उतावली का दुष्परिणाम

May 1954

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(श्री विट्ठलदास जी मोदी सम्पादक-’आरोग्य’)

आपके काम अटके हुये हैं, पूरे नहीं हो पा रहे हैं। आप उन्हें खत्म करने को उनसे जी-जान से लड़ रहे हैं। फिर भी हार ही आपके पल्ले पड़ती है। यह क्यों? इसलिए कि आप उन्हें पूरा करने की जल्दी में रहते हैं, जल्दबाजी से काम लेते हैं। आप पीछे रह जाते हैं, क्योंकि आप चलना नहीं, दौड़ना भी नहीं, बहुत तेज दौड़ना चाहते हैं। आनन्द के साथ उन्हें करना नहीं जानते।

अभी कल की बात है, मेरे आफिस में एक नया टाइपिस्ट आया। वह गजब की तेजी से टाइप करता था। मैंने उसे बुलाया और उसे अपने अन्य सहयोगियों को भी तेजी से टाइप करने की शिक्षा देने को कहा। मैं और उसके सारे सहयोगी टाइपिस्ट यह सुनकर हैरान हो गये। जब उसने कहा कि तेजी से टाइप करने के लिए जरा धीरे से (धीरज से) टाइप कीजिए। उसने बताया कि मेरा यह अनुभव है कि जिस सप्ताह मैं अपना टाइप करने की गति आधी रखने की कोशिश करता हूँ, आनन्द के साथ टाइप करता हूँ, उस सप्ताह के अन्त में मेरी टाइप करने की गति निश्चित रूप से सदा से अधिक हो जाती है। इस नये टाइपिस्ट का कहना है कि यह नियम सभी कामों में काम देता है।

इन्हीं दिनों मैं स्वयं सितार पर एक नई गत बजाना सीख रहा था। मैंने इस काम में भी अपने इस नये टाइपिस्ट की सीख से काम लेना शुरू किया। यह नई गत मैं पकड़ नहीं पर रहा था। मेरे सितार शिक्षक ने जो स, र, ग, म लिखा दिया था उसे उनकी-सी तेजी से बजा लेना चाहता था। पर हमेशा असफल होता था और मन में बड़ी खीज उठती थी। खैर, मैंने बहुत धीरे-धीरे बजाना शुरू किया, बहुत धीरे-धीरे। हर तार पर अँगुली ठीक तरह रखता, हर तार को पूरा बजाता और एक सप्ताह बाद मैंने देखा कि वह मनचाही तेजी से, पर साथ ही सही तरीके से बजा रहा हूँ। मालूम होता था सितार खुद ही बज रहा है। यह देख कर मैं और मेरे सितार शिक्षक दोनों ही बहुत आश्चर्य में थे।

तब मैं काम धीरे रस पूर्वक करने की रीति प्रत्येक कार्य में लगाता हूँ और मुझे कभी इससे अपने काम के प्रति शिकायत नहीं हुई।

बात यह है कि किसी भी चतुराई भरे काम करने की रीति या कला तब तक पूर्णतः हस्तगत नहीं हो सकती जब तक कि उसके कार्य की पद्धति हमारे अंतर्मन में स्थापित न हो जाय- जब तक कि हम उस पद्धति की ओर ध्यान दिये बिना उसे करने न लग जाय और जब तक उस कार्य के करने में हमें आनन्द न आने लगे। यदि बाँसुरी बजाने वाला सोचे कि उसे बाँसुरी के किस रन्ध्र के बाद किस रन्ध्र पर अँगुली रखनी चाहिये तो क्या वह कभी बाँसुरी बजा सकता है? उसका अंतर्मन उसकी अँगुलियों को स्वयं चलाता रहता है।

पर जब हम उतावली से काम लेते हैं तब हमारे अंतर्मन को अपना काम स्वाभाविक रीति से करने में बाधा पड़ती है। जल्दबाजी की दशा में मस्तिष्क तेजी से काम करने की इच्छा का भार काम पर लाद देता है, इससे अंतर्मन की काम करने की अपनी गति बिगड़ जाती है और काम जल्दी होने के बजाय देरी से होता है।

जब हम काम या कला सीखते हैं तब हम जो करते हैं वह सोचकर करना पड़ता है पर बार-बार वहीं काम करने पर उसकी पद्धति हमारे अंतर्मन पर अक्सर हो जाती है, कार्य के साथ जोर या जबरदस्ती अंतर्मन की इस स्वाभाविक पकड़ में बाधा पहुँचाती है। कार्य को धीरे-धीरे सीखने पर उस पर जल्दी का बोझ न डालने पर हम उस कार्य को पूरी तरह सीखते हैं और उसे फिर हम बिना प्रयास के बड़ी आसानी से कर सकते हैं।

जल्दबाजी का हमारे काम करने की गति से कोई सम्बन्ध नहीं है। जल्दबाजी तो केवल एक मानसिक अवस्था है। टाइप करने वाला व्यक्ति आपको बहुत धीरे-धीरे टाइप करता दिखाई दे सकता है, पर वह यदि उतना भी जबरदस्ती से करता है, गति में तेजी लाने के लिए अपनी पूरी इच्छा शक्ति लगा रहा है तो वह जल्दबाजी से काम ले रहा है। इसके विपरीत वह जो दूसरा विद्यार्थी बिना किसी प्रयास के, अपने पर बिना किसी तरह का जोर डाले दूनी तेजी से टाइप करता है, मन में उसके कोई तेजी नहीं है, तेजी से काम करने का उसके मस्तिष्क पर कोई भार नहीं है। वह अपना काम तेज करता है, पर मन से जल्दी नहीं।

काम धीरे सीखने की पद्धति का रहस्य यह है कि यह हमें अभ्यास का मौका देता है और हमारे मस्तिष्क को कार्य के भार से मुक्त रखता है।

उतावली केवल धोखा है। यह सोचना कि कार्य यदि जल्दी-जल्दी किया जाय तो ज्यादा हो सकता है, भूल है, बल्कि सत्य इसके बिल्कुल विपरीत है। जल्दबाजी, उत्सुकता, दबाव और इन सबसे दिमाग पर पड़ने वाला खिंचाव हमारे कार्य की गति धीमी ही नहीं कर देता बल्कि ऐसी दशा में काम घटिया प्रकार का भी होता है। मन की इस दशा का प्रभाव शरीर पर भी पड़ता है। अक्सर उतावली में रहने वालों को स्नायु-दौर्बल्य रोग आ घेरता है और उनके मन की शान्ति चली जाती है।

जल्दबाजी से दूर रहने वाले का जीवन शान्ति पूर्ण होता है और वह काम को बड़े आराम और आनन्द से करता है। शान्त, गम्भीर विचारवान पुरुष ही जीवन में कुछ कर पाते हैं। भाग-दौड़, देर होने के डर से पीड़ित व्यक्ति काम को खराब ही करते हैं।

जल्दबाजी शान्ति, स्वास्थ्य और प्रसन्नता को हरती है और यह जितना काम आदमी कर सकता है, उतना नहीं करने देती। तक आप हड़बड़ाकर अपना काम क्यों बिगाड़ें।


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