अभी दो क्षण हुए साथी, उषा ने गान गया था।
अभी दो पल हुए पंथी, सवेरा मुस्कराया था॥
अचानक बादलों ने आ, तिमिर से शून्य भर डाला,
समझ कर निशि न सो जाना, अभी मैं पथ दिखाता हूँ।
नई आवाज देता हूँ। नई मंजिल बनाता हूँ॥
कदम अपने मिलाओ तुम। शहीदों के रुधिर से जो खिले हैं फूल उपवन में।
तुम्हें सौगन्ध है उनकी, न हिम्मत हारना मन में॥
गिराने दो इन्हें गोले, चलाने दो इन्हें तोपें-
अँधेरा रह नहीं सकता, मशालें मैं जलाता हूँ, नई आवाज देता हूँ।
नई मंजिल बनाता हूँ॥
कदम अपने मिलाओ तुम। सिसकती झोपड़ी को मौत ने मरघट बनाया है।
यहाँ इन्सानियत को बेकफन जाता जलाया है॥
तुम्हें सौगन्ध यौवन की, पसारो प्यार का अंचल-
मरण को भी पिला जीवन, चिताएँ मैं बुझाता हूँ।
नई आवाज देता हूँ।
नई मंजिल बनाता हूँ॥
कदम अपने मिलाओ तुम।
नया अभियान है माँझी, नया विश्वास तो लेलो।
बढ़ा तूफान में नौका गरजती आँधियाँ झेलो॥
तुम्हें सौगन्ध लहरों की, झुका पाएँ न चट्टानें-
सुनो मंझधार से जयगीत मैं तुमको सुनाता हूँ।
नई आवाज देता हूँ।
नई मंजिल बनाता हूँ॥
कदम अपने मिलाओ तुम।
-हिन्दुस्तान
(श्री रामगोपाल शर्मा ‘दिनेश’)
*समाप्त*