साधना पथ (Kavita)

May 1954

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मैं तुम्हारी साधना का दीप बन जलता रहूँगा। मैं तुम्हारी भावना का पुष्प बन खिलता रहूँगा॥

हिय हिलोरें ले रहा है, आज हुलसित कामना है। मृदु मिलन की आस ले, यह साधना यह अर्चना है॥

प्रेम पथ पर स्वस्थ श्रद्धा से सदा चलता रहूँगा। मैं तुम्हारी साधना का दीप बन जलता रहूँगा॥

इस भटकते पथिक को, पथ का किनारा मिल चुका है। मुस्कराती वेदना का, दर्द उर को मिल चुका है॥

कामना तेरे मिलन की, जन्म भर करता रहूँगा। मैं तुम्हारी साधना का दीप बन जलता रहूँगा॥

दूर तुम हो देव! इन व्याकुल दृगों से। छुट गया हो नीड़, प्रिय, जैसे भागों से॥

आधार लेकर प्रीति का मैं वन्दना करता रहूँगा। मैं तुम्हारी साधना का दीप बन जलता रहूँगा॥

स्वर्ग से मुझको धरा पर, मत गिराओ। मैं पुजारी हूँ तुम्हारा, कर कमल आगे बढ़ाओ॥

हो भले ही सघन निशि मैं तारिका गिनता रहूँगा। मैं तुम्हारी साधना का दीप बन जलता रहूँगा॥


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