गायत्री जयन्ती का पुण्य पर्व

May 1952

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जेष्ठ सुदी 10 ता. 3 जून मंगलवार को गायत्री जयन्ती का पुण्य पर्व है। इसी दिन भागीरथ जी का तप सफल होने से भगवती भागीरथी (गंगा जी) पृथ्वी पर आई थीं, इसलिए गंगा दशहरा भी यही है। और इसी दिन सृष्टि के आदि काल में ब्रह्मा जी के घोर तप करने पर गायत्री महाशक्ति का अवतरण हुआ था। वर्ष भर के सम्पूर्ण पुण्य पर्वों में यह गायत्री जयन्ती का पर्व सबसे अधिक पवित्र और सबसे अधिक सतोगुणी है।

गायत्री उपासकों के लिए तो यह दिन सबसे बड़ा पर्व, उत्सव एवं त्यौहार का दिन है। इस पुण्य पर्व पर हर एक उपासक को यथासंभव माता के चरणों में अपनी श्रद्धा का प्रकटीकरण करना चाहिए। इस पर्व के लिए कुछ कार्यक्रम नीचे उपस्थित किया जाता है। इसमें से जिससे जितना हो सके वह उतना पालन करने का प्रयत्न करे।

गायत्री जयन्ती के दिन उपवास रखें।

उस दिन कुछ घंटे मौन रहकर आत्म चिन्तन किया जाय।

उस दिन जो गायत्री मन्त्र हाथ से लिखे जायं, उन्हें गायत्री मन्दिर में सुरक्षित रखने के लिए मथुरा भेज दिया जाय।

सामूहिक गायत्री यज्ञ किया जाय।

सस्वर गायत्री मंत्र की वेद ध्वनि का गान किया जाय।

गायत्री की प्रतिमाओं का विशेष रूप से पूजन अर्चन किया जाय।

गायत्री चालीसा, गायत्री के चित्र, सर्वशक्तिमान गायत्री या अन्य गायत्री साहित्य प्रसाद दान, या उपहार रूप अधिकाधिक सज्जनों को दिया जाय।

नये यज्ञोपवीत बदले जायं। जो लोग यज्ञोपवीत नहीं पहनते हैं उन्हें यज्ञोपवीत दिये जायं और यज्ञोपवीत तथा गायत्री का सम्बन्ध समझाया जाय।

जहाँ गोष्ठी या सत्संग होने संभव हो वहाँ गायत्री के महत्व पर प्रवचन हों।

गायत्री चालीसा, गायत्री सहस्र नाम, गायत्री स्तोत्र आदि का पाठ किया जाय।

उस दिन घी का अखण्ड दीपक जलाया जाय।

नये गायत्री पुस्तकालयों की स्थापना कराई जाय।

यह द्वादश सूची कार्यक्रम गायत्री जयन्ती के उपलक्ष में सर्वत्र उत्साहपूर्वक मनाये जाने का प्रयत्न करने की जागृत आत्माओं से हमारी विनम्र प्रार्थना है।


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