शाक, भाजी और फलाहार

May 1954

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री अवनीन्द्र कुमार विद्यालंकार)

डॉक्टर और भोजन-शास्त्रियों का कहना है कि शरीर को स्वास्थ्य और कार्यक्षम तथा शक्ति सम्पन्न रखने के लिए प्रतिदिन कम से कम 3 छटाँक शाक सब्जी खाना चाहिये। शरीर के अवयवों का संचालन ठीक तरह से हो, इनके लिए भोजन में पत्तों के शाक, और सब्जी का होना आवश्यक है। पर भारत के गाँवों में यदि कोई व्यक्ति दौरा करे तो यह देखकर उसको आश्चर्य होगा कि गाँव वाले आलू ओल आदि सब्जियों के अलावा अन्य शाक सब्जी उसी समय खाते हैं, जब गाँव के हाट में बिकने आती है या उनके घर के आँगन में उत्पन्न हुई हों। तोरी, सेम, कद्दू, अनायास या थोड़े आयास से घर के आँगन में हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त गाँव के लोग शाक, सब्जी के लिए शहरों पर ही आश्रित हैं, अपनी खेतों पर नहीं। शहरों के समीपवर्ती गाँवों के किसान या कोहरी यदि शाक, सब्जी बोते हैं, जो अपने लिए नहीं, बल्कि शहर के शौकीन बाबुओं के लिए। शाक, सब्जी हमारे भोजन का अभी तक आवश्यक अंग नहीं बना है। न यह समझा जाता है कि शरीर के अन्दर रक्त और संचालन और सब अवयवों की वृद्धि और मैदा साफ करने के लिए शाक सब्जी का प्रतिदिन सेवन आवश्यक है। जो हाल शाक सब्जी का है, वही हाल फलों का है। फल भी अभी तक हमारे भोजन का आवश्यक अंश नहीं बना है। आम्ल रस के फलों जैसे सन्तरा, नागफनी, नीबू की जाति के फल का भारत में प्रति व्यक्ति व्यवहार 3-2 पान्ड से ज्यादा नहीं है। इसके विपरीत अन्य देशों में इनका प्रति व्यक्ति व्यवहार इस प्रकार है-

फिलिस्तीन 222 पौंड, स्पेन 85 पौं., संयुक्त राष्ट्र अमरीका 54 पौं., ब्राजील 53 पौं., मिस्र 30 पौं., ब्रिटेन 27 पौं., भारत 3 पौंड।

यही हाल अंगूर के व्यवहार और खपत का है-

तुर्की 84 पौंड, बलगेरिया 56 पौं., अर्जेंटाइना 43 पौं., ग्रीस 30 पौं., इटली 18 पौं., संयुक्त राष्ट्र अमरीका 17 पौं., स्पेन 10 पौं., भारत 0.1 पौंड।

हिमालय प्रदेश के कमिश्नर श्री एन. सी. मेहता का कहना है कि हमारी जनता का आहार शोकजनक रीति से अपर्याप्त है। अच्छाई विविधता दोनों दृष्टियों से कमी है, यद्यपि पौष्टिक भोजन और अर्थ प्राप्ति दोनों दृष्टियों से शाक-सब्जी और फलों की लाभजनक खेती के लिए असीम अवसर प्राप्त हैं।

दुनिया मशीन युग में रह रही है। असल की शक्ति की जरूरत नहीं रही है, फलतः उसका भोजन भी बदल रहा है। भारी शक्ति उत्पादन खाद्य पदार्थों की जगह हल्का संरक्षणात्मक भोजन ले रहा है और इस दौड़ में फल सबसे आगे हैं। संयुक्त राष्ट्र अमरीका में 1909 की अपेक्षा में गेहूँ, माँस, आलू, अनाज की खपत में 1928 के अन्दर पर्याप्त कमी दिखाई दी है। इस अवधि में संतरा, नींबू और अंगूर आदि की खपत दो-तीन गुना अधिक हो गयी। हाल की खोज ने सिद्ध कर दिया है कि फलों और शाक सब्जी के बिना कोई आहार सन्तुलित नहीं हो सकता, पर आश्चर्य है कि माता की ‘फुल्ल कुसमित द्रूमदल शोभनीम्” से स्मृति करने वाले अपने आहार में शाक-भाजी और फलों को उचित स्थान नहीं दे रहे हैं। क्या यह आश्चर्य का विषय नहीं है।

फलों का सेवन भारत के लिए कोई नयी बात नहीं है। वैद्य लोग आयु कल्प कराते ही है। कनखल के एक वैद्य अतिसार का इलाज खरबूजों से ही करते थे। इसलिए रोग निवृत्ति और स्वास्थ्य सुधार के लिए फलों का उपयोग इस देश के लिए नया नहीं है। आहार शास्त्रियों ने विटामिन नामक एक नवीन शक्ति प्रदायक और रोग निवारक तत्व की खोज की है। यह फलों और सब्जियों में प्रभूत मात्रा में पाया जाता है। दूसरी बात यह है कि फलों में 81 प्रतिशत पानी होता है। आन्तरिक शरीर के पक्षालन के लिए भी पानी आवश्यक है। स्नान से बाह्य शुद्धि होती है। पानी अधिक पीना सम्भव नहीं है। पर फलों द्वारा पर्याप्त पानी पिया जा सकता है और अन्तः शरीर के स्नान के लिए यह आवश्यक है। तीसरी बात यह है कि फलों के वृक्ष गाँवों में लगने से गाँव छायादार रहेंगे, वर्षा अच्छी होगी और जमीन नयी रहेगी और इससे फसल भी अच्छी होगी। वृक्षों के लगाने से ईंधन की भी समस्या हल हो जायेगी और गोबर उस अवस्था में न जलकर खेत की उत्पादक शक्ति बढ़ायेगा। इसलिये प्रत्येक गाँव में ‘वृक्षा रोपण सप्ताह’ मनाया जाना चाहिए और गाँव में रहने वाले प्रत्येक व्यक्तियों को इस बात की देख करनी चाहिये कि प्रति वर्ष वह कम से कम एक पेड़ अवश्य लगावे। नीम का पेड़ जहाँ छाया देता है, वहाँ मच्छरों को भी दूर रखता है, मलेरिया से बचाता है और उसके पत्ते और निम्बोली रक्त शुद्ध करती हैं। फल वस्तुतः प्राकृतिक वैद्य और हकीम हैं। भारत के घर-घर में वृक्षों की पूजा होती है, पर दुःख यह है कि यह पूजा निर्जीव और निष्प्राण होती है। पूजा की परिपाटी पाल रहे हैं, पर असली काम भूल गये हैं।

औषधि

गाजर का रस चर्म रोगों को दूर करता है। पायोरिया आज घर-घर में है। इसका कारण यह है कि अधिक अम्ल वाले भोजन गेहूँ, माँस, मछली, रोटी, पानी आदि के सेवन से उत्पन्न होता है। इसके विपरीत सब्जी, विशेषतः शाक, फल और दूध अलकली भस्म वाले है। इसका बाहुल्य होने पर पायोरिया न होगा और दाँत खराब न होंगे। इस प्रकार बन्दगोभी मधुमेह की अचूक दवा है। संतरा इन्फ्लुएंजा को दूर रखता है। रक्त आदि की बीमारी में रोगियों को दो-तीन उपवास करने के बाद संतरा का रस दिया जाता है। महात्मा जी तो सदा उपवास की समाप्ति सन्तरे या मौसमी के रस से करते थे। अमर शहीद श्रद्धानन्द कहा करते थे कि बरसात के दिनों में प्यास लगने पर दो-तीन सन्तरे ले लेते हैं। यही बात अंगूर और भेद फूट के बारे में है। भेद फूट तो अनेक चर्म रोगों को दूर करता है। टमाटर और संतरा सूखे की बीमारी में अत्यधिक उपयोगी है। अनाज के अम्ल का प्रतिरोधक अलकली आरम्भ फलों में होता है। अतः शाक-भाजी और फलों का व्यवहार आहार में प्रतिदिन बढ़ाना चाहिए यह तभी सम्भव है जब प्रत्येक व्यक्ति कम से कम एक वृक्ष रोपे तो इस प्रकार हम सच्चे अर्थों में वृक्षापन करेंगे?


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: