राजस्थान प्रान्तीय यज्ञ रामगंज मंडी (कोटा) में आशा से अधिक सफल हुआ। लगभग 30 हजार जनता इस विशाल कार्य धार्मिक अनुष्ठान को देखने के लिए सुदूर स्थानों से आई थी। 101 हवन कुण्डों की यज्ञशाला इतने सुन्दर ढंग से बनाई और सजाई गई थी कि देखते-देखते आँखें तृप्त नहीं होती थीं। विशाल व्याख्यान पण्डाल में महिलाओं और पुरुषों के लिए पृथक-पृथक कक्ष थे। गेट बहुत ही सुन्दर एवं कलापूर्ण ढंग से सजाये गये थे। समय-समय पर नौबत, नफीरी तथा बैंड बाजे बजते रहते थे।
ता. 9 दिसम्बर को आचार्य जी पधारे तो मोटर में बैंड बाजों के साथ उनका जुलूस निकाला गया। नगर भर में आरती पुष्पमाला आदि से उनका स्वागत हुआ। ता. 10 प्रातःकाल शास्त्रोक्त रीति से वेदमंत्रों की तुमुल ध्वनि के साथ यज्ञ कार्य आरम्भ हुआ। पीले दुपट्टे धारण किये सहस्रों नर-नारी हवन कुण्डों पर बैठे हुए बड़े ही शोभायमान लगते थे।
हवन प्रायः 12 बजे समाप्त होता था। मध्याह्नोत्तर तथा रात्रि में प्रवचन होते थे। ता. 12 को महिला सम्मेलन हुआ। माता दौपदी देवी, माता भगवती देवी तथा रामगंज मंडी की सुप्रतिष्ठित कई महिलाओं के नारी जागरण पर धड़े धार्मिक भाषण हुए। अखण्ड-ज्योति के सहायक संपादक प्रो. रामचरण महेन्द्र एम. ए., आगरा के प्रसिद्ध धार्मिक विद्वान पं. मुक्ट बिहारीलाल शुक्ला बी.ए., एल.एल.बी., स्वामी प्रेमानन्द जी, कुँ. नत्थासिंह जी प्रवचन करने बाहर से पधारे थे। झाँसी के श्री शास्त्री जी महाराज गुरुकुल बकानी के संस्थापक श्री स्वामी जी तथा रामयणी सत कौशल जी के भी प्रवचन हुए। स्वागताध्यक्ष श्री सत्यपाल जी त्यागी ने अपने दो दिनों के संक्षिप्त किंतु मार्मिक भाषण में बड़ी ठोस बातें कहीं। श्री शंभूसिंह हाडा ने इस यज्ञ के आयोजन के कारणों पर प्रकाश डाला। तीनों दिनों आचार्य जी के भी विद्वत्तापूर्ण भाषण हुए।
गायत्री तपोभूमि मथुरा की पूर्णाहुति के समय का बम्बई के श्री डूँगरशी भाई द्वारा तैयार किया हुआ रंगीन फिल्म जब पंडाल में सिनेमा द्वारा दिखाया गया, तब हजारों नर-नारियों की भीड़ उसे देखकर रोमाँचित हो गई। बड़ा प्रभाव पड़ा। उस समय सभी लोग इस प्रकार के फिल्म माध्यम द्वारा साँस्कृतिक प्रचार की बड़े आयोजन के साथ व्यवस्था बनाने की आवश्यकता अनुभव कर रहे थे। यह आयोजन बहुत सफल रहा।
पूर्णाहुति का दृश्य देखने ही योग्य था। जनता का विशाल समुद्र सर्वत्र उमड़ा पड़ रहा था। व्यवस्था के लिए कोटा जिले के उच्च सरकारी अफसर तथा पुलिस सुपरिण्डेण्डेण्ट अपनी कुमक के साथ व्यवस्था को संभालने में लगे हुए थे। स्वयं-सेवकों ने दिन-रात एक करके इतने बड़े जन समुद्र को अनुशासित और नियंत्रित रखने में आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की। यह संचालक समिति के सदस्य यों तो छः छः महीने से कार्यरत थे पर यज्ञ के कुछ दिन पूर्व से वे यज्ञशाला में ही अपना डेरा डाले पड़े रहे। कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम और अटूट श्रद्धा का ही फल था कि इतना विशाल आयोजन ऐसी शाँति एवं सफलता के साथ पूर्ण हो सका।
सभी आगंतुकों के लिए ठहरने एवं भोजन की समुचित व्यवस्था थी। पूर्णाहुति के बाद गायत्री माता तथा यज्ञ भगवान के चिन्नों का तथा आचार्य जी का जुलूस निकाला गया। -महेन्द्र नाथ भार्गव