प्रतिभा का प्रकाश

May 1952

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(श्री भगवती प्रसाद जी श्रीवास्तव)

जीवन-संघर्ष में सफलता प्राप्त करने के निमित्त अकेले बुद्धि-कौशल या योग्यता का सहारा नहीं लिया जा सकता। अपने आसपास आप अनेक ऐसे लोगों को पायेंगे जो बुद्धि या योग्यता की दृष्टि से कुछ अधिक ऊँचे नहीं है, फिर भी अपने क्षेत्र में उन्होंने विशेष सफलता प्राप्त कर ली है जब कि अनेक लोग जो विद्वता में उन लोगों से कहीं श्रेष्ठ हैं, जीवन में असफलता ही प्राप्त कर सके हैं। प्रायः लोगों का ख्याल है कि व्यक्तित्व प्रकृति की देन है जिसके बनाने बिगाड़ने में हमारा कोई हाथ नहीं है।

तो क्या व्यक्तित्व निरे प्रारब्ध की बात है? फिर तो प्रकृति ने जिसे इस अमूल्य वरदान से वंचित रखा है, उसे सदैव के लिए जीवन में सफलता प्राप्त करने की आशा त्याग देनी चाहिए। अथवा व्यक्तित्व ऐसा गुण है जिसका विकास हम अध्यवसाय और लगन द्वारा प्राप्त कर सकते हैं? आधुनिक मनोविज्ञान ने व्यक्तित्व का विश्लेषण भलीभाँति किया है— किन्तु व्यक्तित्व वास्तव में है क्या वस्तु? इस प्रश्न पर विचार करने के पूर्व अच्छा होता है कि हम एकाध दृष्टान्त पर गौर करें।

ट्रेन में आप यात्रा कर रहे हैं। बीसियों मनुष्य डिब्बे में बैठे हैं—कोई समाचार पत्र पढ़ रहा है, कोई लेटा हुआ है तो कोई बैठे-बैठे ही ऊँघ रहा है। इतने में कोई चर्चा वहाँ छिड़ती है और उतने सब लोगों में एक व्यक्ति ऐसा निकलता है जो वहाँ के वार्तालाप का केन्द्र बन जाता है। बरबस सबका ध्यान उसी की ओर आकृष्ट हो जाता है—मानो वार्तालाप की कुँजी उसके हाथ में ही हो, अन्य लोग थोड़ा थोड़ा योग मात्र दे पाते हैं। निस्सन्देह उस मनुष्य में व्यक्तित्व वाला मनुष्य सहज ही अपने विशेष गुणों द्वारा अन्य लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लेने की क्षमता रखता है। अपने व्यक्तित्व के बल पर ही वह प्रायः जिस काम को हाथ में लेता है, उसे पूरा करता है। उसे हर कहीं सफलता ही स्वागत करने को तैयार रहती है।

आधुनिक मनोविज्ञान ने इस सिलसिले में विशेष रूप से छान बीन की है। व्यक्तित्व के निर्माण के लिए यह आवश्यक नहीं कि किसी विशेष क्षेत्र में हद दर्जे का कमाल हासिल किया जाय। व्यक्तित्व के निर्माण के लिए आवश्यक यह है कि मनुष्य की प्रतिभा का सर्वतोमुखी विकास किया जा सके। ऐसे व्यक्ति का मानसिक संतुलन पूर्णतया निर्दोष होता है। बुद्धि, कौशल या औरों को चमत्कृत करने वाले गुणों की भी व्यक्तित्व के विकास के लिए कोई विशेष आवश्यकता नहीं। क्योंकि अनेक व्यक्ति इन गुणों के बावजूद भी जीवन के संघर्ष की दौड़ में पीछे ही रह जाते हैं—क्योंकि उनके अन्दर व्यक्तित्व का अभाव रहता है। वास्तव में निर्विवाद रूप से यह प्रमाणित किया जा चुका है कि व्यक्तित्व का विकास प्रयत्न करने पर हासिल किया जा सकता है क्योंकि अनेक छोटे-छोटे किन्तु महत्वपूर्ण गुणों के समष्टि रूप से परस्पर मिलने पर व्यक्तित्व का निर्माण होता है। इच्छा शक्ति का विकास, अध्ययन, एकाग्रचित्त होना, प्रबल स्मरण शक्ति, समय-पालन तथा आत्म नियन्त्रण इनमें मुख्य हैं।

इच्छा-शक्ति और एकाग्रचित्त होने का अभ्यास ये दोनों ही गुण परस्पर घनिष्ठ सूत्र द्वारा संबद्ध हैं। इच्छाशक्ति को प्रबल बनाने के निमित्त आवश्यक है कि एकाग्रता पर पूर्ण नियन्त्रण हासिल करना सीखा जाय। इसके लिए एक सहज तरकीब यह है कि प्रतिदिन नियमित रूप से एक निश्चित अवधि के किसी खास काम को करने लगिये—निर्दिष्ट समय पर उस काम में अवश्य लग जाइये, आपकी तबियत उस काम को करना न चाहे तब भी बरबस उस काम में आप लगे ही रहिए। आपका मन इधर-उधर सैकड़ों प्रलोभनों की ओर भागेगा, किन्तु आपको तो उसे बाँधकर ही रखना होगा। कुछ ही दिनों के अभ्यास के उपरान्त आप पायेंगे कि आपका मन आपका सेवक है— वह आपके अंकुश के नीचे रहता है। हर्षातिरेक, क्रोध, भावावेश, आह्लाद आदि पर काबू पाना इच्छा-शक्ति की प्रौढ़ता के लक्षण हैं। इन प्रवृत्तियों पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त करने वाला ही अपने व्यक्तित्व को ऊँचा उठा सकता है। वरना जिन्दगी के हर साधारण प्रलोभन से डिग जाने वाले व्यक्ति तो असफलता की बेड़ी ही पैरों में डाले हुए जीवन-यापन करते हैं। व्यक्तित्व के विकास में स्मरण शक्ति का योग भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। क्षीण स्मरण शक्ति वाला मनुष्य प्रायः ऐसी ही परिस्थितियों में पड़ जाता है। जब कि उसकी स्मरण शक्ति की कमी उसके व्यक्तित्व को हलका बना देती है—सभ्यजनों के बीच वार्तालाप में अचानक वह रुककर भूली हुई बात को अपने मस्तिष्क के कानों में टटोलने लग जाता है। कालेज का प्रिंसीपल अपनी उत्तम स्मरण शक्ति की सहायता से यदि कालेज के प्रत्येक विद्यार्थी के नाम की याद रख सकता है तो सहज ही वह कालेज के विद्यार्थी-समाज में सर्वप्रिय बन जाता है। स्मरण शक्ति को सुदृढ़ बनाने के निमित्त एक आसान सा प्रयोग किया जा सकता है। रात को सोने से पहले नियम बना लीजिए कि दिन भर की घटनाओं का विस्तृत विवरण क्रम-बद्ध रूप में आप लिखेंगे। एक आध महीने के उपरान्त आप पायेंगे कि आपकी स्मरण शक्ति काफी प्रौढ़ हो गयी है। स्मृति की सहायता के लिए दिन भर के काम के लिए प्रातः में ही एक सूची बना लीजिये और प्रयत्न कीजिए कि सूची के सभी कामों को आप दिन में पूरा कर सकें।

व्यक्तित्व के विकास में आत्म-नियन्त्रण को भी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। विचारशील व्यक्ति आत्म नियन्त्रण को भी पहचानता है—क्षणिक आवेश में आकर वह अपने मस्तिष्क का संतुलन खोता नहीं है। हर्ष या शोक के ज्वार-भाटे उसकी जीवन-नौका को न बहुत ऊँचा फेंक सकते हैं, न उसे नीचे ही गिरा पाते हैं। आत्म-नियन्त्रण की सहायता से वह अपने अन्दर सम्भाव का सृजन कर लेता है। ऐसे मनुष्य का व्यक्तित्व जीवन की उथल-पुथल में एक दृढ़ चट्टान की भाँति अचल बना रहता है। अवश्य आत्म नियन्त्रण का अभ्यास करने की निमित्त मनुष्य को निरन्तर प्रयत्नशील तथा जागरुक बना रहना पड़ता है। जीवन के हर क्षेत्र में पग-पग पर मनुष्य के आत्म-नियन्त्रण की जाँच होती रहती है।

व्यक्तित्व के निर्माण में अच्छे स्वास्थ्य के बिना आप कभी सफल नहीं हो सकते। थोड़े ही परिश्रम से थककर बैठ जाने वाला मनुष्य अपने आस पास के लोगों पर अपने व्यक्तित्व, असर भला डाल ही कैसे सकता है? आत्म-नियन्त्रण, इच्छा-शक्ति पर विजय प्राप्त करना, एकाग्रता आदि के गुण जो व्यक्तित्व की आधारशिलाएं हैं, अच्छे स्वास्थ्य के अभाव में कभी प्राप्त नहीं की जा सकती। अतः स्वास्थ्य के प्रति उदासीन रहकर आप अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकते। अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ तथा शुद्ध वायु, सही ढंग का और समुचित मात्रा में भोजन, यथोचित व्यायाम तथा पर्याप्त विश्राम आवश्यक है। स्वास्थ्य के ये नियम सभी को मालूम हैं; किन्तु कुछ इने गिने लोग ही इन नियमों का पालन करते हैं। स्थानाभाव के कारण कुछ अधिक इनके सम्बन्ध में यहाँ लिखा नहीं जा सकता, किन्तु चेतावनी के रूप में इतना अवश्य कहूँगा कि व्यायाम अपनी सामर्थ्य के अनुकूल ही होना चाहिये, वरना अत्यधिक श्रम-युक्त व्यायाम स्वास्थ्य के लिए हानिकर साबित हो सकता है। वयस्क पुरुषों के लिए सबसे उपयुक्त व्यायाम प्रातः तथा शाम को खुली हवा में टहलना है। इस सम्बन्ध में महात्मा गाँधी का दृष्टान्त हमारे सामने है। काम के बोझ से दबे-रहने पर भी महात्मा गान्धी का टहलने का क्रम कभी नहीं टूटा।

ऊँचे दर्जे का व्यक्तित्व हममें से प्रत्येक हासिल कर सकता है किन्तु इसके लिये उसे प्रतिक्षण जागरुक तथा प्रयत्न शील बनना पड़ेगा।


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