ठंडे दिमाग से विचार किया करें।

May 1954

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(प्रो. मोहन लाल वर्मा एम.ए., एल. एल. बी.)

ठंडा दिमाग मनुष्य की बहुमूल्य देन है। जिस व्यक्ति ने ठंडे दिमाग से जीवन की नाना विषम समस्याओं पर विचार करने की आदत का विकास किया है, वह संकट, विपत्ति या उत्तेजना के उद्दीप्त क्षणों में, जीवन के प्रत्येक मोर्चे पर सफल होता रहेगा।

एक महान साहित्यिक ने वर्षों दिन-रात घोर मानसिक परिश्रम कर एक महत्वपूर्ण मौलिक ग्रन्थ रत्न की रचना की थी। इसे वह अपने जीवन की सबसे मूल्यवान वस्तु समझते थे। संयोग से एक दिन पुस्तक को मेज पर खुली लैम्प जलता हुआ छोड़कर किसी जरूरी काम से बाहर गये। थोड़ी देर पश्चात् लौटे तो क्या देखते हैं कि कुत्ते ने लैम्प पुस्तक पर गिरा दिया है और वह जलकर खाक हो चुकी है। वह स्तब्ध हो गये। उनके इतने वर्षों के परिश्रम का यह दुष्परिणाम। अन्य कोई तेज दिमाग या उत्तेजक स्वभाव वाला व्यक्ति होता तो क्षोभ के आवेश में पागल हो जाता। किंतु उन्होंने इतना कहा- “राम तुम नहीं जानते मेरी कितनी भारी क्षति की है।” उनके ठंडे दिमाग ने उन्हें पागलपन, निराशा, नाउम्मीदी से बचाया। उन्होंने पुनः सतत् परिश्रम एवं दीर्घकाल की साधना से पुनः उस ग्रन्थ रत्न को स्मृति से लिख दिया।

एक व्यक्ति ने एक नेवला पाला। नेवला बड़ा स्वामी भक्त और विश्वास पात्र था। एक दिन घर का मालिक अपने छोटे बच्चे को खाट पर सुलाकर नेवले को रक्षक बना, किसी आवश्यक कार्य से बाहर गया। ऐसा प्रायः वह किया ही करता था। जब वापस लौटा तो दरवाजे पर नेवले को देखा किन्तु उसका मुँह रक्त से सना हुआ था। “इसने मेरे बच्चे को मार डाला है। उसी का रक्त इसके मुँह पर लगा हुआ है।” यह कुकल्पना मन में आते ही गृह स्वामी का दिमाग गर्म हो उठा। उसने फौरन लाठी से नेवले को मार डाला। जब अन्दर आया तो देखा बच्चा निश्चित सो रहा है। पर चारपाई के नीचे एक काला सर्प टुकड़े-टुकड़े होकर पड़ा है। उसे मालूम हुआ कि स्वामी भक्त नेवले ने सर्प से लड़कर बच्चे की रक्षा की थी। उसे अपने दिमाग की गर्मी एवं जल्दबाजी पर बड़ा दुःख हुआ। यह पुरानी कहानी गर्म दिमाग वालों के लिए गहरे मर्म से परिपूर्ण है।

“ठण्डा दिमाग” का तात्पर्य है, शान्ति स्थिर चित्त से सोचने, निर्णय करने की शक्ति, मन को सन्तुलित रखने की आदत, विवेक बुद्धि को सदा सर्वदा जागरुक रख कर जीवन में प्रविष्ट होने की प्रवृत्ति। वास्तव में शान्त चित्त से निर्णय करना जीवन में बड़ा उपयोगी है। बड़े-बड़े राष्ट्रों के मामलों को देखिये, बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ कितना सोच-विचार कर निर्णय करते हैं। जल्दबाजी या क्षणिक उत्तेजना अथवा आवेश में कोई कुछ नहीं करता।

सरकारी अदालतों में मारपीट, खून, चोरी इत्यादि के अनेक मुकदमे नित्य पहुँचते हैं। लड़ने-झगड़ने वाले चाहा करते हैं कि निर्णय जल्दी से जल्दी हो, किन्तु फैसला दो तीन वर्ष में होता है। तब तक दोनों झगड़ने वालों के दिमाग ठण्डे हो लेते हैं और सम्भव है वे अपनी गलती भी अनुभव करते हों। यदि तुरन्त फैसले होने लगें, तो तनाव और अपराध और भी अधिक बढ़ते रहें। कानून की शरण लेने का सबसे बड़ा लाभ यही है कि यह गर्म दिमागों को धीरे-धीरे ठण्डा कर देता है। एक स्थिति ऐसी आती है जब व्यक्ति स्वयं ईमानदारी से सोचकर निर्णय करने के पक्ष में हो जाता है और आपसी समझौता हो जाता है।

आप ठण्डा दिमाग रखा करें, तो मन में आने वाली क्षणिक उत्तेजना, घबराहट, विक्षोभ, आत्मग्लानि, निराशा से बच सकते हैं। क्षणिक भावावेश में मनुष्य का विवेक पंगु हो जाता है, बुद्धि पर भावना का पर्दा छा जाता है, और इच्छा शक्ति पंगु सी हो जाती है। गर्म दिमाग का व्यक्ति ऐसे आवेश में दूसरों का सिर फोड़ेगा, क्रोध करेगा, कत्ल कर बैठेगा या आत्मग्लानि का शिकार होकर आत्म हत्या करने से न चूकेगा। गर्म दिमाग चिड़चिड़ा, अस्थिर और उत्तेजक होता है। उसे आवेश में उचित-अनुचित का विवेक तक नहीं रहता। ऐसे व्यक्ति सबसे रूठे हुए, भिन्न मन, संकुचित दृष्टिकोण और विचित्र स्वभाव वाले होते हैं।

ठण्डे दिमाग वाले व्यक्ति में दो अमोध गुण होते है। मानसिक संतुलन एवं विवेक की स्थिरता। ऐसा व्यक्ति दूरदर्शी और संयमी होता है, और व्यर्थ के छोटे-मोटे झगड़ों, शिकायतों या झंझटों में नहीं उलझता। वह गलतफहमी में नहीं फंसता। जहाँ दूसरे के दृष्टिकोण को सहानुभूति पूर्वक सुनने-समझने की वृत्ति है, जहाँ जल्दबाजी पिशाचिनी नहीं है, जो दूसरों से ऊबता या चिढ़ता नहीं है, वह गलतफहमी में नहीं पड़ सकता।

ठंडा दिमाग आपकी आन्तरिक शान्ति, सुचारुता, नियन्त्रण एवं क्रमानुसार काम करने की अच्छी आदतों का द्योतक है।

एक मनोवैज्ञानिक ने लिखा है कि ठण्डे दिमाग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि हमारे सारे दिन के नाना जटिल कार्य सुचारुता से सम्पन्न हो जाते हैं, उनमें कोई गलती नहीं रहती, मन सन्तुष्ट रहता है और रात्रि में सुख सन्तोषमयी निद्रा का आनन्द आता है।

वास्तव में ठंडा दिमाग तथा मीठी नींद-इन दोनों अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। वही व्यक्ति शान्तिमय निद्रा का आनन्द लूटता है जो निश्चिन्त मन, बिना तनाव वाले रक्तकोष, बेकार के अनर्थकारी विचार और अनर्थकारी कल्पनाओं से मुक्त मस्तिष्क लेकर रात्रि में शय्या ग्रहण करता है। दिमाग पर अनावश्यक मानसिक भार डालने से भयंकर स्वप्न और टूटी-फूटी निद्रा आती है।

जब आप क्रोध की उत्तेजना में पागल से हो रहे हों, तो ठंडे दिमाग से काम कीजिए। उत्तेजना के शान्त होने पर आप देखेंगे कि आप ऐसा कार्य करने चले थे, जिस पर अन्ततः आपको पछताना पड़ता। आवेश में विवेक बुद्धि दब जाती है और उचित-अनुचित का ज्ञान नहीं रह जाता।

जब आप निराशा और नाउम्मीदी के पोच विचारों से ढके हुए हों, तो दिमाग को शान्त एवं निर्मल कीजिए। कुछ समय के लिए उस कार्य को छोड़कर कोई नवीन कार्य हाथ में लीजिए, स्वल्पाहार कर जलपान कर लीजिए। मन में ताजगी आने पर पुनः नवीन रीति से अपने जीवन की जटिलताओं पर विचार कीजिए। शान्त चित्त से विचार करने पर अवश्य आप कोई नया हल ढूँढ़ निकालेंगे।

जब आप व्यापार में घाटा, पुत्र का परीक्षा में असफल होना, किसी हितैषी की मृत्यु, घर में चोरी या अन्य किसी आकस्मिक विपत्ति से त्रस्त हो रहे हों, तो धैर्य से काम कीजिए और मन को ठंडा हो लेने दीजिए। ठंडे दिमाग में उच्चविचार और विवेक पूर्ण रूप से कार्य करते हैं और नए-नए हल निकल आते हैं।

जब आप किसी सम्बन्धी के दुर्व्यवहार से खिन्न हो तो जल्दी में अपना मनुष्यत्व न खो बैठिये, वरन् निष्पक्षता से विचार कीजिए सम्भव है, स्वयं ही गलती पर हों। मान लीजिए दूसरा ही गलती पर है, फिर आप क्या करें? उसका दिमाग ठंडा होने दीजिए। विवेक बुद्धि जागृत होने पर वह स्वयं अपनी दुर्बलता पर ग्लानि का अनुभव करेगा।

दिमाग की उद्विग्नता एक अति मानवीय स्थिति है मनुष्य पशुत्व की निम्न कोटि पर सरक आता है। अतः इस मनःस्थिति में किया हुआ कार्य सदा त्रुटिपूर्ण होता है।


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