तुम विन्ध्यवासिनी (Kavita)

January 1957

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हे देवी, वेदों की माता तुम भूमा भी कहलाती हो।

तुम विन्ध्यवासिनी चामुँडा चंडी दुर्गा बन जाती हो॥

हे आदि शक्ति तुम अलख निरंजन हो जग की पालन कर्त्ता।

भय शोक क्लेश विध्वंसक हो दुख दारिद्र दैन्य सकल हर्त्ता॥

ब्रह्म रूपिणी प्रणत पालिनी जग की धात्री श्री जगदम्बा।

भवभय तारिणि सब सघ हारिणि, अविनाशी अमले श्री अम्बा॥

तुम ही माँ शची स्वधा स्वाहा ब्रह्माणी सीता राधा हो।

सतरूपा कमला रुद्राणी बन कर हरती जग बाधा हो॥

तुम कामधेनु सत्चित् आनंद गंगा प्रणव महा महिमे।

सविता की शाश्वती शक्ति हो सावित्री शोभा गुण गरिमे॥

सब वेद शास्त्र उपनिषद् ग्रन्थ, रामायण महाभारत और गीता।

हो ऋषि मुनि योगीजन द्वारा सब स्मृतियों की तुम निर्माता॥

गो सुर मुनि मानव रक्षा हित तुम अष्टसिद्धि बन कर आई।

संहार असुरता का करने तुम काली बन कर किलकाई॥

भारत की केवल नहीं माता सारे जग की तुम संस्कृति हो।

सामाजिक आत्मिक वैयक्तिक बाधा दलने की युक्ति हो॥

जिसने तुमको जिस भाँति जपा माँ वैसा ही फल पाया है।

मन की अभिलाषा पूरी हुई मिट गई दुःखों की छाया है॥

हम दीन हीन शिशु हैं तेरे सामर्थ्यवती तुम हो माता।

शरणागत का उद्धार करो जय भव बंधन हर्त्री माता॥

(श्री रूपरामशर्मा, धगवाँ)

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