अपने को शक्तिशाली बनाइए।

May 1954

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री अगरचन्द नाहटा)

विश्व का प्रत्येक प्राणी यही चाहता है कि वह शक्तिशाली बने क्योंकि दुर्बल मनुष्य को तो जीने का कोई अधिकार नहीं। उससे तो भगवान भी रूठ जाते हैं। अनेक रोग, शोक, भूत, प्रेत उसे आ दबाते हैं। तब शक्तिशाली जिधर भी अपनी आँख फेरता है, उसका दबदबा नजर आता है। शक्तिशाली की पूर्ण सेवा देवता भी करते हैं। आत्म-रक्षा करते हुए जीवन धारण करने और जीवन को कृतकृत्य और सफल बनाने के लिए सशक्त बनना बहुत ही आवश्यक है। शक्तिशाली व्यक्ति के चमत्कारी कार्यों को लोग युगों तक स्मरण करते रहते हैं। प्राणी मात्र का अनन्त हित साधन करने वाले सभी व्यक्तियों ने किसी न किसी तरह की शक्ति की विशेष रूप से साधना की थी और सुप्त शक्तियों को जागृत व विकसित करके ही वे महापुरुषों की कोटि में सम्मिलित हुए। हम सब प्रतिपल जीवन में शक्ति की आवश्यकता का अनुभव करते हैं। शक्ति के बिना जीवन एक तरह से जीवन ही नहीं है। मुर्दों का सा जीवन भला जीवन ही क्या? जिसमें उमंग नहीं, उत्साह नहीं, साहस व दृढ़ता नहीं, वह जीवन ही बेकार है।

(1) आत्मिक शक्ति के चमत्कार

शक्तियाँ अनेक प्रकार की होती हैं। स्थूल रूप से उनका वर्गीकरण करें तो 1-शारीरिक 2- वाचिक 3-बौद्धिक 4- मानसिक एवं 5-आध्यात्मिक, ये पाँच प्रकार की शक्तियाँ प्रधान हैं। इनमें क्रम से एक दूसरे से उच्च स्तर की है और इनमें एक दूसरी का पारस्परिक घनिष्ठ सम्बन्ध भी है। भारत के मुनि ऋषियों ने इन पाँचों में से आध्यात्मिक शक्ति को ही सर्वप्रिय माना है। इसके बिना अन्य शक्तियाँ अनर्थ एवं उत्पात का कारण भी हो सकती हैं। वास्तव में विचार किया जाय तो आत्मा के कारण ही अन्य चारों शक्तियों का अस्तित्व है। आत्मा के बिना शरीर जड़ है और जड़ में कोई वाचिक, मानसिक, बौद्धिक आदि कोई भी शक्ति नहीं होती। जहाँ तक आत्मा का विद्युत करंट इनके साथ है वहीं तक इनमें प्रकाश है। शक्ति का मूल्य केन्द्र आत्मा ही है। जब पावर हाउस बन्द हुआ तो सभी बल्ब गुल हो जायेंगे। इसीलिए भारतीय विचारकों ने आध्यात्मिक शक्ति को प्रधानता देते हुए उसी की साधना पर जोर दिया है। फलतः आत्मिक शक्ति के जो चमत्कार उन्होंने दिखलाये, वे विश्व भर में अनोखे हैं।

(2) मानसिक विकास

विश्व के सभी प्राणियों का विकास एक सा नहीं होता। उनमें रुचि व प्रकृति, योग्यता की बहुत विचित्रता पाई जाती है। अतः जो व्यक्ति उच्च कक्षा की आत्मिक शक्ति के विकास की योग्यता का अपने में अनुभव नहीं करते या उनकी रुचि ही उस ओर नहीं हो, उनके लिए मन एवं शारीरिक आदि अन्य शक्तियों की उपासना, दूसरा विकल्प है। इन शक्तियों के अनेक साधन हमारे ग्रन्थों में उल्लिखित हैं। मानसिक शक्ति के विकास के लिए चित्तवृत्ति की एकाग्रता को प्रधानता दी गई है जिससे बिखरी हुई शक्ति इकट्ठी हो जाय। बुरे कार्यों की ओर धावित मन को उधर से खींचकर जहाँ हम लगाना चाहें, लगा सकें। मानसिक दुर्बलता कम होकर साहस का संचार हो। हम मनस्वी एवं दृढ़ मनोबली बनें। वस्तु रूप का गहराई से विचार कर सके और इच्छित कार्य में दृढ़ता से आगे बढ़ सकें। यह मानसिक शक्ति के विकास के सुफल है।

(3) बौद्धिक विकास

हमारे यहाँ बौद्धिक विकास के लिए व्यवस्थित शिक्षा प्रणाली की व्यवस्था की गई है। विविध ग्रन्थों के अध्ययन से हमारी बुद्धि तीव्र हो, उपज तुरन्त हो, सूझ पेनी होती है। इशारे मात्र से सारी बातों की वास्तविकता को जान सकें एवं उलझनों को सुलझा सकें। यही बौद्धिक शक्ति के विकास का उद्देश्य हैं।

(4) शारीरिक विकास

शारीरिक जीवन के विकास के लिए व्यायाम एवं परिश्रमी जीवन को महत्व दिया गया है। नियमित अभ्यास से शारीरिक शक्ति का अद्भुत विकास हो सकता है। सर्कस के खेलों में शारीरिक शक्ति के चमत्कारों को देख लोग दंग रह जाते हैं। हमारे आयुर्वेद में शारीरिक और बौद्धिक शक्ति बढ़ाने वाले अनेक पदार्थों के सेवन की चर्चा है। जिनसे पाचन क्रिया ठीक हो क्षुधा का उद्दीपन होकर रस की अभिवृद्धि हो, ऐसे अनेक प्रयोग ग्रन्थों में मिलते हैं। वीर्य रक्षा और उसकी अभिवृद्धि की ओर भी ध्यान दिलाया गया है। इन सबसे हम शारीरिक शक्ति का विकास कर सकते हैं।

(5) वाचिक शक्ति-

शब्दों में बड़ी भारी शक्ति है। उनका उपयोग ठीक से कर सकने की कला सीखिये। व्यक्तित्व कला के विकास का प्रयत्न करिये। संकोच व भय को छोड़ अपने विचार व अनुभव प्रकाश में लाते रहिये। गहरा अध्ययन एवं चिन्तन हो, जो कुछ कहा जाय स्व पर हितावत् हो, यहीं ध्यान रखिये।

हमें अपनी रुचि-योग्यतानुसार इन शक्तियों के विकास का प्रयत्न हर समय करते रहना चाहिए। हम भारतीय सदा इस क्षेत्र में शक्ति सम्पन्न रहे हैं, पर आज सभी क्षेत्रों में शक्तिहीन हो गये हैं। अतः पुनः अपनी पूर्व प्रतिष्ठा प्राप्ति के लिए शक्ति संचय के उपासक बनिये।

शिव और शक्ति का जोड़ा माना जाता है। इसका आध्यात्मिक भाव यही है कि शक्ति का उपभोग शिव कल्याण रूप वाक्यों में करिये अशिव में नहीं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: