गायत्री महायज्ञ की सफलतापूर्वक समाप्ति

May 1954

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

चैत्र शुक्ल 13, 14, 15 को गायत्री महायज्ञ सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया। एक दो दिन पहले से ही यज्ञ में भाग लेने वाले ऋत्विज् आना आरम्भ हो गये थे और धीरे-धीरे करके एक सप्ताह में सभी अपने अपने स्थानों को वापिस चले गये देश के सुदूर प्रदेशों से लगभग 125 गायत्री उपासक आये थे। यह सभी निष्ठावान गायत्री उपासक एवं सुसंस्कृत महानुभाव थे लगभग 75 स्थानीय व्यक्तियों को मिलाकर 200 के करीब इस पुण्य आयोजन का पूर्ण करने में लगे रहें।

यह एक सप्ताह प्राचीन काल के ऋषि आश्रमों का स्मरण दिलाता था। गायत्री महापुरश्चरण का जप पूर्ण करने के लिये पुरुष तथा महिलाएँ सूर्योदय से पूर्व ही अपने-अपने आसनों पर बैठ जाते थे और प्रायः 5 घण्टे सुबह और लगभग 3॥ घण्टे शाम को निष्ठापूर्वक गायत्री महायज्ञ का जप करते थे। अधिकाँश ने तो तीन दिन में ही 24 हजार जप के लघु अनुष्ठान पूर्ण किये। सफेद धोती कुर्ता सभी की एक सी पोशाक-कन्धे पर पीले दुपट्टे एक रूपता समस्वरता का बहुत ही उत्तम दृश्य उपस्थित करते थे।

महायज्ञ प्रायः 6॥ बजे से आरम्भ होकर मध्याह्न को 12 बजे तक और दोपहर को 2 बजे से शाम को 6 बजे तक 8॥ घण्टे नियमित रूप से चलता था। 10 होता बैठते थे। यह अपनी बारी से बदलते रहते थे स्त्रियाँ भी पुरुषों की ही भाँति जप और हवन में भाग लेती थी। सब कार्य पूर्ण शास्त्रोक्त रीति से सात वेदपाठी आचार्यों की संरक्षता में सम्पन्न हुआ। पूर्णाहुति के उपरान्त प्रसाद, यज्ञ भस्म एवं “गायत्री से यज्ञ का सम्बन्ध” पुस्तिकाएं वितरण की गई, लगभग 40 व्यक्तियों के यज्ञोपवीत हुए और उन्हें गायत्री मन्त्र दिया गया। निर्धारित संख्या में जप और हवन सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ। रात्रि के समय प्रतिदिन 7॥ से 10॥ बजे तक महत्वपूर्ण प्रवचन होते थे। इस प्रकार शौच, स्नान, भोजन और थोड़ा विश्राम का समय छोड़कर प्रातः 4 बजे से रात्रि को 10॥ बजे तक की निरन्तर तपश्चर्या चलती रहती थी। परस्पर सबका आपसी परिचय कराया गया और अनेकों ने उत्साह वर्धक अनुभव सुनाये।

इस महापुरश्चरण एवं गायत्री महायज्ञ का आयोजन ऐसी व्यापक सूक्ष्म शक्ति उत्पन्न करने के संकल्प के साथ-साथ किया गया था जिसके द्वारा लोगों की मनों भूमिका में सात्विक परिवर्तन हो और आत्मबल का प्रकाश बढ़े। जिस प्रकार कुम्हार अवा लगाकर एक ही समय में एक ही अग्नि योजना से सैकड़ों बर्तनों को पका देता है उसी प्रकार इस महापुरश्चरण की दिव्य ऊष्मा से अनेकों साधकों की साधना का वैसा परिपाक हुआ जैसा अलग-अलग से अनेक वर्षों तक प्रयत्न करने पर भी सम्भव न था। अनेकों साधकों ने प्रत्यक्ष रूप से यह अनुभव किया कि इस वातावरण में तीन-चार दिन ही रहकर हमने वह पाया है जो वर्षों तक लम्बी साधना करने पर भी उपलब्ध न हो सका था। साधकों की पारस्परिक प्राण शक्ति का आपसी विनिमय तपोभूमि के प्रभावशाली वातावरण का प्रभाव, गुप्तवेश में उपस्थित अत्यन्त उच्च कोटि के तपस्वियों की सान्निध्य, महायज्ञ एवं महापुरश्चरण द्वारा आहूत देव शक्तियों का स्थापत्य, यज्ञ संयोजक की विशेष प्रेरणा इन सब बातों के कारण-यह आयोजन देखने में सामान्य होते हुए भी वस्तुतः असामान्य था। इस असामान्य वस्तुस्थिति को उन दिनों तपोभूमि में ठहरे हुए प्रत्येक व्यक्ति ने प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया। जिस सूक्ष्म शक्ति का अनुभव इस आयोजन द्वारा किया गया है, वह अपना काम कर रही है। सूक्ष्म दर्शी लोग ही जानते हैं कि इसके परिणाम किस-किस क्षेत्र में कितने व्यापक एवं कितने महान होने जा रहे हैं।

सभा सम्मेलनों की इस आयोजन की तुलना करना किसी भी प्रकार उचित न होगा। प्रचारात्मक एवं प्रदर्शनात्मक इसे बिल्कुल ही नहीं रखा गया था। शहर से एक मील दूर-जंगल में यमुना के पुण्य पुलिन पर शाँतिमय वातावरण में इसे इसीलिए रखा गया कि अनाधिकारी भीड़ वहाँ न पहुँचे और जिस सात्विकता एवं गम्भीरता से ऋषि कल्प वातावरण में यह अनुष्ठान करना है वह शाँतिपूर्वक पूर्ण हो सके। माता की कृपा से वह कार्य बड़े ही उत्तम प्रकार से सम्पन्न हो गया। गत वर्ष की भाँति इस वर्ष भी इस महापुरश्चरण के खर्च की अधिकाँश पूर्ति गायत्री उपासकों द्वारा की गई। कुल मिलाकर 650 रुपये की कमी रही।

ऐसे आयोजन समय-समय पर अन्यत्र भी होने आवश्यक हैं। आज कल मानव हृदयाकाश में जो विकृति आ गई है, प्रकृति की तृतीय भूमिका में जो विक्षोभ उत्पन्न हो रहा है उससे सम्पूर्ण मानव जाति मानसिक एवं निर्वाह क्षेत्रों में नाना प्रकार के कष्ट पा रही है। इनका समाधान करने के लिए ऐसे सात्विक शक्तिशाली एवं शास्त्रोक्त सूक्ष्म चेतना उत्पन्न करने वाले आयोजनों की बड़ी आवश्यकता है। ऐसे आयोजनों के अभाव में केवल राजनीतिक एवं समझ कार्य उस पूर्णता तक नहीं पहुँच सकते, जिस पर पहुँचकर ही मानव जाति के लिए शान्तिपूर्ण जीवन यापन करना सम्भव होता है।

मंत्र लेखन यज्ञ

गायत्री मंत्र लेखन यज्ञ मन्द गति से चल रहा है। इस दिशा में साधकों का उत्साह कुछ शिथिल होता जाता है, जो ठीक नहीं है अब तक करीब 80 करोड़ मंत्र आ चुके हैं। यह संख्या 125 करोड़ पूरी करनी है। सो इस दिशा में प्रयत्न जारी रहना चाहिए। जो लोग अपने हिस्से का मंत्र लेखन पूरा कर चुके हो वे भी यह लेखन साधना जारी रखें एवं नये मंत्र लेखक उत्पन्न करें। साधारणतः 2400 मंत्रों की प्रत्येक साधक से आशा की गई। इससे अधिक लिखना यह लेखन साधना बारंबार जारी रखना और भी अधिक प्रशंसनीय है।

गायत्री उपासना के अनुभव

सदा की भाँति अखण्ड-ज्योति का जुलाई का अंक गायत्री अंक होगा। उसमें गायत्री उपासना से हुए भौतिक एवं अध्यात्मिक अनुभवों के दर्शन रहेंगे। जिन्हें स्वयं कोई उत्साह वर्धक अनुभव हुए हो। अथवा जिन्हें किन्हीं अन्य जीवित या स्वर्गीय महामानव की गायत्री अनुभव विदित हो वे उनका विस्तृत वर्णन लेख रूप में भेजने की कृपा करें ताकि उन्हें जुलाई के विशेषाँक में स्थान दिया जा सके।

परमार्थ प्रेमियों की आवश्यकता

जिनके ऊपर पारिवारिक जिम्मेदारियों का भार नहीं, ऐसे आत्म कल्याण एवं लोग सेवा की भावना वाले सज्जनों की आज राष्ट्र को भारी आवश्यकता है। अपनी शिक्षा, साधना तथा तपश्चर्या को बढ़ाते हुये भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए अपना जीवन लगाना चाहे वे गायत्री तपोभूमि अपना घर बनाकर लक्ष्य प्राप्ति के लिए अग्रसर हो सकते हैं। ऐसे सज्जन पत्र व्यवहार करें। उनके जीवन निर्वाह की व्यवस्था तपोभूमि करेगी।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118