मप्राप्ति में-आत्मिक उन्नति में भगवती आद्य-शक्ति की सहायता आवश्यक है।

मित्रों, आपके शरीर में, मन में, आत्मा में उच्च कोटि की शक्तियाँ भरी पड़ी हैं। सतत् परिश्रम से इनका विकास कीजिए। ये अतीव आवश्यक हैं, ये आपकी वैयक्तिक संपत्तियां हैं। पर इनके अतिरिक्त दो शक्तियाँ और हैं, जिनकी आपको विशेष आवश्यकता है (1) अर्थ शक्ति (2) संगठन शक्ति। हम जिस युग में रह रहे हैं वह रुपये-पैसे का युग है। पैसे के बल से समस्त उन्नति के साधन सुख समृद्धि इस भूलोक में मिल सकती है। संगठन-बल में गजब की ताकत है। आज जो प्रान्त, जो देश संगठित है वही शक्तिशाली है। एक-एक मिलकर मोटी मजबूत रस्सी बनती है। एक-एक बूंद से तालाब बनता है, एक-एक पैसे के संग्रह मनुष्य संपत्तिवान बनता है, एक-एक व्यक्ति का बल संगठित होकर ग्यारह मनुष्यों का बल बन जाता है। अतः सच्चे दिल से सच्चे कामों के लिए सदुद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संगठित हो जाइए। मित्रताएँ कायम कीजिए और जितने अधिक व्यक्तियों से सम्भव हो एकता, मेल या संपर्क स्थापित कीजिए। बस आप उसी अनुपात में शक्तिशाली बन जायेंगे। मेल से एक ऐसा केन्द्र स्थापित होता है जिसमें सब एक दूसरे को सेवा-सहयोग और सहायता देते हैं। इस पारस्परिक आदान-प्रदान से मनुष्य की शक्ति बहुत बढ़ जाती है।

‘आचार्य श्रीरामशर्मा जी’ के ये शब्द बहुमूल्य हैं, जो व्यक्ति विशेष दिशा में महत्व प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें चाहिए कि अपने इच्छित मार्ग के लिए, शक्ति सम्पादन करें। सच्ची लगन और निरंतर प्रयत्न-यही दो महान साधनाएं हैं, जिनसे भगवती शक्ति को प्रसन्न करके उनसे इच्छित वरदान प्राप्त किया जा सकता है। आपने अपना जो भी जीवनोद्देश्य बनाया है उसे पूरा करने में जी-जान से जुट जाइए। सोते-जागते उसी के सम्बन्ध में सोच विचार करते रहिए और आगे का मार्ग तलाश करते रहिए। परिश्रम! परिश्रम!! घोर परिश्रम!!! आपकी आदत में शामिल होना चाहिए। स्मरण रखिये अपना कोई भी मनोरथ क्यों न हो, वह शक्ति द्वारा ही पूर्ण हो सकता है। इधर-उधर बगलें झाँकने से कुछ नहीं हो सकता।

वेदों ने शक्ति उपार्जन का दिव्य सन्देश दिया था, जो आज भी इस भारत भूमि के कण-कण से गुँजरित हो रहा है।

यजुर्वेद में कहा गया है, “क्षिपो मृजन्ति” अर्थात् पुरुषार्थी लोग ही पवित्र होते हैं और पवित्र कार्य करते हैं।

“स्थिरै रंगैस्तुष्टुवाँसः“

अर्थात् बलवान अवयवों द्वारा ही ईश्वर की उपासना करेंगे।

“आराष्ट्रे राजन्यः सूर इसव्यो अति व्याधि महारथो जायताम्”

अर्थात्- हमारे राष्ट्र में शूरलोक उत्तम प्रभावशाली वीर बनें।

“उग्राय तवसे सु वृत्ति प्रेरय”

श्रेष्ठ बल के लिए उत्तम भाषण और उत्तम कर्म करो।

“आप्नुहि श्रेयाँ समति सम काम”

“हे मनुष्य अपने समान लोगों में आगे बढ़ और श्रेय को प्राप्त कर।”

‘असश्चतः शतधरा अभिश्रियः’

“सतत् परिश्रम करने वाले को सैंकड़ों प्रवाहों से यश प्राप्त होता है।”

दृते दृंह माँ, ज्योक्ते संदृशि जीव्यासम्। ज्याक्ते संदृशि जीव्यासम्॥”

“हे समर्थ परम दृढ़ परमेश्वर! मुझे दृढ़ बना दे, जिससे मैं तेरे संदर्शन में, तेरी ठीक दृष्टि में चिरकाल तक जीता रहूँ। तेरे सम्यक् दर्शन में दीर्घ आयु तक जीता रहूँ।”

अन्त में एक बार फिर हम आपको यही सलाह देंगे कि इस संसार में आप जहाँ हो, जिस परिस्थिति में हो, जीवन के किसी क्षेत्र में अग्रसर हो रहे हो, शक्ति अर्जन कीजिए। इस संसार में दुर्बलता सबसे बड़ा महाघोर पाप है। दुर्बल को सब कोई दबाते हैं। कमजोर सर्वत्र नारकीय यंत्रणाएँ भोगते देखे जाते हैं।”

“नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः”

यह आत्मा निर्बलों को प्राप्त नहीं होता।


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