अपने बालकों को मथुरा भेजिए।

May 1954

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(स्वल्प काल में जीवन कला सीखने का स्वर्ण सुयोग)

जेष्ठ सुदी 1 से लेकर पूर्णिमा तक 15 दिन का जो ज्ञान सत्र गायत्री तपोभूमि में होने जा रहा है। उसका महत्व भी असाधारण है। इन दिनों स्कूलों की छुट्टियाँ होती हैं। अखण्ड-ज्योति परिवार के बालकों को उत्तम जीवन यापन करने की शिक्षा देने के लिए यह आयोजन इस दृष्टि से किया गया है कि वे अपने मन में कुछ सुसंस्कारों की स्थापना करके अपने परिवार के लिए उपयोगी एवं सन्तोषदायक एवं अव्यवस्थित चित्त वृत्तियों के कारण मनुष्य को अपने जीवन में पग-पग पर जो असफलताएं एवं परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं, वे न उठनी पड़ें। शिक्षा के साथ-साथ सरस्वती यज्ञ का आयोजन भी इसी दृष्टि से किया गया है कि जो कभी केवल मौखिक शिक्षा से नहीं हो सकती, वह उन दिनों उत्पन्न किए गए सद्बुद्धिवर्धक वातावरण के द्वारा पूर्ण हो सके। आशा की जाती है कि इस सत्र में शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में से अधिकाँश का अच्छा लाभ होगा। माता-पिताओं को चाहिए कि अपने बालकों को इस समय भेजें। स्मरण रहे रोगी, पागल, दुर्व्यसनी, परिश्रम से जी चुराने वाले, फैशनपरस्त, उद्दंड, आदेशों की पालन करने की प्रतिज्ञा न करने वाले छात्र इस समय नहीं लिए जावेंगे। उनके लिए कभी फिर कोई विशेष आयोजन करेंगे। इस समय ऐसे थोड़े भी शिक्षार्थी आ जायें तो इससे कार्यक्रम सारा अव्यवस्थित हो सकता है। स्वीकृति प्राप्त किए बिना कोई सज्जन न आवें।

मनोविज्ञान शास्त्र के माने हुए अनुभवी विद्वान एवं जीवन निर्माण कर्त्ता के विशेषज्ञ प्रो. रामचरण महेन्द्र इस शिक्षा सत्र का संचालन करेंगे, और भी कई उच्च कोटि के शिक्षा विशेषज्ञ शिक्षण कार्य करेंगे। दैनिक कार्यों से प्रतिदिन छात्रों की परीक्षा होती रहेगी और उत्तीर्ण छात्रों को बड़े साइज का अत्यन्त ही आकर्षक छपा हुआ प्रमाण पत्र दिया जायगा। स्वल्प काल में अनेक सद्गुणों के विकास का यह अच्छा आयोजन है। अखण्ड-ज्योति परिवार के छात्रों को इसमें सम्मिलित होने का प्रयत्न करना चाहिए।

अपना आवश्यक वस्त्र तथा थाली, लोटा, कटोरी, गिलास, साथ लाने चाहिए। भोजन सामग्री तपोभूमि में उपलब्ध रहेगी। जो अपना भोजन व्यय स्वयं उठा सकें, वे खाद्य सामग्री के पैसे दे सकते हैं। असमर्थों को पैसे देने के लिए बाध्य न किया जायगा।

इस शिक्षा क्रम को सफल बनाने के लिए कुछ उच्च शिक्षित एवं अनुभवी महानुभावों की भी आवश्यकता है। आशा की जाती है वे बिना मार्ग व्यय या पारिश्रमिक आदि माँगे इस पुनीत कार्य के लिए विशुद्ध सेवा भावना से अपना समय एवं सहयोग देंगे।

वर्ष-14 संपादक-श्री राम शर्मा, आचार्य अंक-5


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