विश्व शाँति के लिए विशद गायत्री महायज्ञ

December 1954

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गायत्री उपासना से जिस दिव्य शक्ति का आविर्भाव होता है, उसका पोषण और विकास यज्ञ की महिमा भी ऊष्मा करती है। बीज में से प्रस्फुटित हुए अंकुर के लिए जिस प्रकार खाद और पानी की आवश्यकता है उसी प्रकार गायत्री द्वारा प्रादुर्भूत आध्यात्मिक शक्तियों को परिपुष्ट करने में यज्ञ सहायक होता है। साधारण जप में न सही पर अनुष्ठान में गायत्री जप का दशाँश नहीं तो शताँश हवन करना आवश्यक होता है। गायत्री और यज्ञ का आपस में अनन्य सम्बन्ध है।

यज्ञ की महिमा अपार है। प्राचीनकाल में भारत के भौतिक आध्यात्मिक विज्ञान का मध्य बिन्दु यज्ञ ही रहा है। यज्ञ द्वारा मानसिक और आध्यात्मिक त्रुटियों का निवारण अनन्त ऋद्धि सिद्धियाँ तथा जीवन मुक्ति सरीखी पूर्णताएं जैसे लाभ प्राप्त होते हैं। साथ ही अगणित भौतिक प्रयोजनों की पूर्ति भी उससे होती है। मनुष्य के स्वभावों और चरित्रों का निर्माण, शरीरों को रोग मुक्त और पुष्ट करने की प्रक्रिया, अनेक अभावों की पूर्ति, वातावरण में सद्भावना के तत्वों के वृद्धि, वृक्ष-वनस्पति, पशु, अन्न आदि में प्राण तत्व की अधिकता, अमृतमयी वर्षा आदि अगणित लाभ यज्ञ के सर्व विदित है। इसके अतिरिक्त प्राचीन काल में यज्ञ द्वारा युद्ध में काम देने वाले दिव्य अस्त्र, अनुकूलता को बढ़ाने वाले और प्रतिकूलता को घटाने वाले तत्व यज्ञ की अत्यन्त महत्व पूर्ण एवं आध्यात्म विज्ञान की प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न किये जाते थे। खेद है कि आज वह जीवन संचारणी यज्ञ विद्या लुप्त प्रायः हो गई और हम उन अनन्त शक्ति स्रोतों का लाभ उठाने से वंचित हो गये।

यज्ञ विद्या की सर्वांगपूर्ण खोज करने के लिए अभी बहुत कष्ट साध्य श्रम करने की आवश्यकता होगी। फिर भी जो कुछ उपलब्ध है उसका ठीक प्रकार उपयोग किया जा सके तो वह भी इतना महान है कि उससे आशा जनक सत्परिणाम उपलब्ध हो सकते हैं।

आज मनुष्य जाति नाना प्रकार के अभावों कष्टों, चिन्ताओं, पीड़ाओं, भयों, उलझनों एवं आवेशों से ग्रसित हो रही हैं। व्यक्तिगत रूप से तथा सामूहिक जीवन में सभी कोई परेशान हैं। घर-घर में नरक विद्यमान है। समाज का संगठन-अनैतिक तत्वों की भरमार से छिन्न-भिन्न हो रहा है। राजनैतिक क्षेत्र ऐसा विषैला हो रहा है अणु बमों से कभी भी प्रलय उपस्थित करके चिरसंचित मानव सभ्यता भस्म हो सकती है। इस प्रकार की विपन्न स्थिति को दूर करने के लिए अनेक प्रकार के प्रत्यक्ष प्रयत्न करने पड़ेंगे। साथ ही आध्यात्मिक उपचारों की भी उपेक्षा न की जा सकेगी। हमें यह भली प्रकार समझ लेना चाहिए कि केवल बाह्य प्रयत्नों से ही सब कुछ नहीं हो जाता, वातावरण बदलने और युग पलटने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सूक्ष्म प्रक्रियाओं की भी आवश्यकता होती है। इसके बिना सारी भाग दौड़ अधूरी एवं असफल ही रहती है। परिस्थितियों का निर्माण करने वाली अनेक सूक्ष्म प्रक्रियाएं हैं। उनमें यज्ञ का महत्व सर्वोपरि है।

यों हम गायत्री उपासना के साथ-साथ यज्ञ की महत्ता पर सदा ही जोर देते हैं। ओर छोटे-बड़े यज्ञों का समय-समय पर प्रेरणा पूर्वक आयोजन भी कराते रहे हैं। पर अब की बार कुछ विशेष अन्तः प्रेरणा एक विशद गायत्री महायज्ञ कराने की हुई है। इसका प्रधान उद्देश्य व्यक्तिगत एवं सामूहिक जीवन में फैली हुई अनैतिकता एवं अव्यवस्था को दूर करके वातावरण में सतोगुणी तत्वों की अभिवृद्धि करना है। साथ ही अनेकों गायत्री उपासकों के आत्मबल को सरल रीति से बहुत अधिक बढ़ा कर उन्हें उस उच्च भूमिका तक पहुँचना भी अभीष्ट है जहाँ पहुँचना आशा जनक शान्ति प्राप्त न कर सकना संभव होता है। एक-एक मिट्टी के बर्तन को अलग-अलग पकाने में बहुत सामान, बहुत समय, बहुत श्रम, बहुत स्थान की आवश्यकता होती है पर जब कुम्हार एक ही स्थान पर बहुत बड़ा अलाव लगाकर उसमें हजारों बर्तन लगा देता है तो वह बर्तन थोड़े ही समय में एक साथ पक जाते हैं। अनेक गायत्री उपासकों की साधना का परिपाक इस एक ही गायत्री महायज्ञ में हो सकता है। जिस स्थान पर अलाव लगाया जा सकता है वहाँ की मिट्टी बिना प्रयत्न के पक कर लाल हो जाती है उसी प्रकार गायत्री तपोभूमि में जहाँ यह महान आयोजन होगा उस स्थान को सहज ही एक प्रचंड शक्ति स्रोत बन जाने का सौभाग्य मिलेगा। इस शक्ति स्रोत से चिर काल तक लाभ उठाते रहने का गायत्री परिवार को सुअवसर मिलता रहेगा। प्राचीन काल में ऐसे ही शक्ति केन्द्रों का नाम तीर्थ होता था, वहाँ समय-समय पर ऐसे ही महान आयोजन होते रहते थे। जिसके प्रभाव से वह भूमि वहाँ आने वालों को बहुत कुछ ऊँचे की सामर्थ्य धारण किये रहती थी। अब तीर्थ निष्प्राण होते चले जा रहे हैं, इसके कारण वहाँ की सूक्ष्म शक्ति का धीरे-2 समाप्त हो जाना ही है गायत्री तपोभूमि से प्राचीन काल के शक्ति शाली तीर्थों जैसा लाभ उठाना संभव हो सके इस दृष्टि से भी यह विशद यज्ञ आयोजन बड़ा ही उपयोगी सिद्ध होगा।

संकल्प हुआ है कि 125 करोड़ गायत्री महामंत्र का जप और 125 लाख आहुतियों का गायत्री महायज्ञ किया जाय। यह इतना बड़ा संकल्प है जितना महाभारत के बाद अब तक इस बीच में भी नहीं किया गया है। इसकी विशालता का हिसाब फैलाने से मस्तिष्क चकरा जाता है। पर निराशा की कोई बात नहीं जो शक्ति राई को पर्वत और पर्वत को राई कर सकती है उसके लिए ऐसे आयोजनों की पूर्णता कुछ कठिन नहीं है। हम तुच्छ हैं, हमारे साधन अत्यंत स्वल्प हैं पर जिस शक्ति की प्रेरणा से यह आयोजन हो रहा है वह न तो तुच्छ है और न उसके साधन स्वल्प हैं। उसकी प्रेरणाएं असफल रहने का कोई कारण नहीं दीखता।

चौबीस 24 करोड़ जप और 24-24 लक्ष यज्ञ के पाँच भागों में इसे बाँटा गया है। पूर्णाहुति का छटा आयोजन 5 करोड़ जप तथा 5 लक्ष यज्ञ का अन्त में होगा। इस प्रकार विराम लेते हुए एक एक मंजिल पूर्ण करते हुए इस विशाल काय महायज्ञ की पूर्णता की जायगी। इसके अंतर्गत बीच-बीच में (1) चारों वेदों के सम्पूर्ण मंत्रों का पारायण यज्ञ (2) रुद्रयज्ञ (3) विष्णु यज्ञ (4) शतचण्डी यज्ञ (5) महामृत्युँजय यज्ञ (6) गणपति यज्ञ (7) सरस्वती यज्ञ (8) अग्निष्टोम (9) ज्योतिष्टोम आदि अनेकों यज्ञ होते रहेंगे।

इस यज्ञ का यजमान, संयोजक, पूर्ण फल प्राप्त कर्त्ता कोई एक व्यक्ति नहीं है। यह संकल्प समस्त गायत्री उपासकों की ओर से किया गया है। इसलिए इसका श्रेय उन सभी को प्राप्त होगा जो इसमें जितने अंश के भागीदार बनेंगे जिस प्रकार किसी लिमिटेड कम्पनी के अनेक शेयर होते हैं उसी प्रकार इस यज्ञ के भी दस हजार भागीदार होंगे।

24 हजार जप तथा 240 आहुतियों के हवन का लघु अनुष्ठान ही इस यज्ञ का एक शेयर है। जिस प्रकार कोई व्यक्ति अनेकों शेयर खरीद सकता है उसी प्रकार कोई साधक इस यज्ञ के चाहे जितने भाग प्राप्त कर सकता है। जिस प्रकार भी उन्हीं नियमों में यह भी होंगे दो नियम ढीले कर दिये गए हैं। (1) उपवास अनिवार्य नहीं है जो कर सकें करें, न कर सकें न करें (2) जिन्हें अवकाश कम हो वे नौ दिन की अपेक्षा 15 दिन में 16 माला प्रतिदिन के हिसाब से भी कर सकेंगे। अनुष्ठान के दिनों में ब्रह्मचर्य आदि अन्य नियम आवश्यक होंगे। जप को अपने-2 घरों पर किया जा सकेगा पर उसका हवन गायत्री तपोभूमि की निर्धारित वेदी पर स्वयं उपस्थित होकर ही करना होगा। मथुरा के निकटवर्ती लोग अनुष्ठान के दिनों में ही एक दिन या दो दिन में 240 आहुतियों का हवन कर लिया करेंगे। बाहर के सज्जन अपने अनुष्ठान अपने स्थान पर करते रहें और एक वर्ष के भीतर जब भी अवसर मिले मथुरा आकर अपने कई अनुष्ठानों का हवन एक साथ भी कर सकते हैं। 240 आहुतियों में 3 मासे प्रति आहुति के हिसाब से 12 छटाँक सामग्री 1 मासे प्रति आहुति के हिसाब से 6 छटाँक घी, 1 तोले फी आहुति के हिसाब से 3 सेर समिधाएँ (लकड़ी) लगती हैं। जिन अनुष्ठान कर्त्ताओं के इच्छा तथा सामर्थ्य हो वे अपना यह सामान दे दें, जिनको कुछ कठिनाई हो, उनके लिए यह सब सामान की भी पूर्ति कर दी जायगी। इस महान आयोजन के आरम्भ का शुभमुहूर्त माघ सुदी 5(बसंत पंचमी) सन् 2011 तदनुसार 28 जनवरी है।

यह आयोजन अत्यन्त ही विशद् है। दस हजार अनुष्ठान कर्त्ता ढूँढ़ने के लिए लाखों व्यक्तियों तक इसका संदेश पहुँचाना होगा। इस कार्य को हम अकेले नहीं कर सकते। इसके लिए बड़ी संख्या में सहयोगियों, स्वयं सेवकों एवं प्रचारकों की आवश्यकता होगी। जो घर-घर जाकर इस यज्ञ का संदेश पहुँचावें, महत्व बतलावे और भागीदार अनुष्ठान कर्त्ता तैयार करें। हमारी सभी गायत्री उपासकों से प्रार्थना है कि अपने-अपने क्षेत्र में इस प्रकार का नियमित प्रयन्त करें। दो-दो चार-चार की टोली बनाकर नित्य कुछ समय या छुट्टी का अधिक समय घर-घर प्रचार करने में जाने के लिए लगावें। यह अनेकों धर्म कामों से अधिक पुण्य है। दूसरों की आत्मा को कल्याण मार्ग पर लगाने से बढ़कर और कोई पुण्य परमार्थ इस संसार में नहीं है। शुभ कार्यों में प्रेरणा देने वाले को उस कार्य का दशाँश पुण्य मिलना शास्त्रों में लिखा है। कम्पनियों के शेयर बेचने वालों तथा बीमा कम्पनी के एजेन्टों को भी कमीशन मिलता है। गायत्री प्रचार की पुनीत सेवा एवं यज्ञ को पूर्ण करने के लिए की हुई प्रयत्न शीलता भी ऐसी साधना है जो जप, हवन, प्राणायाम आदि में समय लगाने से कहीं अधिक श्रेयष्कर सिद्ध होगी।

मथुरा गायत्री तपोभूमि में ऐसे स्वयं सेवकों की भी बड़ी आवश्यकता है जो स्थानीय व्यवस्था यज्ञ का सहयोग करने के अतिरिक्त प्रचार करने के भी क्षमता रखते हों। किसी को वेतन दे सकना कठिन है पर भोजन, ठहरने आदि की समुचित व्यवस्था यहाँ रहेगी। तीन-तीन महीने समय देने के लिए भी ऐसे सेवाभावी सज्जन आते रहें तो यहाँ का सब प्रबंध ठीक प्रकार चलता रह सकता है। प्रारम्भिक व्यवस्था में हमें भी विशेष अड़चन तथा आवश्यकता रहेगी इसलिए पौष, माघ, फाल्गुन की प्रारम्भिक तिमाही में मथुरा आने के लिए ऐसे सत्पुरुषों को हम अनुरोध पूर्वक आमंत्रित करते हैं।

यह यज्ञ असाधारण है। इससे असाधारण ही शक्ति उत्पन्न होती है इसके भागीदार भी कुछ ऐसे आधार अनुभव प्राप्त करेंगे जो साधारण साधनाओं से सम्भव नहीं है। यह संकल्प अत्याधिक महान सम्भावनाओं से ओत-प्रोत है। इसे पूर्ण करने में सच्चा सहयोग करने की सभी गायत्री प्रेमियों, सभी धार्मिक प्रकृति के सत्य पुरुषों से हमारी हार्दिक प्रार्थना है।


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