सम्भालें और स्वयं सम्भालें

December 1954

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्रीमती प्रीतम देवी महेन्द्र)

यदि आपको भेंट स्वरूप कोई हाथी दे दे, या देना चाहे, तो क्या आप वह भेंट स्वीकार करेंगे? पहले आप हाथी के साथ आने वाले यश प्रतिष्ठा की बात सोचकर प्रसन्न होंगे और अपने अहं की तृप्ति के लिए उस भेंट को लेने में प्रसन्न होंगे। किन्तु दूसरे ही क्षण आप सोचेंगे कि क्या आप उसे सम्हाल भी सकेंगे? हाथी के साथ आने वाले व्यय तथा जिम्मेदारियों को सम्हालने की शक्ति भी हममें है या नहीं? हम उसे कहाँ रखेंगे? हमें किन-किन वस्तुओं की आवश्यकताएँ होंगी? इत्यादि अनेक विचार आपके मन में आयेंगे और अन्ततः न सम्हाल सकने के कारण आप हाथी जैसी भेंट न लेना चाहेंगे।

जब गंगा पृथ्वी पर अवतीर्ण होने लगीं तो एक ऐसे दृढ़ शक्तिशाली व्यक्ति की आवश्यकता प्रतीत हुई जो उनका भार सम्हाल ले। बड़ी खोज की गई कि कौन इस बोझ को सम्हाले पर कोई न मिला। अन्ततः शिवजी ने उस बोझ को सम्हालने का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लिया और श्री गंगाजी पृथ्वी पर उतरीं। यदि सम्हालने वाला न होता, तो कदाचित गंगा जी पृथ्वी पर न आती।

वास्तव में किसी वस्तु की सम्हाल ही मुख्य है। जो मनुष्य स्वयं सम्हलना, दूसरों को सम्हालना जानता है वह प्रसन्न और संतुष्ट रहता है, जो सम्हाल से अनभिज्ञ रहता है वह अतृप्त एवं दुःखी रहता है। यह देख कर बड़ा दुःख होता है कि कुछ व्यक्ति अपनी वस्तुओं के सम्हालने में बड़े लापरवाह होते हैं और अपने रुपये का पूरा-पूरा लाभ नहीं उठा पाते। घाटे में रहते हैं। यदि वस्तु के नष्ट होने से पूर्व उसकी उचित देख भाल, सम्हाल, और दुरुस्ती करा ली जाय तो उसमें नए ढंग का जीवन संचार हो सकता है।

वह कौन सी वस्तु है जिसकी हमारे लिए सर्वाधिक आवश्यकता और मूल्य है। यह बहुमूल्य वस्तु है हमारा शरीर। मानव शरीर वह यंत्र है जिसका मूल्य आँका नहीं जा सकता। एक बार एक निर्धन व्यक्ति एक विद्वान के पास जाकर कहने लगा कि मैं बड़ा निर्धन हूँ, मेरे पास कुछ नहीं है। विद्वान बोले- “भाई! मैं तुम्हें 10 हजार रुपये दे सकता हूँ यदि तुम मुझे अपनी एक आँख दे दो। कहो क्या दस हजार रुपये लेने को तैयार हो?” वह व्यक्ति शर्मा गया और बोला- यह तो मैं दे नहीं सकता। इस पर विद्वान बोला- “भाई! जब तुम एक छोटी सी आँख का मूल्य दस हजार से अधिक मानते हो तो जरा अनुमान करो कि इस हिसाब से सम्पूर्ण शरीर का कितना अधिक मूल्य होगा।”

इस शरीर का मूल्य कितना अधिक है, पर शोक (महाशोक) हम इसी शरीर की पूरी-पूरी सम्हाल नहीं करते। शरीर में कोई पुर्जा घिसता है, हम उसकी दुरुस्त नहीं करते। साँसारिक लोभ में हम शरीर रूपी मशीन को दिन-रात घिसते तोड़ते-फोड़ते ही रहते हैं। पर्याप्त विश्राम नहीं देते, तेल डालकर उसे स्वस्थ नहीं बनाते। इस मशीन के पुर्जों का सामयिक ज्ञान प्राप्त नहीं करते। तनिक सोचिए, जो मशीन आपको बाजार में दुबारा प्राप्त नहीं हो सकती, जिसका कोई पुर्जा बदला नहीं जा सकता, जो सदा के लिए एक ही बार के लिए आपको प्राप्त हुई है, जिसके क्षय से आपका क्षय है, उस बहुमूल्य मशीन के साथ ऐसा दुर्व्यवहार हमारी विपरीत बुद्धि का ही एक दुष्परिणाम है।

दाँत हमारे शरीर का कितना छोटा सा अंग है। लेकिन इसकी सम्हाल न कीजिए, मंजन, दातुन करना छोड़ दीजिए फिर देखिए कितनी जल्दी दाँत खराब होते हैं और आपकी चिन्ता के कारण बनते हैं। आपके असंख्य रुपये व्यय हो जायेंगे किन्तु प्राकृतिक दाँत कभी प्राप्त न होंगे। इसी प्रकार नेत्र हैं, हम रात-रात भर जागृत रह, सिनेमा देख कर उन्हें बेकार कर डालते हैं। फिर उम्र भर चश्मा चढ़ाये रहते हैं। इसी प्रकार अन्य अंगों का और भी अधिक महत्व है। मूत्र अवयव सबसे कोमल है। अतः इनका महत्व अत्यधिक है। हमें चाहिए कि शरीर में कोई भी टूट-फूट, कमजोरी, थकावट आते ही सावधान हो जाएं और जब तक उन्हें दुरुस्त न कर लें, चैन न लें। शरीर की उचित सम्हाल दीर्घ जीवन का रहस्य है।

सम्हाल की परिधि अति विस्तृत है। शरीर के पश्चात् मन की उचित सम्हाल आवश्यक है। मन अस्वस्थ है, तो शरीर अस्वस्थ है। मन रोग शोक-चिंता, पश्चाताप, ग्लानि, भय से परिपूर्ण है तो शरीर भी न सम्हलेगा। आप अपने मन को खूब सम्हाल कर रखें और उनमें महत्वाकाँक्षा, आशा, उत्साह, प्रेम, सहानुभूति, दया आदि के सुमधुर सुगंधित पुष्पों के वृक्ष लगावें। निरन्तर उन्हें प्रेरणा देते रहें और पनपाते रहें।

सावधान! किसी ऐसी स्थिति में न फँस जायें कि हृदय का प्रेम और स्निग्धता टूट जाय। शुष्कता और निराशा से बचते रहें। आपका हृदय जितना ही भविष्य की मधुर आशाप्रद कल्पनाओं से परिपूर्ण रहेगा, उतने ही आप प्रसन्न एवं आनन्दित रहेंगे। मन को उचित दिशा में बहता रखिए।

वस्तुओं के सम्हाल कर विचार करें, तो हमें प्रतीत होता है कि उनके प्रति हमारा बड़ा दुर्व्यवहार रहता है। हम बाजार में जब वस्तुएँ खरीदने जाते हैं, तो उनके रूप से आकर्षित होकर खूब व्यय करते हैं। स्त्रियाँ बढ़िया-2 रेशमी वस्त्र, जूते, आभूषण इत्यादि खरीदती हैं। लेकिन कैसा दुर्भाग्य है कि इन वस्तुओं की सम्हाल की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं देतीं। उनके वस्त्र बेतरतीब इधर-उधर पड़े रहते हैं, जूतों पर पालिश नहीं होती, आभूषणों को स्वच्छ नहीं करतीं और प्रायः अन्य वस्तुओं के प्रति भी ऐसा ही बुरा व्यवहार करती हैं। हम मकान बनाते हैं, बनाने में खूब व्यय करते हैं, लेकिन कुछ काल पश्चात् मकान के प्रति हमारी सम्हाल कम होने लगती है। दीवारों में छेद हो जाते हैं, सफेदी उड़ जाती हैं, किवाड़ों की पालिश उड़ जाती है, खिड़कियाँ टूट-फूट जाती हैं। मामूली टूट-फूट की भी मरम्मत नहीं कराई जाती, ठीक समय पर न सम्हालने के कारण ये अपनी पूरी आयु भर काम नहीं देतीं। धार्मिक वृत्ति के अनेक पूँजीपति मठ मन्दिर धर्म शालाएँ बनाते हैं लेकिन वे यह नहीं सोचते कि बनवाना और सम्हालना-ये दो समान रूप से महत्वपूर्ण कार्य हैं। यदि वे आधा रुपया बाद की सम्हाल के लिए रख लें और बनाने में कम व्यय करें तो अधिक लाभ उठा सकते हैं।

यदि आपके पास किसी प्रकार की मशीन है- साइकिल, सीने की मशीन, टाइपराइटर, घड़ी है तो उसे सम्हालने का उत्तरदायित्व और अधिक बढ़ जाता है। मशीन सबसे अधिक सम्हाल चाहती है। घड़ी एक छोटी सी मशीन है, लेकिन यदि आप उसे प्रतिदिन ठीक चाबी इत्यादि देकर सम्हालते रहे तो बहुत दिन आपका काम दे सकती है। अपना फाउन्टेन पेन ही लीजिए। यदि आप उसकी सफाई, टूट−फूट और सम्हाल का यथेष्ट ध्यान रखें, तो निश्चय जानिये वह बहुत दिन तक आपकी सेवा कर सकता है। जूते पर प्रति दूसरे दिन पालिश करते रहें, फटा हुआ हिस्सा सिलाते रहें, गर्मी और जल से बचावें, तो बहुत दिन तक आपके काम आ सकता है। धोबी के धुले हुए कपड़े यदि काफी सम्हाल कर रखे जाएं, तो अधिक दिन साफ और स्वच्छ रह सकते हैं। पुस्तकों की जिल्द बँधवा लेने से उनके पन्ने बचे रहते हैं। बच्चों की पाठ्य पुस्तकों की जिल्द बँधवाना तो अति आवश्यक है।

न सम्हालने से आपका चश्मा गिर कर नष्ट होता है, तो चीनी काँच के बर्तन चकनाचूर होते हैं। यदि कोई सम्हाल कर रखें, तो काँच का बर्तन धातु के बर्तन जितना ही चल सकता है पर काफी सम्हाल न होने के कारण वह टूटते-फूटते रहते हैं। अनेक काँच की शीशियाँ, चिमनियाँ लापरवाही की वजह से बेकार होती हैं। काँच की चूड़ियों का भी यही हाल है। कीमती फूलदान, गमले, पेपरवेट, काँच के कलम दान, घड़ियों के शीशे हमारी लापरवाही के दुष्परिणाम हैं। बिजली के पंखे, इस्तरी, बल्ब, रेडियो इत्यादि उचित सम्हाल न होने के कारण असमय ही नष्ट हो जाते हैं। बिस्तर बाँधने के होल्ड आल सफर में काम आते हैं और पर्याप्त सम्हाल रखने से जीवन पर्यंत काम में आ सकते हैं। हाथ में रखने के थैले, रुपया रखने के पर्स, थर्मामीटर उचित न सम्हाल न रखने से नष्ट होते हैं। इसी प्रकार अन्य उदाहरण दिये जा सकते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: